Friday 5 January 2018

Peacock Bird Information in Hindi – मोर से जुडी जानकारी

Peacock Bird Information in Hindi – मोर से जुडी जानकारी

The peacock is a beautiful bird known as मोरे in Hindi language. Find complete information and facts detail. जानिए मोर से जुडी essay और रोचक तथ्य .  इस पक्षी  को मयूर भीकहा जाता है यह एक प्रकार का पक्षी है, जो पुरे विश्व में अपने लम्बी और इन्द्रधनुषी पूंछ के लिए प्रसिद्द है | इन सभी कारणों के साथ यह पक्षीप्रशिद्धि का यह कारण भी है कीमोर भारत और श्रीलंका का राष्ट्रीय पक्षी है| मयूर के चमकदार पंख और सर पर लगी हुई कलगी के कारण इसे पक्षियों का राजा भी कहा जाता है और इसे 26 January 1963 को भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय पक्षी घोषित किया गया था | मोर मुख्य तौर पर एशिया के दक्षिण और दक्षिणपूर्वी हिस्सों में पाया जाता है | मोर प्रायः जंगलो में मिलते है जो अन्य जंगली पक्षियों की भाती रहती है | परन्तु आज मोर हमारे देश से विलुप्त होते हुए नजर आ रहे है यह पक्षी केवल चिड़ियाघरो या अन्य पार्को में देखने को मिलता है |मोर से जुडी जानकारी / Peacock Bird Detailमयूर एक प्रकार की पक्षी है जो अन्य पक्षियों केअपेक्षा काफी शांत और आकर्षक है | बरसात के मौसम में अगर आप जंगल में घुमने जाते है तो काले बदलो के छाने पर यह पक्षी अपनी पंखो को फैला कर बरसात में नाचते हुए मिल जाएँगे | और जब यह अपने चमकदारपंखो को फैला कर नाचते है तो इनके नाचने का दृश्य काफी मोहक लगता है | इन सभी बातो के अलावा इसके और भी कई तथ्य है |मोर को देखभाल के साथ रखा जाये तो यह 22 से 25 years तक जी सकते हैं | चलिए अब जानते है इस पक्षी  से जुडी कुछ और जानकारी :मोर से जुड़े तथ्य /  Interesting Facts about Peacock*.

मोर या Peacock नर पक्षियों को कहा जाता है, जबकि मादा को मोरनी या Peahen कहा जाता है | और इसके जोड़े को Peafowl कहा जाता है |*.मुख्यतः मयूर तीन प्रकार के होते है भारतीय मोर (Indian Peafowl), हरी मोर (Green Peafowl) एवं कांगो मोर (Congo Peafowl) |*.मुख्य रूप से इसकी  लम्बाई लगभग 100 cmके आसपास होती है और इसका वजन 6 kg तक होता है | मोर के तुलना में मोरनी की लम्बाई अधिक नहीं होती है |*.अन्य मयूर के अपेक्षा भारतीय मोर के पंख काफी चमकदार होती है | इसके पंख में brown, grey के साथ green रंग का काफी आकर्षक design बने रहते है |*.मयूर अपने पंखो का इस्तेमाल अपने साथी को आकर्षित करने के लिए करते है | जिनके पंख ज्यादा बड़ा और आकर्षित होता है वह अपने साथी को उतना ही जल्द आकर्षित करता है |*.National Geography के आकड़ो के मुताबिक यह उड़ने वाले पक्षियों में सबसेबड़ी पक्षी है | और साथ ही यह अन्य पक्षियों के मुताबिक काफी तेग धावक भी है | इसका running speed 15 km/h है |*.अन्य पक्षियों की भाती यह पक्षी भी हरी घास फूस और कीड़े मकोडो को खाती है | इसका मनपसंद भोजन कीड़े, छोटे उभयचर प्राणी, फूल बिज आदि |*.किस भी प्रकार के खतरों के आहट पर यह उड़ कर पेड़ की डाली में छुप जाते है और खतरे के भय से पुरे दिन और रात डाली में छुप करबिता देते है |*.इस पक्षी का रंग जन्मजात नहीं होता | बचपन में मोर दिखने में मोरनी की तरह ही होता है परन्तु छह मास के पश्चात् इसके रंग में बदलाव आने लगता है और इसके पंख का विकास होता है |*.मोर एकमात्र ऐसा पक्षी है जिसके पंख के लिए मारा नहीं जाता |
मोरअथवामयूरएक पक्षी है जिसका मूलस्थान दक्षिणी और दक्षिणपूर्वीएशियामें है। ये ज़्यादातर खुले वनों में वन्यपक्षी की तरह रहते हैं। नीला मोरभारतऔरश्रीलंकाका राष्ट्रीयपक्षीहै। नर की एक ख़ूबसूरत और रंग-बिरंगी फरों से बनी पूँछ होती है, जिसे वो खोलकर प्रणय निवेदन के लिए नाचता है, विशेष रूप से बसन्त और बारिश के मौसम में। मोर की मादा मोरनी कहलाती है। जावाई मोर हरे रंग का होता है।
मोर कोकार्तिकेय(मुरुगन) का वाहन माना जाता है। प्रख्यात चित्रकारराजा रवि वर्माकी एक पेंटिंग

भारत के राष्ट्रीय प्रतीकध्वजतिरंगाराष्ट्रीय चिह्नअशोक की लाटराष्ट्रभाषाकोई नहीराष्ट्र-गानजन गण मनराष्ट्र-गीतवन्दे मातरम्पशुबाघजलीय जीवगंगा डालफिनपक्षीमोरपुष्पकमलवृक्षबरगदफलआमखेलमैदानी हॉकीपञ्चांगशक संवतसंदर्भ|||
भारतीय दूतावास, लन्दनRetreived ०३-०९-२००७मोर एक बहुत ही सुन्दर तथा आकर्षक पक्षी है। बरसात के मौसम में काली घटा छाने पर जब यह पक्षी पंख फैला कर नाचता है तो ऐसा लगता मानो इसने हीरों से जरी शाही पोशाक पहनी हुई हो; इसीलिए मोर को पक्षियों का राजा कहा जाता है। पक्षियों का राजा होने के कारण ही प्रकृति ने इसके सिर परताज जैसी कलंगी लगायी है। मोर के अद्भुत सौंदर्य के कारण ही भारत सरकार ने 26 जनवरी,1963 को इसे राष्ट्रीय पक्षीघोषित किया। हमारे पड़ोसी देश म्यांमार का राष्ट्रीय पक्षी भी मोर ही है। ‘फैसियानिडाई’ परिवार के सदस्य मोर का वैज्ञानिक नाम ‘पावो क्रिस्टेटस’ है। अंग्रेजी भाषा में इसे ‘ब्ल्यू पीफॉउल’ अथवा ‘पीकॉक’ कहते हैं। संस्कृत भाषा में यह मयूर के नाम से जाना जाता है। मोर भारत तथा श्रीलंका में बहुतायत में पाया जाता है। मोर मूलतः वन्य पक्षी है, लेकिन भोजन की तलाश इसे कई बार मानव आबादी तक लेआती है।मोर प्रारम्भ से ही मनुष्य के आकर्षण का केन्द्र रहा है। अनेक धार्मिक कथाओं में मोर को उच्च कोटी का दर्जा दिया गया है। हिन्दू धर्म में मोर को मार कर खाना महापाप समझा जाता है। भगवान् श्रीकृष्ण के मुकुट में लगा मोर का पंख इस पक्षी के महत्त्व को दर्शाता है। महाकवि कालिदास ने महाकाव्य ‘मेघदूत’ में मोर को राष्ट्रीय पक्षी से भी अधिकऊँचा स्थान दिया है। राजा-महाराजाओं को भी मोर बहुत पसंद रहा है। प्रसिद्ध सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य के राज्य में जो सिक्के चलते थे, उनके एक तरफ मोर बना होता था। मुगल बादशाह शाहजहाँ जिस तख्त पर बैठते थे, उसकी संरचना मोर जैसी थी। दो मोरों के मध्य बादशाह की गद्दी थी तथा पीछे पंख फैलाये मोर। हीरों-पन्नों से जरे इस तख्त का नाम तख्त-ए-ताऊस’ रखा गया। अरबी भाषा में मोर को ‘ताऊस’ कहते हैं।मोर पंख)नर मोर की लम्बाई लगभग २१५ सेंटीमीटर तथा ऊँचाई लगभग ५० सेंटीमीटर होती है। मादा मोर की लम्बाई लगभग ९५ सेंटीमीटर ही होती है। नर और मादा मोर की पहचान करना बहुतआसान है। नर के सिर पर बड़ी कलंगी तथा मादा के सिर पर छोटीकलंगी होती है। नर मोर की छोटी-सी पूँछ पर लम्बे व सजावटी पंखों का एक गुच्छा होता है। मोर के इन पंखों की संख्या १५० के लगभग होती है। मादा पक्षी के ये सजावटी पंख नहीं होते। वर्षा ऋतु में मोर जब पूरी मस्ती में नाचता है तो उसके कुछ पंख टूट जाते हैं। वैसे भी वर्ष में एक बार अगस्त के महीने में मोर के सभी पंख झड़ जाते हैं। ग्रीष्म-काल के आने से पहले ये पंख फिर से निकल आते हैं। मुख्यतः मोर नीले रंग में पाया जाता है, परन्तु यह सफेद, हरे, व जामुनी रंग का भी होता है। इसकी उम्र २५ से ३० वर्ष तक होती है। मोरनी घोंसला नहीं बनाती, यह जमीन पर ही सुरक्षित स्थान पर अंडे देती है।

About Peacock in Hindi – मोर के बारे में 15 मज़ेदार बातें पढ़िय

1.मोर (Peacock) भारत का राष्ट्रीय पक्षी है।1.भारत की सभी जगहों पर मोर पाया जाता है।1.मोर का मुख्य भोजन कीड़े -मकौड़े , फ़ल- सब्जियां होता है।1.मोर ज्यादा देर तक हवा में नहीं उड़ सकता है।1.वर्षा के मौसम में मोर बादलों कीकाली घाट को देख नाचने लगता है।1.मोर के सिर पर मुकट जैसी एक सुंदर सी कलगी होती है।1.मोर का नृत्य बड़ा ही सुंदर और देखने योग्य होता है।1.मोर की उम्र लगभग 15 से 20 वर्ष तक होती है।1.मोर नृत्य कर मोरनी को प्रजनन केलिए तैयार करता है।Read Also–तेंदुए के बारे में जानिए 21 हैरानीजनक बातें1.मोर का वजन 4 से 6 किलोग्राम तक होता है।1.मोर झुंडों में रहना पसंद करता है एक झुण्ड में 6 से 10 तक मोर होते हैं।1.मोर किसान का अच्छा दोस्त माना जाता है क्योंकि यह फ़सलों को बर्बाद करने वाले कीटों को खाता है।
1.मोरनी हर वर्ष दो बार अंडे देती है जिनकी संख्या 6 से 8 तक होती है ।1.26 जनवरी 1963 को भारत सरकार के द्वारा राष्ट्रीय पक्षी घोषित किया गया ।2.भगवान शिव पुत्र कार्तिकेय मोर की सवारी करते है ।
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भारतीय मोरयानीला मोर(पावो क्रिस्टेटस)दक्षिण एशियाके देशी तीतर परिवार का एक बड़ा और चमकीले रंग का पक्षी है, दुनिया के अन्य भागों में यह अर्द्ध-जंगली के रूप में परिचित है। नर, मोर, मुख्य रूप से नीले रंग के होते हैं साथ ही इनके पंख पर चपटे चम्मच की तरह नीले रंग की आकृति जिस पर रंगीन आंखों की तरह चित्ती बनी होती है, पूँछ की जगह पंख एक शिखा की तरह ऊपर की ओर उठी होती है और लंबी रेलकी तरह एक पंख दूसरे पंख से जुड़े होने की वजह से यह अच्छीतरह से जाने जाते हैं। सख्त और लम्बे पंख ऊपर की ओर उठे हुए पंख प्रेमालाप के दौरान पंखे की तरह फैल जाते हैं। मादा में इस पूँछ की पंक्ति का अभाव होता है, इनकी गर्दन हरे रंग की और पक्षति हल्की भूरी होती है। यह मुख्य रूप से खुले जंगल या खेतों में पाए जाते हैं जहां उन्हें चारेके लिए बेरीज, अनाज मिल जाता है लेकिन यह सांपों, छिपकलियों और चूहे एवं गिलहरी वगैरह को भी खाते हैं। वन क्षेत्रों में अपनी तेज आवाज के कारण यह आसानी से पता लगालिए जाते हैं और अक्सर एक शेर की तरह एक शिकारी को अपनी उपस्थिति का संकेत भी देते हैं। इन्हें चारा जमीन पर ही मिल जाता है, यह छोटे समूहों में चलते हैं और आमतौर पर जंगल पैर पर चलते है और उड़ान से बचने की कोशिश करते हैं। यह लंबे पेड़ों पर बसेरा बनाते हैं। हालांकि यहभारतका राष्ट्रीय पक्षी है।




संरक्षण स्थिति

किसी प्रजाति कीसंरक्षण स्थितिइस संभावना की द्योतक हैकि वह प्रजाति वर्तमान में या निकट भविष्य में विलोपन से बची रहेगी। किसी प्रजाति के संरक्षण स्थिति के आकलन के लिए कई कारकों को ध्यान में रखा जाता है: न केवल के उस प्रजाति के शेष सदस्यों की संख्या, अपितु उसकी जनसंख्या में एक खास अवधि के दौरान समग्र वृद्धि या कमी, प्रजनन सफलता की दर, ज्ञात जोखिम आदि।संरक्षण स्थितिविलुप्त होने का जोखिमविलुप्तविलुप्तजंगल से विलुप्तसंकटग्रस्तगंभीर रूप से विलुप्तप्रायविलुप्तप्रायअसुरक्षितकम जोखिमसंरक्षण पर निर्भरसंकटासन्नखतरे से बाहरयह भी देखेंप्रकृति संरक्षण हेतु अंतरराष्ट्रीय संघIUCN लाल सूची

प्रकृति संरक्षण हेतु अंतरराष्ट्रीय संघIUCN लाल सूची

वैश्विक प्रणालीसंकटग्रस्त प्रजातियों की IUCN लाल सूची, एक सबसे बेहतरविश्वव्यापी संरक्षण स्थिति संबंधी सूचीयन और रैंकिंग प्रणाली है। इस प्रणाली में संकटग्रस्त प्रजातियों को तीन श्रेणियों में बांटा गया है: गंभीर रूप से विलुप्तप्राय (CR), विलुप्तप्राय (EN) और असुरक्षित (VU)। इसके साथ ही 1500 ई. से अब तक विलुप्त हो चुके और जंगल में विलुप्त हो चुके जीव भी सूचीबद्ध है। कम जोखिम वाले जीव भी श्रेणियों में विभाजित हैं। विलुप्तप्राय जीवों और वनस्पति के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का अंतर्राष्ट्रीय समझौता इस बात को सुनिश्चित करता है कि जंगली जानवरों और पौधों के नमूनों का व्यापार इन जीवों और वनस्पतियों के अस्तित्व को खतरे में ना डाल दे।राष्ट्रीय प्रणाली
भारतीय मोर का सामान्य पंख का सिरा। ये पंख प्रणय निवेदन के समय खड़े हो जाते हैं।भारतीय मोर उन कई मूल प्रजातियों में से एक है जिसका वर्णन 18 वीं सदी में लिनिअस द्वारा किए गए कामसिस्टम नेचरमें था और यह अभी तक अपने मूल नामपावो क्रिस्टेटससे जाना जाता है।[2]लैटिनजीनस नामपावोऔर ऐंगलो-सैक्शनपवे(जिसमें से "मयूर" शब्द व्युत्पन्न हुआ है) उनके मूल से ही इसके प्रतिध्वनित होने का विश्वास है और सामान्यतःपक्षी की आवाज के आधार पर होता है। प्रजाति का नामक्रिस्टेटसइसकी शिखा को संदर्भित करता है।[3]प्रारंभिक रूप से लिखित अंग्रेजी शब्द में इसका उपयोग 1300 प्रकार से हुआ है और इसकी वर्तनी में पेकोक, पेकोक, पेकोक्क, पाकोच्के, पोकोक्क, प्य्च्कोक्क, पौकोक्क, पोकॉक,पोकोक, पोकोक्के और पूकोक भिन्न प्रकार के शब्द शामिल हैं। वर्तमान वर्तनी 17 वीं सदी के अन्त में तय किया गया था। चौसर (1343-1400) शब्द का इस्तेमाल एक दंभी और आडंबरपूर्ण व्यक्ति की उपमा"प्राउड अ पेकोक"त्रोइलुस एंड क्रिसेय्डे (बुक I, लाइन 210)।[4]मोर के लिए यूनानी शब्द थाटओसऔर जो "तवूस" से संबंधित था(जैसे कितख्त-ए-तावोसप्रसिद्ध मयूर मुकुट के लिए)।[5]हिब्रू शब्दतुकी(बहुवचनतुक्कियिम) तमिल शब्दतेखसे आया है लेकिन कभी कभी मिस्र के शब्दतेखसे भी संकेत हुए हैं।[6][

नर, एक मोर के नाम से जाना जाता है, एक बड़ा पक्षी जिसकी लंबाई चोंच से लेकर पूंछ तक 100 के 115 सेमी (40-46 इंच) होती है और अन्त में एक बड़ा पंख 195 से 225 सेमी (78 से 90 इंच) और वजन 4-6 किलो (8.8-13.2 एलबीएस) होता है। मादा या मयूरी, कुछ छोटे लंबाई में करीब 95 सेम (38 इंच) के आसपास और 2.75-4 किलोग्राम (6-8.8 एलबीएस) वजन के होते हैं। उनका आकार, रंग और शिखा का आकार उन्हें अपने देशी वितरण सीमा के भीतर अचूक पहचान देती है। नर का मुकुटधातु सदृश नीला और सिर के पंख घुंघराले एवं छोटे होते हैं। सिर पर पंखे के आकार का शिखर गहरे काले तीर की तरह औरपंख पर लाल, हरे रंग का जाल बना होता है। आंख के ऊपर सफेद धारी और आँख के नीचे अर्धचन्द्राकार सफेद पैच पूरी तरह से सफेद चमड़ी से बना होता है। सिर के पक्षों पर इंद्रधनुषी नीले हरे पंख होते है। पीछे काले और तांबे के निशान के साथ शल्की पीतल -हरा पंख होता है। स्कंधास्थि औरपंखों का रंग बादामी और काला, शुरू में भूरा और बाद में काला होता है। पूंछ गहरे भूरे रंग का और ऊपर लम्बी पूंछ का "रेल" (200 से अधिक पंख, वास्तविक पूंछ पंख केवल 20) होता है और लगभग सभी पंखों पर एक विस्तृत आंख होती है। बाहरी पंख पर कुछ कम आंखें और अंत में इसका रंग काला और आकार अर्द्धचन्द्राकार होता है। नीचे का भाग गहरा चमकदार और पूंछ के नीचे हरे रंग की लकीर खींची होती है। जांघें भूरे रंग की होती हैं। नर के पैर की अंगुली और पिछले भाग के ऊपर पैर गांठ होती है।[8][9]वयस्क मोरनी के सिर पर मिश्रित-भूरे रंग का शिखर और नर का शिखर शाहबलूत हरे रंग के साथ होता है। ऊपरी भाग भूरा साथ में हल्का रंगबिरंगा होता है। प्राथमिक, माध्यमिक और पूंछ गहरे भूरे रंग के होते हैं। गर्दन धातु सदृश हरा और स्तन पंख गहरे भूरे रंग के साथ हरे रंग का होता है। निचले के बाकी हिस्से सफेद होते हैं।[8]युवा कोमल गहरे भूरे रंग का साथ ही गर्दन के पीछे का भाग पीला जिस पर आँखें बनीहोती हैं।[10]युवा नर मादाओं की तरह की तरह लगते हैं लेकिन पंखों का रंग बादामी होता है।[10][11]पक्षियों की आम पक्षियों आवाज बहुत तेजपिया-ओयामिया-ओहोती है।मानसूनके मौसम से पहले इनकी पुकारने की बारंबारता बढ़ जाती है और अधिक तेज शोर से परेशान होकर यहअलार्म की तरह आवाज निकालने लगते हैं। वन क्षेत्रों में, अपनी तेज आवाज के कारण यह अक्सर एक शेर की तरह एक शिकारी को अपनी उपस्थिति का संकेत भी देते हैं।[8][11]यह अन्य तरह की तेज आवाजें भी करते हैं जैसे किकां-कांया बहुत तेजकॉक-कॉक.


एक लयूसिस्टिक सफेद मोर कि कई पार्क में चयनात्मक प्रजनन द्वारा जार्डिन देस प्लांटस, पेरिस में इस एक जैसे बनाए रखा है। इस उत्परिवर्तन आमतौर पर एक सूरजमुखी मनुष्य के लिए गलत है।

एक मोर की "ओसल्लाते" पूंछ कोवेर्ट्सभारतीय मोर में कई प्रकार के रंग परिवर्तन होते हैं। जंगलों में यह बहुत मुश्किल से ही होता है, लेकिन चयनात्मक प्रजनन की अधीनता में यह आम होता है। शुरू में काले कंधों या जापान्ड उत्परिवर्तनपी.सी. निग्रिपेंनिस{/{/0}एक उपप्रजाति थी और डारविन के समय केदौरान एक विषय था। इस उत्परिवर्तन में नर काले पंखों के साथ कालि रुजा होते हैं जबकि मादा पर काले और भूरे रंग की आकृति श्वेत कोशिकाओं के साथ होते हैं।[10]लेकिन यह केवल जनसंख्या के भीतर आनुवंशिक भिन्नता का मामला है। अन्य प्रकार में शामिल है विचित्र और सफेद प्रकार जो विशिष्ट लोसी के ऐलेलिक के परिवर्तन के कारण है।



भारतीय मोर भारतीय उपमहाद्वीप का प्रजनक निवासी है और यहश्रीलंकाशुष्क तराई क्षेत्रों में पाया जाता है। दक्षिण एशिया में, यह 1800 मीटर की ऊंचाई के नीचे और कुछ दुर्लभ परिस्थिति में 2000 मीटर की ऊंचाई पर पाया जाता है।[15]यह नम और सूखी पर्णपाती जंगलों में पाया जाता है, लेकिन यह खेती क्षेत्रों में और मानव बस्तियों के आसपास रहने के अनुकूलित हैं और आमतौर पर वहां पाए जाते हैं जहांपानी उपलब्ध है। उत्तरी भारत के कई भागों में, जहां वे धार्मिक भावना द्वारा संरक्षित हैं और चारे के लिए गांवों और नगरों पर निर्भर करते हैं। कुछ लोगों ने सुझाव दिया है कि मोर,अलेक्जेंडर द ग्रेटद्वारा यूरोप में पेशकिया गया था,[16]जबकि अन्य सुझाव है कि पक्षी 450 ईसा पूर्व एथेंस पहुँचे थे और इससे पहले से भी वहां हो सकते हैं।[17]बाद में यह दुनिया के कई अन्य भागों में परिचित किए गए है और कुछ क्षेत्रों में यह जंगली जीव हैं।[11]व्यवहार और पारिस्थितिकीमोर अपने नर के असाधारण पंख प्रदर्शन पंख के कारण सर्वश्रेष्ठ तरीके से जाने जाते हैं, जो वास्तव में उनके पीछे की तरफ बढ़ते हैं और जिसे पूंछ समझ लिया जाता है। अत्यधिक लम्बी पूंछ की "रेल" वास्तविकता में ऊपरी अप्रकटभाग है। पूंछ भूरे रंग की और मोरनी की पूंछ छोटी होती है। पंखों की सूक्ष्म संरचना के परिणामस्वरूप रंगों की अद्भुत घटना परिलक्षित होती है।[18]नर की लंबी रेल पंख (और टार्सल स्पर) जीवन के दूसरे वर्ष के बाद ही विकसित होती हैं। पूरी तरह से विकसित पंख चार साल से अधिक उम्र के पक्षियों में पाए जाते हैं। उत्तरी भारत में, प्रत्येक के लिए यह फ़रवरी महीने के शुरू में विकसित होता है और अगस्त के अंत में गिर जाता है।[19]उड़ान भरनेवाले पंख साल भर में रहते हैं।[20]माना जाता है कि अलंकृत पंखों का प्रदर्शन यह मादाओं से प्रेमालाप और यौन चयन के लिए अपने पंखों को उठा कर उन्हेंआकर्षित करने के लिए करते हैं कई अध्ययनों से पता चला है कि पंखों की गुणवत्ता पर ही मादा नर की हालत का ईमानदार संकेत देखकर नर का चुनाव करती हैं। हाल के अध्ययनों से पता चला है कि मादा द्वारा नर के चुनाव में अन्य संकेत भी शामिल हो सकते हैं।[21][22]भारतीय होडल पर इम्मातुरेस साथ हरियाणा, भारत के फरीदाबाद जिले में मोरनीछोटे समूहों में मादाएं चारा चुगती हैं, जिसे मस्टर के रूप में जाना जाता है, आम तौर पर इनमें एक नर और 3-5 मादाएं होती हैं। प्रजनन के मौसम के बाद, झुंड में केवल मादा और युवा ही रहते हैं। यह सुबह खुले में पाए जाते हैं और दिन की गर्मी के दौरान छायादार स्थान में रहते हैं। गोधूलि बेला में वे धूल से स्नान के शौकीन होते हैं, पूरी झुंड एक पंक्ति में एक पसंदीदा जलस्थल पर पानी पीने जाते हैं। आमतौर पर जब वे परेशान होते हैं, भागते हैं और बहुत कम उड़ान भरते हैं।[11]मोर प्रजनन के मौसम में विशेष रूप से जोर से आवाज निकालतेहैं। रात को जब वे पड़ोसी पक्षियों को आवाज निकालते हुए सुनते हैं तो चिंतित होकर उसी श्रृंखला में आवाज निकालनेलगते हैं। मोर की सामान्यतः छह प्रकार के अलार्म की आवाज के अलावा करीब सात किस्म की आवाज अलग अलग लिंगों द्वारा निकाली गई आवाज को पहचाना जा चुका है।[23]मोर ऊँचे पेड़ों पर अपने बसेरे से समूहों में बांग भरते हैं लेकिन कभी कभी चट्टानों, भवनों या खंभों का उपयोग करते हैं। गिर के जंगल में, यह नदी के किनारे किसी ऊंची पेड़ को चुनते हैं।[24][25]गोधूलि बेला में अक्सर पक्षीअपने पेड़ों पर बने बसेरे पर से आवाज निकालते हैं।[26]बसेरे पर एकत्रित बांग भरने के कारण, कई जनसंख्या इन स्थलों पर अध्ययन करते हैं। जनसंख्या की संरचना की जानकारी ठीक प्रकार से नहीं है, उत्तरी भारत (जोधपुर) के एक अध्ययन के अनुसार, नरों की संख्या 170-210 प्रति 100 मादा है लेकिन दक्षिणी भारत (इंजर) में बसेरा स्थल पर शाम की गिनती के अनुसार 47 नरों के अनुपात में 100 मादाएं पाई गईं।[12]

प्रजनन

मोर बहुविवाही होते हैं और प्रजनन के मौसम फैला हुआ होता है लेकिन वर्षा पर निर्भर करता है। कई नर झील के किनारे एकत्र होते हैं औरअक्सर निकट संबंधी होते हैं।[27]झील पर नर अपना एक छोटा सा साम्राज्य बनाते हैं और मादाओं को वहां भ्रमण करने देते हैं और हरम को सुरक्षित करने का प्रयास नहीं करते हैं। मादा किसी विशिष्ट नर के साथ नहीं दिखाई देती हैं।[28]नर अपने पंखों को उठाकर प्रेमालाप के लिए उन्हें आमंत्रित करते हैं। पंख आधे खुले होते हैं और अधोमुख अवस्था में ही जोर से हिलाकर समय समय पर ध्वनि उत्पन्न करते हैं। नर मादा के चेहरे के सामने अकड़ता और कूदता है एवं कभी कभी चारों ओर घूमता है उसके बाद अपने पंखों का प्रदर्शन करता है।[11]नर भोजन दिखाकर भी मादा को प्रेमालाप के लिए आमंत्रित करते हैं।[29]नर मादा के नहोने पर भी यह प्रदर्शन कर सकते हैं। जब एक नर प्रदर्शन करता है, मादा कोई आकर्षण प्रकट नहीं करती और दाना चुगने का काम जारी रखती हैं।[12]दक्षिण भारत में अप्रैल-मई में, श्रीलंका में जनवरी-मार्च में और उत्तरी भारत में जून चरम मौसम है। घोंसले का आकार उथला और उसके निचले भाग में परिमार्जित पत्तियां, डालियां और अन्य मलबे होते हैं। घोंसले कभी कभी इमारतों पर भी होते हैं[30]और यह भीदर्ज किया गया है कि किसी त्यागे हुए प्लेटफार्मों और भारतीय सफेद गिद्ध द्वारा छोड़े गए घोंसलों का प्रयोग करते हैं घोंसलों में 4-8 हलके पीले रंग के अंडे होते हैंजिसकी देखभाल केवल मादा करती हैं। 28 दिनों के बाद अंडे से बच्चे बाहर आते हैं। चूजे अंडे सेने के बाद बाहर आते ही माँ के पीछे पीछे घूमने लगते हैं।[8]उनके युवा कभी कभी माताओं की पीठ पर चढ़ाई करते हैं और मादा उन्हें पेड़पर सुरक्षित पहुंचा देती है।[31]कभी-कभी असामान्य सूचनाभी दी गई है कि नर भी अंडे की देखभाल कर रहें हैं।[11][

आहार


मोर मांसभक्षी होते है और बीज, कीड़े, फल, छोटे स्तनपायी और सरीसृप खाते हैं। वे छोटे सांपों को खाते हैं लेकिन बड़े सांपों से दूर रहते हैं।[33]गुजरात के गिर वन में, उनके भोजन का बड़ा प्रतिशत पेड़ों पर से गिरा हुआ फलज़िज़िफसहोता है।[34]खेती के क्षेत्रों के आसपास, धान, मूंगफली, टमाटर मिर्च और केले जैसे फसलों का मोर व्यापक रूप से खाते हैं।[12]मानव बस्तियों के आसपास, यह फेकें गए भोजन और यहां तक कि मानव मलमूत्र पर निर्भर करते हैं।

मृत्युदर कारक
अपने 'जंगल में मोर' (1907) में थायेर सुझाव दिया है कि अलंकृत पूंछ छलावरण के लिए एक सहायता था

वयस्क मोर आमतौर पर शिकारियों से बचने के लिए उड़ कर पेड़पर बैठ जाते हैं। तेंदुए उनपर घात लगाए रहते हैं और गिर के जंगल में मोर आसानी से उनके शिकार बन जाते हैं।[25]समूहों में चुगने के कारण यह अधिक सुरक्षित होते हैं क्योंकि शिकारियों पर कई आँखें टिकी होती हैं।[35]कभी कभी वे बड़े पक्षियों जैसे ईगल हॉक अस्थायी और रॉक ईगल द्वारा शिकार कर लिए जाते हैं।[36][37]य़ुवा के शिकार होने का खतरा कम रहता है। मानव बस्तियों के पास रहने वालेवयस्क मोरों का शिकार कभी कभी घरेलू कुत्ते द्वारा किया जाता है, (दक्षिणी तमिलनाडु) में कहावत है कि मोर के तेल लोक उपचार होता है।[12]कैद में, पक्षियों की उम्र 23 साल है लेकिन यह अनुमान है कि वे जंगलों में 15 साल ही जीवित रहते हैं।[38]


संरक्षण और स्थिति
मोर धूमधाम, गर्व और घमंड के साथ जुड़ा हुआ बन के रूप में दिखाया गया है में इस के "सर फलक मयूर" जे जे ग्रंद्विल्ले के काम पर आधारित कारटूनवाला

भारतीय मोर व्यापक रूप से दक्षिण एशिया के जंगलों में पाए जाते हैं और भारत के कई क्षेत्रों में सांस्कृतिक और कानून दोनों के द्वारा संरक्षित हैं। रूढ़िवादी अनुमान है कि इनकी जनसंख्या के 100000 से अधिक है।[39]मांस केलिए अवैध शिकार तथापि जारी है और भारत के कुछ भागों में गिरावट नोट किया गया है।[40]नर ग्रीन मोर,पावो मुतीकुसऔर मोरनी की सन्तानें हाईब्रिड होती हैं, जिसे कैलिफोर्निया की श्रीमती कीथ स्पाल्डिंग के नाम पर स्पाल्डिंग पुकारा जाता है।[41]यहां एक समस्या हो सकती है अगर जंगलों में अज्ञात पक्षियों से वंशावली जारी रहे तो हाईब्रिडों की संख्या कम होने लगेगी (देखें हल्दाने'स रूल और आउट ब्रिडिंग डीप्रेशनबीज कीटनाशक, मांस के कारण अवैध शिकार, पंख और आकस्मिक विषाक्तता के कारण मोर पक्षियों की जान को खतरा है।[42]इनके द्वारा गिराए पंखों की पहचान कर उसे संग्रह करने की अनुमति भारतीय कानून देता है।[43]भारत के कुछ हिस्सों में यह पक्षी उपद्रव करते हैं, कई जगह ये फसलों और कृषि को क्षति पंहुचाते हैं।[11]बगीचों और घरों में भी इनके कारण समस्याएं आती है जहाँ वे पौधों, अपनी छवि को दर्पण में देखकर तोड़ देना, चोंच से कारों को खरोंच देना या उन पर गोबर छोड़ देते है। कई शहरों में, जंगली मोर प्रबंधन कार्यक्रम शुरू किया गया है। नागरिकों को शिक्षित किया जाना चाहिए कि पक्षियों के उपचार में शामिल हों और उन्हें नुकसान करने से कैसे रोकें.

संस्कृति में

मुरुगन या स्कंद की प्रतिमा तिरुवोत्तियुर पर मंदिर सेकई संस्कृतियों में मोर को प्रमुख रूप से निरूपित किया गया है, अनेक प्रतिष्ठिानों में इसे आईकन के रूप में प्रयोग किया गया है, 1963 में इसे भारत का राष्ट्रीय पक्षी घोषित किया गया।[11]मोर, कोसंस्कृतमेंमयूरकहतेहैं, भारत में अक्सर इसे परंपराओं, मंदिर में चित्रित कला,पुराण, काव्य, लोक संगीत में जगह मिली है।[47]कई हिंदू देवता पक्षी के साथ जुड़े हैं,कृष्णाके सिर पर मोर का पंख बंधा रहता, जबकि यहशिवका सहयोगी पक्षी है जिसे गॉड ऑफ वॉर कार्तिकेय (स्कंद या मुरुगन के रूप में) भी जाने जाते हैं। बौद्ध दर्शन में, मोर ज्ञान का प्रतिनिधित्व करता है।[48]मोर पंख का प्रयोग कई रस्में और अलंकरण में किया जाता है। मोर रूपांकनों वस्त्रों, सिक्कों, पुराने और भारतीय मंदिर वास्तुकला और उपयोगी और कला के कई आधुनिक मदों में इसका प्रयोग व्यापक रूप से होता है।[17]ग्रीक पौराणिक कथाओं में मोर का जिक्र मूल अर्गुस और जूनो की कहानियों में है।[41]सामान्यतः कुर्द धर्म येज़ीदी के मेलेक टॉस के मुख्य आंकड़े में मोर को सबसे अधिक रूप से दिखाया गया है।[49][50]मोर रूपांकनों को अमेरिकी एनबीसी टेलीविजन नेटवर्क और श्रीलंका के एयरलाइंस में व्यापक रूप से इस्तेमाल किया गया है।जूनो और अर्गुस, रूबेंस द्वारा (1620 ग)इन पक्षियों को पिंजरे में अक्सर और बड़े बगीचों और गहनों के रूप में रखा गया है। बाइबिल में एक संदर्भ में राजा सुलैमान (I किंग, चैप्टर X 22 और 23) के स्वामित्व में मोर का उल्लेख है। मध्यकालीन समय में, यूरोप में शूरवीर "मयूर की शपथ" लिया करते थे और अपने हेलमेट को इसके पंखों से सजाते थे। पंख को विजयी योद्धाओं के साथ दफन किया जाता था[51]और इस पक्षी के मांस से सांप के जहर और अन्य कई विकृतियों का इलाज किया जाता था।[51]आयुर्वेदमें इसके कई उपयोग को प्रलेखित किया गया है। कहा जाता है कि मोर के रहने से क्षेत्र सांपों से मुक्त रहता है।[52]मोर और मोरनी के रंग में अंतर की पहेली के विरोधाभास पर कई विचारक सोचने लगे थे।चार्ल्स डार्विनने आसा ग्रे को लिखा है कि" जब भी मैं मोर के पंखों को टकटकी लगा कर देखता हूं, यह मुझे बीमार बनाता है !"वह असाधारण पूंछ के एक अनुकूली लाभ को देखने में असफल रहे थे जिसे वह केवल एक भार समझते थे। डार्विन को 'यौन चयन "का एक दूसरा सिद्धांत विकसित करने के लिए समस्या को सुलझाने की कोशिश की. 1907में अमेरिकी कलाकार अब्बोत्त हन्देरसों थायेर ने कल्पनासे अपने ही में छलावरण से पंखों पर बने आंखो के आकार को एकचित्र में दर्शाया.[53]1970 में यह स्पष्ट विरोधाभास ज़हावी अमोत्ज़ के सिद्धांत बाधा और हल आधारित ईमानदार संकेतन इसके विकास पर लिखा गया, हालांकि यह हो सकता है कि सीधे वास्तविक तंत्र -हार्मोनके कारण शायद पंखों का विकास हुआ हो और जोप्रतिरक्षा प्रणालीको दबाता हो.[54][55]1850 के दशक मेंएंग्लो इंडियनसमझते थे कि सुबह मोर देखने का मतलब है दिनभर सज्जनों और देवियों का दौरा चलता रहेगा. 1890 में, ऑस्ट्रेलिया में "पीकॉकिंग" का अर्थ थाजमीन का सबसे अच्छा भाग ("पीकिंग द आईज़") खरीदा जाएगा.[56]अंग्रेजी शब्द में "मोर" का संबध ऐसे व्यक्ति से किया जाता था जो अपने कपड़ों की ओर ध्यान दिया करता था और बहुत दंभी था।


मोर पर निबंध



मोर पर निबंधJune 19, 2016मोर भारत का राष्ट्रीय पक्षी है। मोर एक बहुत ही सुंदर, आकर्षक और जमीन पर रहने वाला पक्षी है। मोर को मयूर भी कहा जाता है। मोर की पंख बहुत ही आकर्षक होता हैं और मोर के पास बहुत सारे पंख होते हैं। मोर वैसे तो पंख नहीं फैलाता है लेकिन बसंत ऋतु और वर्षा ऋतु में मोर जब खुशी से नाचता है तो वह अपने सारे पंख फैला लेता है, पंख फैलाने के बाद मोर काफी सुंदर दिखता है। मोर का पंख सभी को पसंद आता है। मोर के पंख को सजावट का सामान के रूप मेंइस्तेमाल किया जाता है। कृष्ण भगवान अपने सिर पर मोर पंख लगाते थे जो सभी लोगों को बहुत ही लुभाता है। मोर का पंख बच्चों को भी बहुत ज्यादा पसंद है, कई बच्चे मोर के पंख को अपनी किताबों में रखते हैं। पुराने जमाने में कालिदास भी मोर के पंख से लिखा करते थे।मोर ज्यादातर जंगलों में रहता हैं और वह जमीन पर ही रहताहैं, मोर घोंसला नहीं बनाता है। मोर को सांप खाना बहुत पसंद है। मोर को देखते ही लोगों का मन खुश हो जाता है। मोर का पंख इतना सुंदर होता है कि उसका जवाब नहीं, लगता है मानो कोई बहुत बड़े कलाकार ने मोर के पंख की सजावट की है। नर मोर के कई पंख होते हैं जिसे सभी लोग पसंद करते हैं। मादा मोरनी के पंख नहीं होते हैं। बहुत सारे गहने भी मोर के पंख की तरह दिखने वाले बनाए जाते हैं। कई सारे कुर्सियों के पीठ वाला हिस्सा मोर पंख के डिजाइन में बनाया जाता है, लोगों को यह देखने में बहुत सुंदर लगता है। मोर को पक्षियों का राजा भी कहा जाता है। नर मोर के सिर पर बड़ी सी कलंगी बना होता है जो देखने में मुकुट की तरह होता है, मोर दिखने में सही में एक राजा की तरह होता है। मोर सिर्फ भारत का ही राष्ट्रीय पक्षी नहीं है, वह म्यानमार का भी राष्ट्रीय पक्षी है।

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