Sunday 31 December 2017

**मधुमक्खी (honey bee)**

**मधुमक्खी (honey bee)**

मधुमक्खीकीट वर्गका प्राणी है। मधुमक्खी सेमधुप्राप्त होता है जो अत्यन्त पौष्टिक भोजन है। यह संघ बनाकर रहती हैं। प्रत्येक संघ में एक रानी, कई सौ नर और शेष श्रमिक होते हैं। मधुमक्खियाँ छत्ते बनाकर रहती हैं। इनका यह घोसला (छत्ता)मोमसे बनता है। इसकेवंशएपिस में 7 जातियां एवं 44 उपजातियां हैं।

*******************संरक्षण स्थिति*********************


****************खतरे से बाहर(IUCN)*****************

वैज्ञानिक वर्गीकरण

जगत(रेगन्म):जंतुसंघ(फाइलम):सन्धिपादवर्ग(क्लास):कीटगण(ऑर्डर):कलापक्षकुल(फैमिली):एपीडीवंश(जीनस):एपिसजाति:*†ऍपिस लिथोहर्मिया*.†ऍपिस नियरेक्टिका*.उपजातिमाइक्रापिस:*.ऍपिस एन्ड्रनिफोर्मिस*.ऍपिस फ़्लॉरिया*.उपजातिमॅगापिस:*.एपिस डोरसॅटा*.उपजातिऍपिस':*.ऍपिस सेराना*.ऍपिस कॉशेव्निकोवी*.ऍपिस मेलिफेरा*.ऍपिस नाइग्रोसिन्क्ट

(कार्ल लीनियस, 1758)

प्रजातियाँजंतु जगत में मधुमक्खी ‘आर्थोपोडा’ संघ का कीट है। विश्व में मधुमक्खी की मुख्य पांच प्रजातियां पाई जाती हैं। जिनमें चार प्रजातियां भारत में पाई जाती हैं। मधुमक्खी की इन प्रजातियों से हमारे यहां के लोग प्राचीन काल से परिचित रहे हैं। इसकी प्रमुख पांच प्रजातियां हैं :|||
भुनगा या डम्भर (Apis melipona)यह आकार में सबसे छोटी और सबसे कम शहद एकत्र करने वाली मधुमक्खी है। शहद के मामले में न सही लेकिन परागण के मामले में इसका योगदान अन्य मधुमक्खियों से कम नहीं है। इसके शहद का स्वाद कुछ खट्टा होता है। आयुर्वेदिक दृष्टिसे इसका शहद सर्वोत्तम होता है क्योंकि यह जड़ी बूटियों के नन्हें फूलों, जहां अन्य मधुमक्खियां नहीं पहुंच पातीहैं, से भी पराग एकत्र कर लेती हैं।भंवर या सारंग (Apis dorsata)इसे देश के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग नाम से जाना जाताहै। उत्तर भारत में ‘भंवर’ या ‘भौंरेह’ कहते हैं। दक्षिण भारत में इसे ‘सारंग’ तथा राजस्थान में ‘मोम माखी’ कहते हैं। ये ऊंचे वृक्षों की डालियों, ऊंचे मकानों, चट्टानों आदि पर विषाल छत्ता बनाती हैं। छत्ता करीब डेढ़ से पौने दो मीटर तक चौड़ा होता है। इसका आकार अन्य भारतीय मधुमक्खियों से बड़ा होता है। अन्य मधुमक्खियों के मुकाबले यह शहद भी अधिक एकत्र करती हैं। एक छत्ते से एक बार में 30 से 50 किलोग्राम तक शहद मिल जाता है। स्वभाव से यह अत्यंत खतरनाक होती हैं। इसे छेड़ देने पर या किसी पक्षी द्वारा इसमें चोट मार देने पर यह दूर-दूर तक दौड़ाकर मनुष्यों या उसके पालतू पषुओं का पीछा करती हैं।अत्यंत आक्रामक होने के कारण ही यह पाली नहीं जा सकती। जंगलों में प्राप्त शहद इसी मधुमक्खी की होती है।पोतिंगा या छोटी मधुमक्खी (Apis florea)यह भी भंवर की तरह ही खुले में केवल एक छत्ता बनाती है। लेकिन इसका छत्ता छोटा होता है और डालियों पर लटकता हुआ देखा जा सकता है। इसका छत्ता अधिक ऊंचाई पर नहीं होता। छत्ता करीब 20 सेंटीमीटर लंबा और करीब इतना ही चौड़ा होता है। इससे एक बार में 250 ग्राम से लेकर 500 ग्राम तक शहद प्राप्त हो सकता है।खैरा या भारतीय मौन (Apis cerana indica)इसे ग्रामीण क्षेत्रों में मधुमक्खी की प्रजातियां ‘सतकोचवा’ मधुमक्खी कहते हैं। क्योंकि ये दीवारों या पेड़ों के खोखलों में एक के बाद एक करीब सात समानांतर छत्ते बनाती हैं। यह अन्य मधुमक्खियों की अपेक्षा कम आक्रामक होती हैं। इससे एक बार में एक-दो किलोग्राम शहद निकल सकता है। यह पेटियों में पाली जा सकती है। साल भर में इससे 10 से 15 किलोग्राम तक शहद प्राप्त हो सकती है।यूरोपियन मधुमक्खी (Apis mellifera)इसका विस्तार संपूर्ण यूरोप, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और अफ्रीका तक है। इसकी अनेक प्रजातियां जिनमें एक प्रजाति इटैलियन मधुमक्खी (Apis mellifera lingustica) है। वर्तमान में अपने देश में इसी इटैलियन मधुमक्खी का पालन हो रहा है। सबसे पहले इसे अपने देश में सन् 1962 में हिमाचल प्रदेश में नगरौटा नामक स्थान पर यूरोप से लाकर पाला गया था। इसके पश्चात 1966-67 में लुधियाना (पंजाब)में इसका पालन शुरू हुआ। यहां से फैलते-फैलते अब यह पूरे देश में पहुंच गई है। इसके पूर्व हमारे देश में भारतीय मौन पाली जाती थी। जिसका पालन अब लगभग समाप्त हो चुका है।कृषि उत्पादन में मधुमक्खियों का महत्त्वपरागणकारी जीवों में मधुमक्खी का विषेष महत्त्व है। इस संबंध में अनेक अध्ययन भी हुए हैं। सी.सी. घोष, जो सन् 1919 में इम्पीरियल कृषि अनुसंधान संस्थान में कार्यरतथे, ने मधुमक्खियों की महत्ता के संबंध में कहा था कि यह एक रुपए कीशहदवमोमदेती है तो दस रुपए की कीमत के बराबरउत्पादन बढ़ा देती है।भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान,नईदिल्लीमें कुछ फसलों पर परागण संबंधी परीक्षण किए गए।सौंफमें देखा गया कि जिन फूलों का मधुमक्खी द्वारा परागीकरण होने दिया गया उनमें 85 प्रतिशत बीज बने। इसके विपरीत जिन फूलों को मधुमक्खी द्वारा परागित करने से रोका गया उनमें मात्र 6.1 प्रतिशत बीज ही बने थे। यानी मधुमक्खी, सौंफ के उत्पादन को करीब 15 गुना बढ़ा देती है।बरसीममें तो बीज उत्पादन की यह बढ़ोत्तरी 112 गुना तथा उनके भार में 179 गुना अधिक देखी गई।सरसोंकी परपरागणी 'पूसा कल्याणी' जाति तो पूर्णतया मधुमक्खी के परागीकरण पर ही निर्भर है। फसल के जिन फूलों में मधुमक्खी ने परागीकृत किया उनके फूलों से औसतन 82 प्रतिशत फली बनी तथा एक फली में औसतन 14 बीज और बीज का औसत भार 3 मिलिग्राम पाया गया। इसके विपरीत जिन फूलों कोमधुमक्खी द्वारा परागण से रोका गया उनमें सिर्फ 5 प्रतिशत फलियां ही बनीं। एक फली में औसत एक बीज बना जिसकाभार एक मिलिग्राम से भी कम पाया गया। इसी तरह तिलहन की स्वपरागणी किस्मों में उत्पादन 25-30 प्रतिशत अधिक पाया गया।लीची,गोभी,इलायची,प्याज,कपासएवं कई फलों पर किए गए प्रयोगों में ऐसे परिणाम पाए गए।मधुमक्खी परिवारएक साथ रहने वाली सभी मधुमक्खियां एक मौनवंश (कॉलोनी) कहलाती हैं। एक मौनवंश में तीन तरह की मधुमक्खियां होती हैं : (1) रानी, (2) नर तथा (3) कमेरी।रानीएक मौनवंश में हजारों मधुमक्खियां होती हैं। इनमें रानी (क्वीन)केवल एकहोती है। यही वास्तव में पूर्ण विकसित मादा होती है। पूरे मौनवंश में अंडे देने का काम अकेली रानी मधुमक्खी ही करती है। यह आकार में अन्य मधुमक्खियोंसे बड़ी और चमकीली होती है जिससे इसे झुंड में आसानी से पहचाना जा सकता है।नर मधुमक्खीमौसम और प्रजनन काल के अनुसार नर मधुमक्खी (ड्रोन) की संख्या घटती-बढ़ती रहती है। प्रजनन काल में एक मौनवंष में ये ढाई-तीन सौ तक हो जाते हैं जबकि विपरीत परिस्थितियों में इनकी संख्या शून्य तक हो जाती है। इनकाकाम केवल रानी मधुमक्खी कागर्भाधानकरना है। गर्भाधान के लिए यद्यपि कई नर प्रयास करते हैं जिनमें एक ही सफल हो पाता है।कमेरी मधुमक्खीकिसी मौनवंश में सबसे महत्त्वपूर्ण मधुमक्खियां कमेरी (वर्कर) ही होती हैं। ये फूलों से रस ले आकरशहदतो बनाती ही हैं साथ-साथ अंडे-बच्चों की देखभाल और छत्ते के निर्माण का कार्य भी करती हैं।

मधुमक्खी पालन


व्यावसायिक स्तर के मधुमक्खीपालन में लगा एक व्यक्ति

मधु,परागकणआदि की प्राप्ति के लियेमधुमक्खियाँपाली जातीं हैं। यह एक क्रिषि आधारित उद्योग है। मधुमक्खियांफूलोंके रस को शहद में बदल देती हैं और उन्हें अपने छत्तों में जमा करती हैं। जंगलों से मधु एकत्र करने की परंपरा लंबे समय से लुप्त हो रही है। बाजार में शहद और इसके उत्पादों की बढ़ती मांग के कारण मधुमक्खी पालन अब एक लाभदायक और आकर्षक उद्यम के रूप में स्थापित हो चला है। मधुमक्खी पालन के उत्पाद के रूप में शहद और मोम आर्थिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं।मधुमक्खी पालन के लाभ*.पुष्परस व पराग का सदुपयोग, आय व स्वरोजगार का सृजन |*.शुद्व मधु, रायल जेली उत्पादन, मोम उत्पादन, पराग, मौनी विष आदि |*.३ बगैर अतिरिक्त खाद, बीज, सिंचाई एवं शस्य प्रबन्ध के मात्र मधुमक्खी के मौन वंश को फसलों के खेतों व मेड़ों पर रखने से कामेरी मधुमक्खी के पर परागण प्रकिया से फसल, सब्जी एवं फलोद्यान में सवा से डेढ़ गुना उपज में बढ़ोत्तरी होती है |*.मधुमक्खी उत्पाद जैसे मधु, रायलजेली व पराग के सेवन से मानव स्वस्थ एवं निरोगित होता है | मधु का नियमित सेवन करने से तपेदिक, अस्थमा, कब्जियत, खूल की कमी, रक्तचाप की बीमारी नहीं होती है | रायल जेली का सेवन करने से ट्यूमर नहीं होता है और स्मरण शक्ति व आयु में वृद्वि होती है | मधु मिश्रित पराग का सेवन करने से प्रास्ट्रेटाइटिस की बीमारी नहीं होती है | मौनी विष से गाठिया, बताश व कैंसर की दवायें बनायी जाती हैं | बी- थिरैपी से असाध्य रोगों का निदान किया जाता है |*.मधुमक्खी पालन में कम समय, कम लागत और कम ढांचागत पूंजी निवेश की जरूरत होती है,*.कम उपजवाले खेत से भी शहद और मधुमक्खी के मोम का उत्पादन किया जा सकता है,*.मधुमक्खियां खेती के किसी अन्य उद्यम से कोई ढांचागतप्रतिस्पर्द्धा नहीं करती हैं,*.मधुमक्खी पालन का पर्यावरण पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। मधुमक्खियां कई फूलवाले पौधों के परागण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। इस तरह वे सूर्यमुखी और विभिन्न फलों की उत्पादन मात्रा बढ़ाने में सहायक होती हैं,*.शहद एक स्वादिष्ट और पोषक खाद्य पदार्थ है। शहद एकत्र करने के पारंपरिक तरीके में मधुमक्खियों के जंगली छत्ते नष्ट कर दिये जाते हैं। इसे मधुमक्खियोंको बक्सों में रख कर और घर में शहद उत्पादन कर रोका जा सकता है,*.मधुमक्खी पालन किसी एक व्यक्ति या समूह द्वारा शुरू किया जा सकता है,*.बाजार में शहद और मोम की भारी मांग है।इतिहासवैज्ञानिक तरीके से विधिवत मधुमक्खी पालन का काम अठारहवीं सदी के अंत में ही शुरू हुआ। इसके पूर्व जंगलों से पारंपरिक ढंग से ही शहद एकत्र किया जाता था। पूरी दुनिया में तरीका लगभग एक जैसा ही था जिसमें धुआं करके, मधुमक्खियां भगा कर लोग मौन छत्तों को उसके स्थान से तोड़ कर फिर उसे निचोड़ कर शहद निकालते थे। जंगलों में हमारे देश में अभी भी ऐसे ही शहद निकाली जाती है।मधुमक्खी पालन का आधुनिक वैज्ञानिक तरीका पष्चिम की देन है। यह निम्न चरणों में विकसित हुआ :*.सन् 1789 मेंस्विटजरलैंडके फ्रांसिस ह्यूबर नामकव्यक्ति ने पहले-पहल लकड़ी की पेटी (मौनगृह) में मधुमक्खी पालने का प्रयास किया। इसके अंदर उसने लकड़ी के फ्रेम बनाए जो किताब के पन्नों की तरह एक-दूसरे से जुड़े थे।*.सन् 1851 में अमेरिका निवासी पादरी लैंगस्ट्राथ नेपता लगाया कि मधुमक्खियां अपने छत्तों के बीच 8 मिलिमीटर की जगह छोड़ती हैं। इसी आधार पर उन्होंने एक दूसरे से मुक्त फ्रेम बनाए जिस पर मधुमक्खियां छत्ते बना सकें।*.सन् 1857 में मेहरिंग ने मोमी छत्ताधार बनाया। यह मधुमक्खी मोम की बनी सीट होती है जिस पर छत्ते की कोठरियों की नाप के उभार बने होते हैं जिस पर मधुमक्खियां छत्ते बनाती हैं।*.सन् 1865 में ऑस्ट्रिया के मेजर डी. हुरस्का ने मधु-निष्कासन यंत्र बनाया। अब इस मशीन में शहद से भरे फ्रेम डाल कर उनकी शहद निकाली जाने लगी। इससे फ्रेम में लगे छत्ते एकदम सुरक्षित रहते हैं जिन्हेंपुनः मौन पेटी में रख दिया जाता है।*.सन् 1882 में कौलिन ने रानी अवरोधक जाली का निर्माणकिया जिससे बगछूट और घरछूट की समस्या का समाधान हो गया। क्योंकि इसके पूर्व मधुमक्खियां, रानी मधुमक्खी सहित भागने में सफल हो जाती थीं। लेकिन अब रानी का भागना संभव नहीं था।

मधुमक्खी के बारे में अनोखी मजेदार रोचक जानकारी और तथ्य।

मधुमक्खी से जुड़े हुए रोचक तथ्य और मजेदार जानकारी जानने के लिए जरूर पढ़े यहलेख। Interesting Information & Facts about Honey bee in Hindi. मधुमक्खी के बारे में जानिए सबकुछ।क्या एक मधुमक्खी दूसरी मधुमक्खी के डंक मार सकती है? इस सवाल का जवाब और मधुमक्खियों के बारे में आइए जानते हैं ढेर सारे facts…मधुमक्खियां एक छुपा हुआ खतरा है जो पता भी नहीं चलता कब हमला कर देती हैं। दुनिया के हर कोने में पाई जाती है। मधुमक्खियां ट्रिलियन की संख्या में दुनिया भर में मौजूद हैं। यह इंसानों की तरह अपने शहर और कॉलोनी बनाती है। यह मनुष्य से भी लाखों साल पहले धरती पर पाई जाती थी। धरती पर सबसे पहले सेल्यूलर टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल मधुमक्खियों ने ही किया था। मधुमक्खियों के बारे में बहुत सारे लोग बचपन में ही जान लेते हैं। कभी बुक्स में कभी पढ़ाई की किताबों में कभी कार्टून फिल्म में हम इन्हें देखते रहते हैं। या फिर फूलों पर मंडराते हुए इन्हें देखते हैं।मधुमक्खियों की एक कॉलोनी में लगभग 60000 मधुमक्खियां एक साथ रहती हैं। जिनमें से कुछ नर्स मधुमक्खियां होती है, जो बच्चों का ख्याल रखती है। कुछ नौकर मधुमक्खियां होती हैं जो रानी मधुमक्खी की सेवा करती हैं। कुछ रक्षक मधुमक्खियां होती है जो सिक्योरिटी का काम करती हैं। इसके अलावा मधुमक्खियों का एक ग्रुप ऐसा भी होता है, जिसका काम मरी हुई मधुमक्खियों को बाहर फेंकना होता है। इनको अंडरटेकर bees कहते हैं।जो शहद हम मजे के साथ खाते हैं, एक मधुमक्खी अपनी पूरी जिंदगी में एक चम्मच शहद का बारहवां हिस्सा ही बना पाती है। जब रानी मधुमक्खी पैदा होती है तो पैदा होने के 20 दिन के अंदर ही उसे नर मधुमक्खी के साथ संबंध बनाने पड़ते हैं। अगर वह 20 दिनके अंदर नर मधुमक्खी के साथ मिलाप ना करे तो वह कभी मां नहीं बन सकती। लेकिन रानी मधुमक्खी एक मिलाप के अंदर ही इतना ज्यादावीर्य अपने अंदर इकट्ठा कर लेती है। की अगले 4 सालों तक लगातार अंडे देने लगती है। एक रानी मधुमक्खी 1 दिन में तकरीबन 1000 अंडे देती रहती हैं। मेल मधुमक्खी जिन्हें Drone bee कहा जाता है, रानी मधुमक्खी के साथ संबंध बनाने के तुरंत बादही वह मर जाते हैं।एक पाउंडशहदजमा करने के लिए मधुमक्खियोंको 2 मिलियन फूलों का चक्कर लगाना पड़ता है। और 2 मिलियन फूलों पर आने जाने के लिए,मधुमक्खियां जितना सफर तय करती है, इतने में दुनिया के 3 चक्कर लगाए जा सकते हैं।आज से कुछ साल पहले Cornell University केएक स्टूडेंट ने मधुमक्खियों के साथ एक्सपेरिमेंट किया था। उसने मधुमक्खियों से अपने शरीर के अलग-अलग हिस्सों पर ढंग मरवाया था। यह जानने के लिए कि शरीर के किसहिस्से पर मधुमक्खियों के द्वारा डंक मारे जाने पर सबसे ज्यादा दर्द होता है। उस स्टूडेंट में यहां तक कि अपने लिंग पर भी डंक मरवाया था। उसका यह कहना था कि, “मैंने सोचा था कि सबसे ज्यादा मधुमक्खी के डंक मारने का दर्द गुप्तांग पर होगा। लेकिन मुझे निराशा हुई की private part में इतना दर्द नहीं हुआ था।” उसने कहा कि सबसे ज्यादा डंक का दर्द नाक के अंदर हुआ था।अब हम अपने सवाल के सबसे करीब आ गए हैं।क्या एक मधुमक्खी दूसरी मधुमक्खी के डंक मार सकती है? इसका जवाब है हां, इसके कई कारण हैं, जैसे कि मनुष्य आपस में युद्ध करते हैं, इसी तरह शहद की मधुमक्खियों में भी आपस में जंग होती है। एक दूसरे के छत्तों पर शहद चुराने के लिए हमला करती हैं। हमला करने वाली मधुमक्खियां जब दूसरे मधुमक्खियों के छत्ते में प्रवेश करने की जब कोशिश करती है, तो पहरेदार मधुमक्खियां उन पर अटैक करती हैं। एक दूसरे को डंक मारती है, लेकिन डंक मारने सेज्यादा वह मुंह से काट कर ही मधुमक्खियों को भगा देती है। मजेदार बात यह है कि हमला करने वाली मधुमक्खियों में से कुछ मधुमक्खियां छत्ते में दाखिल हो जाती हैं और वह मधुमक्खियां भी उसी छत्ते का मेंबर भी बन जाती है।मधुमक्खियों का हमला करने वाली मधुमक्खियों से युद्ध करने का तरीका यह है। की वह उड़कर दुश्मनों के इर्द गिर्द एक दायरा बनाकर तेजी के साथ उड़ती रहती है। और अपने पंख हिलाती रहती है, जिस से चक्कर के अंदर कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ जाती है। जिससे सर्कल के अंदर वाली मधुमक्खियां गर्मी की वजह और ऑक्सीजन की कमी से मर जाती है।शहद की मक्खियां कुछ देशों में 75% से 80 प्रतिशत तक फूलों, सब्जियों और मेवों का परागण करती है। यानी यह कहा जा सकता है कि, अगर पूरी दुनिया से मधुमक्खियां समाप्त हो जाए तो दुनिया खत्म हो जाएगी। दुनिया को चलाने के लिए इतने बड़े प्रयास के बावजूद हम इन्हें सिर्फ शहद की मक्खियों के रूप में ही जानते हैं।मधुमक्खी शहद कैसे बनाती है?एक नॉर्मल और हेल्दी मधुमक्खी का छत्ता 1 साल के अंदर 50 किलो तक शहद बना सकता है। शहद बनाने के लिए मधुमक्खियों को बहुत ही ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है। शहद अमृत यानी फूलों के रस (Nectar) से बनता है। मधुरस को फूलों से निकालना आसान नहीं है, पहले तो यह मधुमक्खियां एक अच्छा सा फूल ढूंढती हैं। जिसके मिलने के बाद वह फूल के अंदर जाती है, फिर वह अपना डंक उसमें डाल देती है। और वह फूलों के रस यानी अमृत को चूस कर अपने पेट में जमा करती है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि मधुमक्खियों केदो पेट होते हैं। एक नॉर्मल पेट और दूसरा शहद जमा करने के लिए पेट। अमृत यानी मधुरस को शहद जमा करने वाले पेट में भरा जाता है, और थोड़ा सा फूलों का रस उनके नॉर्मल पेट में भी जमा होता है अगर उन्हें भूख लगी हो तो।अपने शहद वाला पेट, फूलों के रस (अमृत) से पूरा भरने के लिए एक मधुमक्खी को लगभग 1000 फूलों से जमा करना पड़ता है। शहद वाला पेट इतना भर सकता है जितना कि मधुमक्खी का अपना खुद का वजन होता है। जब मधुमक्खियां वापिस अपने छत्ते की ओर आती है, तो रास्ते में उसके बॉडी के एंजाइम उस फूलों के रस यानी अमृत को मीठे और सुनहरे शहद में बदल देते हैं।शहद के छत्ते पर पहुंचने के बाद मधुमक्खी अपने पेट में जमा हुए शहद को दूसरे मधुमक्खी के मुंह में उल्टी कर देती हैं। और वह मधुमक्खियां दूसरी मधुमक्खियों के मुंह में शहद की उल्टी करती रहती हैं। यह प्रक्रिया चलती रहती है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि मधुमक्खियों द्वारा एक दूसरे के मुंह में उल्टी करने की प्रक्रिया शहद बनाने के लिए सबसे जरूरी है। जिससे फूलों के रस यानी अमृत से बने हुए सुनहरे मीठे शहद में और एंजाइम्स जमा होते चले जाते हैं। जिससे वह ज्यादा से ज्यादा और शुद्ध शहद बनता चला जाता है।केमिकली की बात करें तो इस प्रोसेस के दौरान कच्चा मधुरस, Simple Monosaccharides में परिवर्तित होता है, जैसे की ग्लूकोज़ या फ्रक्टोज। इस दौरान शहद बहुत ज्यादा गीला होता है, जिसको मधुमक्खियां शहद के छत्ते में जमा करने के दौरान अपने पंखों की मदद से शहद में मौजूद पानी को सुखा देती है। जिसे शहद और ज्यादा गाढ़ा होता चला जाता है। इसके बाद मधुमक्खियां शहद को Bee Wax ( मोम) से ढक देती है। जिसके कारण शहद अपनी असली रूप में आ जाता है।शहद में पानी बहुत कम होता है, जिसके कारण शहद बैक्टीरिया और Yeast को नष्ट करता है। इसलिए शहद को एंटीबैक्टीरियल माना जाता है। शहद से बैक्टीरिया और यीस्ट दूर ही रहते हैं। इस दुनिया में पाए जाने वाले कुछ गिने चुने खाद्य पदार्थों में से एक है, जो लंबे समय तक खराब नहीं होता। शहद इजिप्ट (मिस्र) के ताबूतों से भी प्राप्त हुआ। जो कि हजारों सालों से बंद पड़े हुए थे, और उन बंद ताबूतों में पाया गया शहद अच्छी कंडीशन में था।1 किलो शहद बनाने के लिए लगभग 20 हजार मधुमक्खियां तकरीबन दुनिया के 6 चक्कर (150000 miles) लगाने जितना सफर तय करती है। जिसमें वह लगभग 800000 फूलों से मधुरस इकट्ठा करती है।आशा है कि आपको मधुमक्खियों के बारे में यह निबंध या लेख आपको पसंद आया होगा। अपने दोस्तों के साथ भी जरूर शेयर करें धन्यवादplz Like shared my page...



कैसे करें मधुमक्खी पालन , बढ़ाये अपनी फसलकी पैदावार और कमायें दोगुना मुनाफा


शहद इकठ्ठा करने के लिए भारत में मधुमक्खी पालन प्राचीनतम परंपराओंमें से एक रही है। देशी और अंतर्राष्ट्रीय बाजार में शहद की लोकप्रियता और मांगकी वजह से मधुमक्खी पालन तेजी से लोकप्रिय होता जा रहा है। इससे न केवलकिसानों को अच्छी आय होती है बल्कि मधुममक्खी पालन मेंहोने वाली परागण का इस्तेमाल खेतों मेंकरने से कृषि उत्पादन में भी बढ़ोत्तरी होती है।मधुमक्खी पालन से शहद, मोम, रॉयल जैली आदि अतिरिक्त उत्पाद भी प्राप्त होते हैं जो किसानों की अतिरिक्त आमदनी का बेहतर जरिया साबित होते हैं। पारंपरिकफसलों में लगातार हो रहे नुकसान के मद्देनज़र किसानों का आकर्षण मधुमक्खीपालन की ओर लगातार बढ रहा है। तकरीबन अस्सी फ़ीसदी फसलीयपौधे क्रास परागण करते हैं क्योंकि उन्हें अपने ही प्रजाति के पौधों से परागण की जरूरत होती है जो उन्हें बाह्य एजेंट के माध्यम से मिलता है। मधुमक्खी एक महत्वपूर्ण बाह्य एजेंट होता है। ऐसे किसान जो पेशेवर ढंग से मधुमक्खी पालन करना चाहते हैं उन्हें एपीकल्चरर यानि मधुमक्खी पालन का प्रशिक्षण लेने पर विचार करना चाहिए। आमतौर पर मधुमक्खी के छत्ते में एक रानी मक्खी, कई हज़ार श्रमिक मक्खीऔर कुछ काटने वाले मधुमक्खी होते हैं।मधुमक्खियों का समुह श्रम विभाजन और विभिन्न कार्योंके लिए विशेषज्ञों का उत्तम उदाहरण होता है। मधुमक्खी श्रमिक मधुमक्खियोंकी मोम ग्रंथि से निकलने वाले मोम से अपना घोसला बनाते हैं जिन्हें शहद का छत्ता कहा जाता है। मधुमक्खियां अपने कोष्ठक का इस्तेमालअंडे सेने और भोजन इकठ्ठा करने के लिए करती हैं। छत्ते के उपरी भाग का इस्तेमाल वो शहद जमा करने के लिए करती हैं। छत्ते के अंदर परागण इकठ्ठा करने, श्रमिक मधुमक्खी और डंक मारने वाली मधुमक्खियों के अंडे सेने के कोष्ठक बने होने चाहिए। कुछ मधुमक्खियां खुले में अकेले छत्ते बनाती हैं जबकि कुछ अन्य मधुमक्खियां अंधेरी जगहों पर कई छत्ते बनाती हैं। किसान इन मधुमक्खियों का इस्तेमाल परागण के लिए या उनसे अन्य उत्पाद प्राप्त करने के लिए कर सकतेहैं। मधुमक्खी पालनका कौन सा तरीका अपनाया जाए ये इस बात पर निर्भर करता है कि किस तरह की मधुमक्खियां उपलब्धहैं और किसान के पासकिस तरह के कौशल एवंसंसाधन की उपलब्धताहै।रानी मक्खी के प्रकार :आमतौर पर मधुमक्खी के जमावट में एक रानी मक्खी, कुछ सौ हमलावर मधुमक्खी औरकई हज़ार मेहनतकश मधुमक्खी होते हैं।रानी मधुमक्खी जननक्षम और क्रियाशील मादा होती है जबकि श्रमिक मधुमक्खियांबांझ मादा और हमलावर मधुमक्खी नरमधुमक्खी होते हैं।
रानी मधुमक्खी की विभिन्न प्रजातियां:रानी मधुमक्खी मुख्यत: पांच प्रजातियों की होतीहैं जो इस प्रकार हैं –भारतीय मधुमक्खीचट्टानी मधुमक्खीछोटी मधुमक्खीयुरोपीय या इटली की मधुमक्खीडैमर मधुमक्खी या डंक रहित मधुमक्खीमधुमक्खी पालन आरंभकरने से पूर्व जानने योग्य बातें :मधुमक्खी पालन की योजना आरंभ करने से पूर्व पहले कदम के तौर पर आपको उस इलाके में जहां आप इसे शुरू करना चाहते हैं में मनुष्य और मधुमक्खीके बीच के संबंध को करीब से समझने की कोशिश करें। प्रायोगिक तौर पर खुद को इसमें संलग्न करें और मधुमक्खियों के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानने की कोशिश करें।इस बात की सलाह दी जाती है कि अगर आपकोइससे पहले मधुमक्खीपालन का कोई अनुभव नहीं है तो स्थानीय मधुमक्खी पालकों केसाथ काम करें। मधुमक्खी पालन प्रबंधन के बारे में उनके निर्देश को सुनें, समझें और सीखें। मधुमक्खी पालन के दौरान कोई मधुमक्खी आपको काट ले ये बहुत ही सामान्य सी बात है।एक बार मधुमक्खी और इंसान के बीच स्थानीय संबंध से परिचित हो जाने के बाद मधुमक्खी पालन की बेहतर प्रणाली को विकसित करने की कोशिश करें। उसके बाद मधुमक्खी पालन में काम आने वाले उपकरणों के उपयोग और इससे जुड़ी उत्पाद की खरीद को को लेकर एक योजना बनाएं।अगर आप मधुमक्खी पालन शुरू कर रहे हैं तो उस इलाके के सिर्फ एक या दो लोगों के साथ काम करें।मधुमक्खी पालन शुरूकरने के वक्त कम से कम दो छत्तों बनाए जाने की सलाह दी जाती है। इससे दोनों छत्तों के बीच तुलना करने का मौका मिलता है जिससे प्राप्त अनुभव आगे आपके बहुत काम आता है।मधुमक्खी पालन से जुड़ी प्रोजेक्ट शुरू करने के लिए व्यवहारिक लक्ष्य तय करें औरआरंभ में छोटे प्रोजेक्ट से शुरूआत की जाने चाहिए ताकि अनुभव हो औऱ फिर बड़ी योजना को बेहतर तरीके से अमली जामा पहनाया जा सके।प्रोजेक्ट में काम आने वाले उपकरण स्थानीय परिस्थितियों के मुताबिक ही होते हैं। इसलिए काम शुरू करने से पहले स्थानीय जरूरतों केमुताबिक सारी व्यवस्था और तैयारियों को परख लेना चाहिए।मधुमक्खी पालन में सफलता के लिए उपकरणों की बडी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। अपने इलाके में ऐसे व्यक्ति को चिन्हितकरना जो मधुमक्खी पालन से जुड़े उपकरण तैयार करता हो एक बड़ी सफलता मानी जाती है। स्थानीय स्तर पर उपकरण तैयार करवानाऔर उसके एक साथ लानेके लिए बड़ी धैर्य की आवश्यकता होती है।मधुमक्खी पालन से जुड़े उत्पादों के लिए ग्राहक खोजने के लिए पहले से ही स्थापित बाजार या किसी स्थानीय एजेंटका रूख किया जाना चाहिए। मधुमक्खी पालन स्थानीय कृषि विभाग से भी संपर्क कर सकते हैं। आमतौर पर स्थानीय बेकरी वाला या चाकलेट बनाने वाला शहद के लिए स्थानीय ग्राहकहोता है।मधुमक्खी पालन आरंभकरने से पूर्व की आवश्यकताएं इस प्रकार हैं :मधुमक्खी पालन की जानकारी & प्रशिक्षण। मधुमक्खी पालन के प्रशिक्षण के लिए आप स्थानीय कृषि विभाग या कृषि विश्वविद्यालय में संपर्क कर सकते हैं।स्थानीय मधुमक्खियों की जानकारीस्थानीय प्रजाति कीमधुमक्खियों की उपलब्धताप्रवासी मधुमक्खियों की जानकारीमधुमक्खी पालन के लिए जगह की जरूरत:चिन्हित स्थान में नमी न हो , सुखा हो। अत्यधिक आरएच मान मधुमक्खियों के उड़ने और शहद के पकने को प्रभावित करते हैंप्राकृतिक या कृत्रिम रूप से बने साफ पानी के स्त्रोत उपलब्ध कराए जाने चाहिएपेड़ आच्छादित इलाका हो ताकि हवा की निर्वाध उपलब्धता बनी रहेचिन्हित स्थान पर वो पेड़ और पौधे अवश्य हों जो मधुमक्खियों को पराग उपलब्ध कराएंमधुमक्खी पालन के उपकरण :मधुमक्खी पालन के लिए उपयोगी उपकरण इस प्रकार हैं। हालांकि ये जरूरी है कि स्थानीय मधुमक्खी पालकों सेमिल कर स्थानीय जरूरत के मुताबिक इस्तेमाल किए जा रहे उपकरणों का ही प्रयोग किया जाना चाहिए।मोटे & पतले ब्रश, एसएस छुरी, मुड़े औरएल आकार के मधुमक्खी का छत्ता, प्लास्टिक निर्मित भोजन बद्ध रानी मधुमक्खी का छत्ता, रानी मधुमक्खी का गेट, छत्ते का गेट, शहद निष्कर्षक, धुंआदेने वाला, रानी को अलग करने वाला उपकरण, पराग का जाल, प्रोपोलिस स्ट्रीप, रॉयल जैली प्रोडक्शन&एक्सट्राक्शन कीट, मधुमक्खी का डंक निकालने वाला उपकरणआदि आदि।मधुमक्खी पालन में परागण से लाभान्वितहोने वाले फसल :फल एवं मेवे : बादाम,सेब, खुबानी, आडू, स्ट्राबेरी, खट्टे फल, एवं लीचीसब्जियां : पत्ता गोभी, धनिया, खीरा, फूलगोभी, गाजर, नींबू, प्याज, कद्दू,खरबूज, शलजम, एवं हल्दीतिलहन :  सुरजमुखी, सरसों, कुसुम, नाइजर,सफेद सरसों, तिल
मधुमक्खी पालन में होने वाले परागण की वजह से फसल उत्पादन में होने वाली वृद्धि :फसल           प्रतिशत वृद्धिसरसों              44सुरजमुखी           32 – 45कपास           17 – 20लुसेरने घास         110प्याज             90सेब               45मधुमक्खी पालन में परागण के लिए मधुमक्खियों का प्रबंधन :छत्तों को खेत के बहुत ही पास रखने कीसलाह दी जाती है ताकि मधुमक्खियों की उर्जा बची रहेप्रवासी मधुमक्खियों के छत्ते को खेत के पासउस जगह रखा जाना चाहिए जहां कम से कमदस फीसदी फूल लगे होंप्रति हेक्टेयर पर तीन इटालियन मधुमक्खी और प्रति हेक्टेयर पांच भारतीय प्रजाति के मधुमक्खियों के छत्ते लगाने की सलाह दी जाती हैमधुमक्खियों में होने वाली बीमारी से बचने के लिए स्थानीय कृषि विभागकी सलाह ली जानी चाहिए।मधुमक्खी पालन आरंभकरने के लिए शुरूआती लागत तकरीबन सवा दो लाख रूपए आती हैअगस्त से सितंबर का माह मधुमक्खी पालन शुरू करने के लिए उपयुक्त समय होता हैफूलों के मौसम के बीत जाने के बाद मधुमक्खी से उत्पादनिकालने की प्रक्रिया शुरू करने का सही वक्त होता है।छत्ते से शहद निकालने के लिए उपयुक्त उपकरण की मदद से किया जाना चाहिए।

मधुमक्खी का जहर भी होता है बेहद फायदेमंद!

लखनऊ।सैंकडों बीमारियों में गुणकारी माना जाने वाला शहद ही नहीं मधुमक्खी के डंक का जहर भी स्वास्थ्य के लिए मुफीद है। मधुमक्खी के डंक से निकला जहर गठिया के लिए काफी लाभप्रद है। एक शोध से पता चला है कि मधुमक्खी के डंक के जहर के साथ एक रासायनिक पदार्थ मिलाकर लगाने से गठिया ठीक हो सकताहै। यही नहीं मधुमक्खी के रायल जेली की मदद से एड्स जैसी घातक बीमारियों के साथ ही सेक्सुअल मेडिसिन भीतैयार की जाती है।सेन्ट्रल बी रिर्सच इन्स्टीट्यूट पुणे के सहायक निदेशक आर के सिंह ने कहा कि मधुमक्खी पालन से किसानों के आर्थिक हालात में जहां खासा परिवर्तन होसकता है। सिंह ने बताया कि हाल ही में आयोजित एक सेमिनार से रिजल्ट निकलकर सामने आया कि सभी तरीकों के स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़े डॉक्टर मानते हैं कि मधुमक्खी का शहद ही नहीं इसकी प्रत्येक चीज मानव उपयोग में आ सकती है। उनका कहना था कि सेमिनार में आए विद्वानों ने माना कि रायल जेली एड्स में बेहद गुणकारी है।उन्होंने कहा कि पलाश के फूलों से तैयार शहद उच्च रक्तचाप की औषधि के रूप में रामबाण का काम करता है। उनका कहना था कि उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर और सहारनपुर में संस्थान की शाखाएं हैं। उनको भी उच्चीकृत किए जाने की योजना है।एक सवाल के जवाब में उन्होंने बताया कि देश में करीब85 हजार मीट्रिक टन शहद की खपत है। कोशिश है कि दिनचर्या में शहद के प्रयोग के साथ ही दवाओं में भी इसकी उपयोगिता बढ़ाई जाए। उन्होंने बताया कि जिन छत्तों से शहद निकल जाता है उसका प्रयोग मोम बनाने के साथ ही कई अन्य कार्यो में किया जाता है।सिंह ने बताया कि मधुमक्खी के छत्तों से भी निजात पाया जा सकता है। उनका कहना था कि मधुमक्खी के रहन सहन को समाजवाद से जोड़ा जा सकता है क्योंकि लाखों मधुमक्खियां एक साथ सिर्फ रहती हैं बल्कि स्थान भी एक ही साथ बदलती हैं। उन्होंने कहा कि एक छत्ते से एक वर्ष में सात आठ किलोग्राम शहद दो बार निकाला जा सकता है। शहद का स्वाद मधुमक्खियां जिस फूल से मकरंद लाती हैं उसी के अनुरूप होता है।डॉ सिंह ने बताया कि मकरंद की कमी होने पर मधुमक्खियों को कृत्रिम भोजन से भी शहद बनाने की सुविधा दी जाती है। इसके लिए उन्हें चीनी का घोल दिया जाता है जिसे लेकर वह छत्ते में शहद बनाती हैं हालांकिे इस विधा को प्राकृतिक शहद नहीं कहा जा सकता।उन्होंने बताया कि मधुमक्खी एक उड़ान में डेढ़ से दो किलोमीटर तक जाती है। कुनबे की मुखिया रानी मक्खी एक योजना के तहत शहद चाटने के बाद पूरे परिवारके साथ स्थान छोड़ती है। उनका कहना था कि एक छत्ते में कम से कम साठ हजार मधुमक्खियां होती हैं और गर्मी में प्रतिदिन एक हजार पांच सौ अण्डे देती हैं। साल डेढ साल में इनकी संख्या 15 लाख हो जाती है।सिंह ने माना कि साठ के दशक में स्थापित इस संस्थान में संसाधनों की कमी है। इसके बावजूद किसानों को मधुमक्खी पालन से होने वाले लाभ की जानकारी देने की कोशिश की जा रही है। संस्थान मधुमक्खी से जुड़े कई शोध कर चुका है। इन शोधों से पता चला है कि मधुमक्खी मानव जीवन के लिए बहुत उपयोगी है। शहद के बारे में हर काई जानता है कि यह कितना लाभदायक है लेकिन इसकी अन्य चीजों से मानव जीवन को होने वाला लाभ यदि सभी को पता चले तो बेहतर होगा।उन्होंने बताया कि मधुमक्खी पालन से देश में करीब साठ लाख किसान लाभान्वित हो रहे हैं। इससे होने वाले लाभ के बारे में यदि प्रचार प्रसार किया जाए तोमधुमक्खी पालन का दायरा बढ़ सकता है। मधुमक्खी पालनमें न तो अधिक जमीन की जरूरत है और न ही पैसे की। कम पैसे में अधिक कमाई की जा सकती है। plz Like shared my page... HealthDiscoverysciIndia.blogspot.com

Saturday 30 December 2017

Part 2 Animal Discovery

मछलियों(Fishes) के बारे में अदभुत बातें & Facts in...Amazing facts about fishes inHindiमछलियों के बारे में हैरानी भरी जानकारियां. ... सबसे जहरीली मछली स्टोन फिश(stonefish), इसे खाने से इंसान की कुछ ही देर में मौत हो सकती है. 14. सबसे तेज तैरने ...|||

मछलियों(Fishes) के बारे में अदभुत बातें & Facts in Hindi


1मछलियों(Fishes) के बारे में अदभुत बातें & Facts in Hindi...

2. एक “मड स्किपर(mudskipper)” नाम की मछली ज्यादातर समय पानी के बाहर ही रहती है, ये मछली अपने पंखों की मदद से जमीन पर चल भी सकती है3. ज्यादातर अच्छी ब्रांड की लिपस्टिक(Lipstick) में मछली की चर्बी मिलायी जाती है4. “सफ़ेद शार्क” अपने शरीर का तापमान(temperature) भी बढ़ा सकती है, इससे वह बहुत ठन्डे पानी में भी रह सकती है5. सबसे ज्यादा उम्र की मछली ऑस्ट्रलिया में पायी गयी है, 2013 में उसकी उम्र 65 साल थी6. इलेक्ट्रिक ईल(Electric eels) नाम की मछली में इतना करंट होता है कि उसे छूने से इंसान की मृत्यु हो सकती है7. शार्क अकेली ऐसी मछलियाँ हैं जिनकी पलकें होती हैं8. ज्यादातर मछलियाँ जीभ से नहीं बल्कि किसी चीज़ को शरीर से स्पर्श करके उसका स्वाद पता कर लेती हैं9. मछली भी पानी में डूब सकती है, इंसान की तरह उसे भी ऑक्सीजन की जरुरत होती है और अगर पानी दूषित होगा तो मछली साँस नहीं ले पायेगी और डूब जाएगी10. ज्यादातर मछलियाँ उल्टी तरफ नहीं तैर सकतीं11. खाना चबाते समय मछली को साँस लेने में दिक्कत होती है क्यूंकि चबाने से उसके गलफड़ों में पर्याप्त पानी नहीं जा पाता12. दुनिया में सबसे लम्बी व्हेल(Whale) मछली कीलम्बाई 60 फिट है और वजन 25 टन है इसके आलावा इसके 4000 दांत हैं13. सबसे जहरीली मछली स्टोन फिश(stone fish), इसेखाने से इंसान की कुछ ही देर में मौत हो सकती है14. सबसे तेज तैरने वाली मछली सैल फिश(sailfish) है, ये मछली हाइवे पर चलने वाली कार(Car) से भी तेज स्पीड से तैरती है15. सबसे धीरे चलने वाली मछली है – seahorse, येमछली इतनी धीरे चलती है जैसे कोई बूढ़ा व्यक्ति जॉगिंग(Jogging) करता है16. कुछ रेगिस्तानी मछलियाँ(Desert Fish) ऐसी होती हैं जो बहुत गर्म जगह भी रह सकती हैं ये डेजर्ट फिश 113° F पर भी जिन्दा रहती हैं17. वैज्ञानिकों की मानें तो दुनिया भर में 32,000 प्रकार की मछलियाँ हैं18. अनब्लेप्स(Anableps) नाम की मछली की चार आखें होती हैं, ये मछली एक साथ ऊपर, नीचे, दायें और बाएं देख सकती है19. कुछ प्रजातियों के नर मछली, मादा मछलियों से छोटी होती हैं20. वैज्ञानिक मानते हैं कि वे अभी तक समुद्र का केवल 1% हिस्सा ही देख पाये हैं21. शार्क मछली हर साल करीब 12 लोगों को मार देती है, लेकिन हम इंसान हर घंटे करीब 11,417 शार्क को मारते हैं22. हजारों समुद्री मछलियाँ, इंसान द्वारा फेंके गए प्लास्टिक बैग को खाकर मर जाती हैं23. स्टारफिश(Starfish) नाम की मछली के पास दिमागनहीं होता, इस मछली की त्वचा स्पेशल प्रकार की होती है जो इसे आसपास के माहौल की जानकारी देती रहती है24. गोलिअथ टाइगर फिश(goliath tigerfish) इतनी भयानक होती है कि ये मगरमच्छों को भी खा जाती है25. मछली के बाद दूध या दही का सेवन से त्वचा पर सफेद धब्बे पड़ जाते हैं....||||||~

**मच्छरों के बारे में महत्वपूर्ण जानकारियां जरूर पढ़ें

*1. क्या आप जानते हैं कि केवल मादा मच्छर ही इंसान को काटती है नर मच्छर कभी नहीं काटता2. मादा मच्छर को अंडे पैदा करने के लिए प्रोटीन की जरुरत होती है इसलिए खून चूसती है3. मादा मच्छर एक बार शरीर में खून भर लेने के बाद 2 दिन के लिए आराम करने चले जाते हैं4. दुनिया भर में मच्छरों की करीब 3,500 प्रजातियां हैं5. मच्छरों के दांत नहीं होते बल्कि उनके पास एक पैनी सूंड जैसी होती है जिससे वो खून चूसते हैं6. एक मच्छर अपने वजन से 3 गुना ज्यादा खून पी सकता है7. मादा मच्छर एक बार में करीब 300 से ज्यादा अंडे देती है8. अंडे से निकलने के बाद मच्छर अपने शुरूआती 10 दिन पानी में ही बिताते हैं9. नर मच्छर का जीवन काल केवल 10 दिन तक होता है लेकिन मादा मच्छर 6 से 8 हफ़्तों तक जिन्दा रहती है10. मच्छरों की 6 टांगे होती हैं11. नर मच्छर मादा मच्छर को उनके पंखों की आवाज सेपहचानते हैं12. मच्छर बहुत ज्यादा दूर और बहुत तेजी से नहीं उड़ सकते13. मच्छर इंसान की साँस तक सूंघ लेते हैं14. हमारे पसीने से ही मच्छर हमारे खून के बारे में पता लगा लेते हैं15. मच्छरों के काटने से HIV नहीं फैलता16. मलेरिया मच्छरों दवारा फैलाया जाने वाला सबसेखतरनाक रोग है17. मच्छर दुनिया के खतरनाक जानवरों में आते हैं जिनके काटने से हर साल हजारों लोग मरते हैंदोस्तों कैसी लगी हमारी जानकारियाँ, फेसबुक पर शेयर करें और कमेंट करें….|||||

*******तारामीन*****

1.तारा मछलीइकाइनोडरमेटा संघकाअपृष्ठवंशीप्राणी है जो केवल समुद्री जल में ही पायी जाती ह|||




जो केवल समुद्री जल में ही पायी जाती है। इसके शरीर का आकार तारा जैसा होता है, शरीर में डिस्क और पांच भुजाएं होती है जो कड़े प्लेट्स से ढंकी रहता हैं। उपरी सतह पर अनेक कांटेदार रचनायें होती हैं। डिस्क पर मध्य में गुदा स्थित होती है। निचली सतह पर डिस्क के मध्य में मुंह स्थित है। भुजाओं पर दो कतारों मेंट्यूब फीटहोते हैं।प्रचलनकी क्रिया ट्यूबफीट के द्वारा होती है तथा पैपुलीद्वाराश्वसनकी क्रिया होती है। इसकी एक प्रजाति,Gohongaze कोजापानीलोग बडे चाव से खाते हैं।[3]तारामीनStarfishतारामीन की फ़्रोमिया मोनिलिस जातिवैज्ञानिक वर्गीकरणजगत(रेगन्म):जंतुसंघ(फाइलम):शूलचर्मी(Echinodermata)उपसंघ(सबफाइलम):ऐस्टरोज़ोआ (Asterozoa)वर्ग(क्लास):ऐस्टरोइडेआ(Asteroidea)द ब्लैंवीय, १८३०टैक्सोनवगण*.उपवर्गConcentricycloidea*.Peripodida*.महागणForcipulatacea*.Brisingida*.Forcipulatida*.महागणSpinulosacea*.Spinulosida*.महागणValvatacea*.Notomyotida*.Paxillosida*.Valvatida*.Velatida[1]†Calliasterellidae†Trichasteropsida[2]† द्वारा नामांकित कुलविलुप्तहो चुके ह

2..600 वॉट का करंट देने वाली मछली

वेल्ह और सील मछलियों का नाम आपने जरूर सुना होगा। ये मछलियां जहां अपनी विशालकाय देह अ...वेल्ह और सील मछलियों का नाम आपने जरूर सुना होगा। ये मछलियां जहां अपनी विशालकाय देह औरअन्य कारणों से लोगों के आकर्षण का केंद्र बनी हुई हैं, वहीं कुछ मछलियां ऎसी भी हैं जो अपने शिकार को फंसाने के लिए बिजली का झटका देकर मार देती हैं।शायद आपको इस बात पर ताज् जुब हो कि मछलियां करंट का झटका कैसी दे सकती हैं, पर यह सच है कि इलेक्ट्रिक केट फिश और इलेक्ट्रिक ईल नामक मछली अपने शिकार को मारने के लिए बिजली के हाई वॉल्टेज झटके का इस्तमाल करती हैं।मछलियों द्वारा उत्पादित करंट या बिजली का झटका उसके शरीर के भीतर मौजूद सैल्स जो कि इलेक्ट्रोलाइट कहलाते हैं में होता है। जब किसी इलेक्ट्रोलाइट को उत्तेजित किया जाता है तो उस सेल की बाहरी सतह पर मौजूद आयंस तेजी से चलने लगते हैं जिससे बिजली का उत्पादन होने लगता है।उदाहरण के तौर पर इलेक्ट्रिक कैट फिश लगभग 300 से 350 वॉट का बिजली का झटका देकर अपनेशिकार को मार सकती है। यह मछली मुख्य रूप से रात में शिकार करती और नील नदी में पाई जाती है।इसी तरह इलेक्ट्रिक ईल नामक मछली अपने शिकारको मारने के लिए करीब 600 वॉट का बिजली के झटके का उत्पादन कर सकती है जो एक घोड़े का शिकार करने के लिए काफी है।

3..खारे पानी के मगरमच्छ

खारे पानीका मगरमच्छ याएस्टूएराइन क्रोकोडाइल (estuarine crocodile)(क्रोकोडिलस पोरोसस) सबसे बड़े आकार का जीवित सरीसृप है। यह उत्तरी ऑस्ट्रेलिया,भारतके पूर्वी तट औरदक्षिण-पूर्वी एशियाके उपयुक्त आवास स्थानों में पाया जाता है।

शारीरिक रचना और आकारिकी

*खारे पानी के मगरमच्छ की थूथन, मगर कहलाने वाले मगरमच्छ से अधिक लम्बी होती है: आधार पर इसकी लम्बाई चौड़ाई से दोगुनी होती है।[1]अन्य प्रकार के मगरमच्छों की तुलना में, खारे पानी के मगरमच्छ की गर्दन पर कवच प्लेटों की संख्या कम होती है और अधिकांश अन्य पतले शरीर के मगरमच्छों की तुलना में इसके शरीर का चौड़ा होना, इस असत्यापित मान्यता को जन्म देता है की सरीसृप एक एलीगेटर(घड़ियाल) था।[2]चित्र:Saltieskull.JPGजूलॉजी के संग्रहालय, सेंट पीटर्सबर्ग से खारे पानी के मगरमच्छ की खोपड़ीएक वयस्क नर खारे पानी के मगरमच्छ का भार 600 से 1,000 किलोग्राम (1,300–2,200 पौंड) और लम्बाई सामान्यतया 4.1 से 5.5 मीटर (13–18 फीट) होती है। हालांकि परिपक्व नर की लम्बाई 6 मीटर (20 फीट) या अधिक और भार 1,300 किलोग्राम (2,900 पौंड) या अधिक भी हो सकता है।[3][4][5]किसी अन्य आधुनिक मगरमच्छ प्रजाति की तुलना में, इस प्रजाति में लैंगिक द्विरुपता सबसे अधिक देखने को मिलती है, इनमें मादा नर की तुलना में काफी छोटे आकार की होती है। एक प्रारूपिक मादा के शरीर के लम्बाई 2.1 से 3.5 मीटर (7–11 फीट) की रेंज में होती है।[2][3][6]अब तक दर्ज की गयी सबसे बड़े आकार की मादा की लम्बाई लगभग 4.2 मीटर (14 फीट) नापी गयी है।[5]पूरी प्रजाति का औसत भार मोटे तौर पर 450 किलोग्राम (1,000 पौंड) है।[7]खारे पानी के मगरमच्छ का सबसे बड़ा आकार काफी विवाद का विषय है। अब तक थूथन से लेकर पूंछ तक मापी गयी सबसे लम्बे मगरमच्छ की लम्बाई 6.1 मीटर (20 फीट) थी, जो वास्तव में एक मृत मगरमच्छ की त्वचा थी।चूंकि मृत त्वचा की परत के हटाये जाने के बाद (carcass) त्वचा थोड़ी सी सिकुड़ जाती है, इसलिए जीवित अवस्था में इस मगरमच्छ की अनुमानित लम्बाई 6.3 मीटर (21 फीट) रही होगी और संभवतया इसका वजन 1,200 किलोग्राम (2,600 पौंड)से अधिक रहा होगा।[8]ऐसा दावा किया गया है कि अधूरे अवशेष (उड़ीसामें शूट किये गए एक मगरमच्छ की खोपड़ी[9]) एक 7.6-मीटर (25 फीट) मगरमच्छ के हैं, परन्तु विशेषज्ञों के द्वारा किये गए परीक्षण बताते हैं कि इसकी लम्बाई 7 मीटर (23 फीट) से अधिक नहीं होगी।[8]9-मीटर (30 फीट) की रेंज में मगरमच्छों के असंख्य दावे किये गए हैं:बंगाल कीखाड़ीमें 1940 में शूट किये गए एक मगरमच्छ को 10 मीटर (33 फीट) पर दर्ज किया गया; एक और मगरमच्छ को 1823 मेंफिलिपिन्समें ल्युज़ोन के प्रमुख द्वीप पर जलजला में मारा गया, इसे 8.2 मीटर (27 फीट) पर दर्ज किया गया; 7.6 मीटर (25 फीट) पर दर्ज किये गए एक मगरमच्छ को कलकत्ता के अलीपुर जिले मेंहुगली नदीमें मारा गया। हालांकि, इन जानवरों की खोपड़ियों के परीक्षण वास्तव में इंगित करते हैं कि ये जानवर 6 से 6.6 मीटर (20–22 फीट) की रेंज से थे।हाल ही में खारे पानी के मगरमच्छ के आवास की बहाली और शिकार को कम किये जाने के कारण, यह संभव हो पाया है कि 7-मीटर (23 फीट) मगरमच्छ आज जीवित हैं।[10]गिनीज ने इस दावे को स्वीकार किया है कि एक 7-मीटर (23 फीट) नर खारे पानी का मगरमच्छ भारत के उड़ीसा राज्य में भीतरकनिका पार्क में रहता है,[9][11]हालांकि, एक बहुत बड़े आकार के जीवित मगरमच्छ को पकड़ने और इसके मापन में होने वाली कठिनाई के कारण, इन आयामों की सटीकता का सत्यापन अब तक किया जाना बाकी है।1957 में क्वींसलैंड में शूट किये गए एक मगरमच्छ की लम्बाई 8.5 मीटर (28 फीट) थी, लेकिन इस माप को सत्यापित नहीं किया गया और ना ही इस मगरमच्छ के कोई अवशेष अब मौजूद हैं। इस मगरमच्छ की एक "प्रतिकृति" बनाई गयी है जो पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बन गयी है।[12][13][14]8 मीटर से अधिक लम्बे (28 फीट से लम्बे) कई मगरमच्छों को भी दर्ज किया गया है लेकिन इनकी पुष्टि नहीं हुई है,[15][16]और इनकी संभावना अत्यधिक कम है।वितरणएडिलेड नदी में कूदते हुए मगरमच्छखारे पानी मगरमच्छ का प्रमुखखारे पानी का मगरमच्छभारतमें पाई जाने वाली मगरमच्छ की तीन प्रजातियों में से एक है, इसके अलावा मगर कहे जाने मगरमच्छ औरघड़ियालपाए जाते हैं।[17]भारत के पूर्वी तट के अलावा, यह मगरमच्छ भारतीय उपमहाद्वीप में अत्यंत दुर्लभ है। खारे पानी के मगरमच्छों की एक बड़ी आबादी (इनमें कई बड़े आकार के व्यस्क हैं, एक 7 मीटर की लम्बाई का नर भी शामिल है)उड़ीसाके भीतरकनिका वन्यजीव अभयारण्य में मौजूद है और येसुंदरवनके भारतीय और बांग्लादेश के हिस्सों में कम संख्या में पाए जाते हैं।उत्तरी ऑस्ट्रेलिया में (जिसमें उत्तरी क्षेत्र के उत्तरी हिस्से,पश्चिमी ऑस्ट्रेलियाऔरक्वीन्सलैंडशामिल हैं) खारे पानी के मगरमच्छ संख्या में खूब बढ़ रहेंहैं, विशेष रूप से डार्विन के पास बहुल नदी प्रणाली में (जैसे एडिलेड, मेरी और डेली नदियां और इनके साथ इनसे जुडी हुई नदशाखाएं और ज्वारनदमुख) जहां बड़े आकार के जीव (6 मीटर से अधिक) आम हैं। ऑस्ट्रेलियाई खारे पानी के मगरमच्छों की आबादी अनुमानतः 100,000 और 200,000 वयस्कों के बीच है।ये पूरे उत्तर क्षेत्री तट मेंपश्चिमी ऑस्ट्रेलियामें ब्रूम से लेकरक्वीन्सलैंडमें नीचे रॉकहैम्प्टन तक फैले हुए हैं। ताजे पानी में पाए जाने वाले मगरमच्छों की तुलना में खारे पानी के मगरमच्छों के एलीगेटर से मिलते जुलते होने के कारण, उत्तरी ऑस्ट्रेलिया की एलीगेटर नदियों का नाम बदल गया है। ताजे पानी के मगरमच्छ उत्तरी क्षेत्र में भी रहते हैं।न्यू गिनीमें भी वे आम हैं, जो सभी ज्वारनदमुख और मैंग्रोव सहित देश में लगभग सभी नदी प्रणालियों के तटीय क्षेत्रों में पाए जाते हैं। वे बिस्मार्क द्वीपसमूह, काई द्वीप, आरू द्वीप, मालुकु द्वीपऔर तिमोर क्षेत्र में आने वाले द्वीपों और टोरेस स्ट्रेटके भीतर अधिकांश द्वीपों में भी अलग अलग संख्या में पाए जाते हैं।खारे पानी का मगरमच्छ ऐतिहासिक रूप से पूरे दक्षिण पूर्वी एशिया में पाया गया, लेकिन अब इस रेंज में से विलुप्त हो चुका है। इस प्रजाति कोइंडोचाईनाके अधिकांशभागों में दशकों से जंगलों में दर्ज नहीं किया गया है औरथाईलैंड,लाओस,वियतनामऔर संभवतःकम्बोडियामें यह विलुप्त हो चुकी है। म्यांमार एक अधिकांश हिसों में इस प्रजाति की स्थिति जटिल है, लेकिन इर्रवाड्डी डेल्टा मेंकई बड़े आकार के वयस्कों की एक स्थिर आबादी है।[18]यह संभव है कि म्यांमार इंडोचाइना में एकमात्र देश है जहां आज भी इस प्रजाति की जंगली आबादी मौजूद है। हालांकि एक समय था जब मेकोंग डेल्टा (जहां से वे 1980 के दशक में गायब हो गए) और अन्य नदी प्रणालियों में खारे पानी के मगरमच्छ बहुत आम थे,इंडोचाइनामें इस प्रजाति का भविष्य खतरे में नज़र आ रहा है। हालांकि, इस बात की संभावना भी बहुत कम है कि मगरमच्छ पुरी दुनिया से विलुप्त हो जाये, क्योंकि इसका वितरण व्यापक है और उत्तरी ऑस्ट्रेलिया तथान्यू गिनीमें इसकी आबादी का आकार पूर्व-औपनिवेशिक प्रकार का है।इंडोनेशियाऔरमलेशियामें इसकी आबादी छिटपुट है, जबकि कुछ क्षेत्रों में अधिक आबादी भी है (जैसेबोर्नियो) और कई अन्य स्थानों पर इसकी आबादी बहुत कम है, जो जोखिम (विलुप्त होने के कगार पर) पर है, (उदाहरणफिलिपीन्स).सुमात्राऔरजावामें इस प्रजाति की स्थिति बड़े पैमाने पर अज्ञात है (हालांकि समाचार एजेंसियों और विश्वसनीय स्रोतों के द्वारा सुमात्रा के पृथक्कृत क्षेत्रों में बड़े मगरमच्छों के द्वारा मनुष्यों पर हमला किये जाने कीरिपोर्टें हाल ही में दर्ज की गयी हैं).उत्तरी ऑस्ट्रेलिया के आस पास मगरमच्छों के पाए जाने के बावजूद,बालीमें अब मगरमच्छ नहीं बचे हैं। खारे पानी का मगरमच्छ दक्षिण प्रशांत के बहुत सीमित हिस्से में भी पाया जाता है,सोलोमन द्वीपमें इसकी आबादी औसत है, वानुअतु (जहां आबादी अधिकारिक तौर पर केवल तीन रह गयी है) में इसकी आबादी बहुत कम, आक्रामक और जल्दी ही विलुप्त होने वाली हैऔर पलाऊ में यह आबादी आक्रामक नहीं है, परन्तु जोखिम पर है (जिसके बढ़ जाने की संभावना है).एक समय था जब खारे पानीके मगरमच्छ सेशेल्स द्वीप मेंअफ्रीकाके उत्तरी तट से लेकर पश्चिम तक पाए जाते थे। ऐसा माना जाता था कि ये मगरमच्छ नील नदी की आबादी हैं, लेकिन बाद में यह प्रमाणितहो गया कि वे येक्रोकोडिलस पोरोससहैं।[2]क्योंकि समुद्र में लम्बी दूरी की यात्रा करना इस प्रजाति की प्रवृति है, इसलिए कभी कभी ये मगरमच्छ ऐसे अजीब स्थानों पर भी देखे जाते हैं, जहां के वे स्थानीय निवासी नहीं हैं। आवार किस्म के जीव भी ऐतिहासिक रूप से न्यू कैलेडोनिया, लवो जिमा,फिजीऔर यहां तक कि जापान के अपेक्षाकृत उदासीन समुद्र (उनके स्थानीय आवास स्थान से हजारों मील दूर) में भी पाए गए हैं। 2008 के दशक के अंत /2009 के दशक के प्रारंभ में फ्रेजर द्वीप की नदी प्रणाली में कई वन्य खारे पानी के मगरमच्छ पाए गए, इन्हेंइनकी सामान्य क्वीन्सलैंड रेंज से हजारों किलोमीटर दूर अधिक ठन्डे पानी में पाया गया। ऐसा पाया गया कि वास्तव में ये मगरमच्छ गर्म और नम मौसम के दौरान उत्तरी क्वीन्सलैंड से अप्रवास कर के दक्षिण में आ जाते थे और संभवतया तापमान गिरने पर फिर से उत्तर को लौट आते थे। फ्रेजर द्वीप की जनता में आश्चर्य के बावजूद, यह ज़ाहिर तौर पर कोई नया व्यवहार नहीं है और इससे पहले भी कई बार ऐसा पाया गया है कि वन्य मगरमच्छ गर्म नम मौसम के दौरान दक्षिण में जैसे ब्रिसबेन तक आ गए हों.आवासखारे पानी का मगरमच्छ ऑस्ट्रेलिया के उत्तरी क्षेत्रमें कोरोबोरे में धूप सेंकते हुए.खारे पानी के मगरमच्छ आमतौर पर उष्णकटिबंधीय नम मौसम के दौरान दलदल और ताजे पानी की नदियों में पाए जाते हैं और शुष्क मौसम में नीचे की ओर ज्वारनदमुख की तरफ चले जाते हैं, कभी कभी बहुत दूर तक यात्रा करते हुए समुद्र के बाहर तक भी आ जाते हैं। मगरमच्छ को विशेष रूप से सबसे उपयुक्त ताजे पानी की नदियों में जगह पाने के लिए प्रभावी नर जीवों के साथ, खूब प्रतिस्पर्धा करनी पड़ती है। इस प्रकार से छोटे मगरमच्छ सीमांत नदी प्रणालियों और कभी कभी समुद्र में जाने कि लिए मजबूर हो जाते हैं। यह तथ्य इस जानवर के व्यापक वितरण को स्पष्ट करता है (यह भारत के पूर्वी तट से लेकर उत्तरी ऑस्ट्रेलिया तक पाया जाता है). साथ ही कभी कभी इसका अजीब स्थानों में पाया जाना भी इससे स्पष्ट हो जाता है (जैसे जापान के समुद्र में). खारे पानी के मगरमच्छ छोटे समूहों में तैरते हैं,15 से 18 मील प्रति घंटा (6.7 से 8.0 मी/से) लेकिन जब बड़े समूह में तैरने लगते हैं 2 से 3 मील/घंटा (0.9 से 1.3 मी/से)आहार और व्यवहारककादु राष्ट्रीय उद्यान से तैरने के कोई संकेत नहीं.खारे पानी का मगरमच्छ एक अवसरवादी शीर्ष शिकारी है जो इसके क्षेत्र में प्रवेश करने वाले लगभग किसी भी जानवर का शिकार कर सकता है, चाहे वह पानी में हो या शुष्क भूमि पर. वे इनके क्षेत्र में प्रवेश करने वाले मनुष्यों पर भीहमला करने के लिए जाने जाते हैं। किशोर जीवों को छोटे जानवरों का शिकार करने की मनाही होती है जैसेकीट, उभयचर, केंकड़े, छोटेसरीसृपऔरमछली.जैसे जैसे जानवर बड़ा होता जाता है, इसके आहार में कई प्रकार के जानवर शामिल होते जाते हैं, हालांकि अपेक्षाकृत छोटे आकार के शिकार भी एक व्यस्क के आहार का महत्वपूर्ण हिस्सा बनाते हैं। बड़े आकार के व्यस्क खारे पानी के मगरमच्छ अपनी रेंज में आने वाले किसी भी जानवर को खा सकते हैं, इसमेंबन्दर,कंगारू,जंगली सूअर, डिंगो (एक प्रकार का कुत्ता), गोआना,पक्षी, घरेलू पशु, पालतू जानवर,मनुष्य, पानी की भैंस,गौर,चमगादड़और यहां तक किशार्कभी शामिल है।[10][19][20][21]घरेलू पशु,घोड़े, पानी की भैंस और गौर, वे सभी जिनका वजन एक टन से भी अधिक होता है, वे नर मगरमच्छ के द्वारा किये जाने वाले सबसे बड़े शिकार माने जाते हैं। आम तौर परये बहुत सुस्त होते हैं- यह एक ऐसी विशेषता है जिसकी वजह से ये कई महीनों तक भोजन के बिना जीवित रह सकते हैं- ये अक्सर पानी में मटरगश्ती करते हैं और दिन में धूप सेंकते हैं और रात में शिकार करना पसंद करते हैं। खारे पानी के मगरमच्छ जब पानी से हमला करते हैं तब विस्फोटक गति से आगेबढ़ते हैं।मगरमच्छ की कहानियों को भूमि पर कम दूरी के लिए रेस के घोड़े की तुलना में अधिक जाना जाता है, ये शहरी कहानियों से कुछ बढ़कर हैं। पानी के किनारे पर, तथापि, वे दोनों पैरों और पूंछ से प्रणोदन गठजोड़ कर सकते हैं, इसका प्रत्यक्ष दर्शन दुर्लभ है।हमला करने से पहले यह आमतौर पर इन्तजार करता है कि शिकार पानी के किनारे पर आ जाये, इसके बाद यह अपनी पूरी क्षमता से जानवर को पानी में खींच लेता है। ज्यादातर शिकार किये जाने वाले जानवरों को मगरमच्छ के जबड़े के दबाव से ही मारदिया जाता है, हालांकि कुछ जानवर संयोग से डूब जाते हैं। यह एक शक्तिशाली जानवर है, यह एक पूर्ण विकसित पानी की भैंस को नदी में घसीट सकता है, या पूर्ण विकसित बोविड को अपने जबड़ों से कुचल सकता है। इसकी शिकार की प्ररुपिओक तकनीक को "डेथ रोल" के रूप में जाना जाता है: यह जानवर को जकड का पूरी क्षमता के साथ रोल कर देता है। इससे किसी भी संघर्षरत जानवर का संतुलन बिगड़ जाता है, जिससे इसे पानी में खींचना आसान हो जाता है। "डेथ रोल" तकनीक का उपयोग एक मृत जानवर को फाड़ने के लिए भी किया जाता है।खारे पानी के शिशु मगरमच्छ छिपकली, शिकारी मछली, पक्षी औरकई अन्य शिकारियों का शिकार भी बन सकते हैं। किशोर अपनी रेंज केबंगाल टाइगरऔर तेंदुओं का भी शिकार बन सकते हैं, हालांकि यह दुर्लभ है।होशियारी (सहजज्ञान)एक शोधकर्ता, डॉ॰ एडम ब्रित्तन,[22]ने मगरमच्छों की होशियारी या सहजज्ञान पर अध्ययन किया है। उन्होंने ऑस्ट्रेलियाई मगरमच्छों के आवाजों के संग्रह को संकलित किया है,[23]और इन्हें उनके व्यवहार के साथ सम्बंधित किया है।उनके अनुसार मगरमच्छ के मस्तिष्क का आकार स्तनधारियों की तुलना में काफी छोटा होता है (खारे पानी के मगरमच्छ में शरीर के भार का सिर्फ 0.05%), वे बहुत कम शर्तों के साथ बहुत मुश्किल काम को भी सीख सकते हैं। उन्होंने यह भीनिष्कर्ष निकाला है कि मगरमच्छ की आवाज में भाषा की गहन क्षमता निहित है। जबकि वर्तमान में इस क्षमता को इतना अधिक स्वीकार नहीं किया गया है। उनका सुझाव है कि खारे पानी के मगरमच्छ चालाक जानवर हैं, जो प्रयोगशाला चूहों की तुलना में अधिक तेजी से सीख सकते हैं। वे मौसम में परिवर्तन के साथ अपने शिकार के अप्रवासी मार्ग का पता लगाना भी सीख लेते हैं।मनुष्यों पर हमलेऑस्ट्रेलिया के बाहर हमलों के आंकड़े सीमित हैं। ऑस्ट्रेलिया में हमले दुर्लभ हैं और जब कभी ये हमले होते हैं, तो राष्ट्रीय समाचार प्रकाशनों में दिखाई देते हैं।देश में हर साल लगभग एक या दो घातक हमले दर्ज किये जाते हैं।[24]छोटे स्तर के हमले संभवतया ऑस्ट्रेलिया में वन्यजीव अधिकारीयों के द्वारा किये जाने वाले गहन प्रयासों के कारण होते हैं, जब वे कई जोखिम युक्त नदमुखों, नदियों, झीलों और समुद्र के किनारों पर चेतावनी के संकेत लगाने का काम कर रहे होते हैं। आर्न्हेम भूमि केबड़े आदिवासी समुदायों पर होने वाले हमले दर्ज ही नहीं किये जाते.[कृपया उद्धरण जोड़ें]हाल ही मेंबोर्नियो,[25]सुमात्रा,[26]पूर्वी भारत (अंडमान द्वीप समूह)[27][28]और म्यांमार में हमले हुए हैं,[29]जिनका अधिक प्रचार नहीं हुआ।19 फ़रवरी 1945 को रामरी द्वीप की लड़ाई में जब जापानी सैनिक लौट रहे थे, उस समय खारे पानी के मगरमच्छों ने उन परहमला किया और इसमें 400 जापानी सैनिकों की मौत हो गयी। ब्रिटिश सैनिकों ने उस दलदल को घेर लिया, जहां से जापानी लौट रहे थे, एक रात के लिए जापानियों को उस मैंग्रोव में रुकना पड़ा, जहां हजारों की संख्या में खारे पानी के मगरमच्छ रहते थे।रामरी के मगरमच्छ के इस हमले को गिनीज़ बुक ऑफ़ रिकॉर्ड्स में दर्ज किया गया है, इसका शीर्षक है "द ग्रेटेस्ट डिसास्टर सफर्ड फ्रॉम एनिमल्स"||


*.मगरमच्छ का हमला*

मगरमच्छ को देखकर क्या आपके चेहरे पर कभीमुस्कराहट आ सकती है? संगीत और नाटक के तौर पर लिखी गयी बच्चों की एक कहानीपीटर पैनमें एक किरदार कैप्टन हुक सबको इस तरह खबरदार करता है, “मगर को देखकर कभी मुस्कराने की मत सोचना।” भला क्यों? वह बताता है, क्योंकि उस वक्त मगरमच्छ के “दिमाग में सिर्फ यह घूम रहा होता है कि कब आपको चट कर जाए।”यह सच है कि दुनिया-भर में पाए जानेवाले तरह-तरह के मगरमच्छों में, कुछ ऐसे हैं जोइंसानों पर हमला करते हैं। लेकिन “ऐसा इतना कम होता है . . . कि आम तौर पर इन्हें आदमखोर नहीं कहा जा सकता।” (इनसाइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका) कुछ लोगोंकी नज़र में मगरमच्छ बदसूरत और डरावना होता है तो कुछ के लिए यह बहुत दिलचस्प जानवर है। आइए भारत में पायी जानेवाली मगरमच्छ की तीन किस्मों पर गौर करें। खारे पानी में रहनेवाला मगर, मीठे पानी में रहनेवाला मगर और घड़ियाल।खारे पानी का बड़ा मगरखारे पानी या मुहाने (समुद्र और नदी के संगम) पर रहनेवाला मगर, धरती पर रेंगनेवाले सभी जंतुओं में सबसे बड़ा होता है। इसकी लंबाई 23 फीट[7 m]या उससे ज़्यादा और वज़न 1,000 किलोग्राम तक हो सकता है। यह सिर्फ खारे पानी में हीरहता है। यह भारत से लेकर उत्तरी ऑस्ट्रेलिया तक के सागर तटों के दलदलों में पाया जाता है जहाँ मैनग्रोव नाम के पेड़ उगते हैं, साथ ही इनके बीच के मुहानों और समुद्रों में पाया जाता है। यह मांसाहारी होता है इसलिए चूहे, मेंढक, मछली, साँप, केकड़े, कछुए यहाँ तक कि हिरन को भी निगल जाता है। लेकिन इसकी खुराक बहुत कम होती है। बड़ा नर एक दिन में सिर्फ 500 से 700 ग्राम खाना खाता है। यह एक आराम-पसंद जानवर है। यह या तो धूप सेंकता रहता है या फिर बिना हिले-डुले पानी में पड़ा रहता है और इसका हाज़मा भी बहुत अच्छी तरह काम करता है। इन्हीं वजहों से इसे ज़्यादा ऊर्जा की ज़रूरत नहीं पड़ती। कभी-कभार खारे पानी में रहनेवाला बड़ा मगरमच्छ किसी बेखबर इंसानपर हमला कर सकता है। यह अपनी पूँछ को दाएँ-बाएँ हिलाकर पानी में तैरता है और ऐसे में इसका सारा शरीर पानी के अंदर रहता है, सिर्फ नथुने और आँखें बाहर होती हैं। ज़मीन पर यह अपने छोटे-छोटे पैरों के बल चलता है। अपना शिकार पकड़ने के लिए यह ज़ोरदार छलाँग भी लगा सकता है और कई दफे तो इसे शिकार के पीछे सरपट दौड़ते भी देखा गया है। दूसरे मगरमच्छों की तरह इसकी सूँघने, देखने और सुनने की शक्ति बहुत तेज़ होती है। नर मगरमच्छ सहवास के मौसम में अपने इलाके की रखवाली करते वक्तबहुत ही हिंसक हो जाता है, उसी तरह मादा अपने अंडों की रखवाली के समय बहुत खूँखारहो जाती है।बच्चों को जी-जान से पालनेवाली माँमादा मगरमच्छ अकसर समुद्र के किनारे सड़ी-गली पत्तियों, घास-फूस और मिट्टी से अपना घरौंदा बनाती है। कभी-कभी वह एक बार में 100 अंडे तक देती है, जिनके खोल बहुतसख्त होते हैं। फिर वह अंडों को अच्छी तरह ढक देती है और शिकारियों से उनकी हिफाज़त करती है। इसके बाद,वह अपने घरौंदे पर पानी छिड़कती है ताकि घास-फूस से बना घर और भी सड़ने लगे, उससे ज़्यादा गर्मी पैदा हो और अंडों की अच्छी सिंकाई हो।अब आगे जो होता है, वह बहुत दिलचस्प है। अंडे से निकलनेवाले बच्चों का लिंग, अंडेको मिलनेवाले तापमान पर निर्भर करता है। है न, अनोखी बात! जब अंडे को 28 से 31 डिग्री सेलसियस तक का तापमान मिलता है तोकरीब 100 दिन में उसमें से मादा मगरमच्छनिकलती है। और जब तापमान 32.5 डिग्री सेलसियस होता है तो अंडे में से 64 दिनोंके अंदर नर मगरमच्छ निकलता है। लेकिन तापमान 32.5 से 33 डिग्री सेलसियस के बीच हो, तो उसमें से नर या मादा कोई भी निकल सकता है। घरौंदे की एक तरफ पानी, तो दूसरी तरफ सूरज की कड़कती धूप होती है इसलिए जिस तरफ गर्मी होती है, उधर से नर और जिस तरफ ठंडक होती है वहाँ से मादा निकल सकती है।जब माँ बच्चे की चिचियाहट सुनती है, तो वहघरौंदे पर से घास-फूस हटा देती है और कभी-कभी जब बच्चे अपने खास दाँतों से अंडे को नहीं तोड़ पाते, तो वह खुद उसे तोड़ देती है। फिर बच्चे को बहुत सँभालकरअपने बड़े जबड़ों में उठाती है और जीभ के नीचे थैलीनुमा जगह में रखकर पानी के किनारे ले जाती है। ये बच्चे जन्म से ही अपने बलबूते जीने लगते हैं और फौरन कीड़े-मकोड़े, मेंढक और छोटी-छोटी मछलियाँ पकड़ने लग जाते हैं। लेकिन कुछ माँएं बच्चों को एक इलाके में रखकर उनके आस-पास ही रहती हैं और कई महीनों तक उनकी हिफाज़त करती हैं। साथ ही पिता भी बच्चोंकी देखभाल और हिफाज़त करता है।

3..मीठे पानी का मगर और लंबी नाकवाला घड़ियाल

मीठे पानी का मगर और लंबी नाकवाला घड़ियालमीठे पानी का मगर और घड़ियाल सिर्फ भारत के उप-महाद्वीप में पाए जाते हैं। इस मगर की लंबाई करीब 13 फीट[4 m]होती है यानीखारे पानी के मगर के मुकाबले यह काफी छोटा होता है। यह भारत के मीठे पानी के दलदलों, झीलों और नदियों में पाया जाता है। यह छोटे-छोटे जानवरों को अपने शक्तिशाली जबड़ों से धरदबोचता है और पानी में डुबा-डुबाकर, इधर-उधर उछालकर उसके टुकड़े-टुकड़े करके खाता है।मगरमच्छ अपना साथी कैसे ढूँढ़ता है? जब उसे साथी की तलाश होती है तो वह अपना जबड़ा ज़ोर-ज़ोर से पानी पर मारते हुए गुर्राता है। सहवास के बाद वह घरौंदे की रखवाली करने, बच्चों को अंडे से बाहर निकालने और कुछ समय तक उनकी देखभाल करने में मादा का साथ निभाता है।घड़ियाल जो कि बहुत कम पाए जाते हैं, असल में मगरमच्छ नहीं होते बल्कि कई तरीकों से उनसे बहुत अनोखे होते हैं। अपने लंबे और तंग जबड़ों से घड़ियाल आसानी से पहचाने जाते हैं। मछली उनका खास भोजन है और उनके ये जबड़े मछली पकड़ने के लिए बिलकुल सही होते हैं। हालाँकि घड़ियालोंकी लंबाई खारे पानी के मगरमच्छों के जितनी होती है लेकिन घड़ियाल इंसान पर हमला नहीं करते। ये मगरमच्छों के मुकाबले कम मोटे और कम खुरदरे होते हैं इसलिए उत्तरी भारत की गहरी और तेज़ बहती नदियों में बड़ी रफ्तार से तैर सकते हैं।सहवास के दौरान नर घड़ियाल के थूथन का सिरा गुब्बारे की तरह उभर आता है। इससे उसकी सिसकारने की आवाज़ मोटी और भारी हो जाती है और मादा घड़ियाल उसकी तरफ खिंची चली आती है।पर्यावरण में इनका काममगरमच्छ हमारे पर्यावरण के लिए कितने ज़रूरी हैं? ये नदियों, झीलों और उनकेआस-पास के इलाकों से सड़ी-गली मछलियाँ औरजानवर खाते हैं। इस तरह ये पानी को गंदा होने से बचाते हैं। ये कमज़ोर, घायल और बीमार जानवरों का शिकार करते हैं। ये मछलियाँ खाते हैं, जैसे कि कैटफिश। कैटफिश व्यापार के नज़रिए से बड़ी नुकसानदेह हैं क्योंकि ये कार्प और तिलापिया मछलियाँ खा जाती हैं जिन्हें बड़े पैमाने पर इंसानों के खाने के लिए पकड़ा जाता है।मगरमच्छ के आँसू नहीं बल्कि जीने केलिए संघर्षक्या आपने किसी को यह कहते सुना है कि उसके तो मगरमच्छ के आँसू थे? इसका मतलब है, झूठमूठ का रोना या दिखावटी शोक। पर जहाँ तक मगर की बात है, उसके आँसुओं के ज़रिए उसके शरीर का अनचाहा नमक बाहर निकलजाता है। लेकिन सन्‌ 1970 के दशक की शुरूआत में मगरमच्छों के लिए शायद सचमुच ही आँसू बहाए गए हों। उस वक्त भारत में सिर्फ कुछ हज़ार मगर रह गए थे या दूसरे शब्दों में कहें तो पहले उनकी जितनी संख्या थी, उसका सिर्फ 10 प्रतिशत रह गयाथा। क्यों? क्योंकि इंसान जैसे-जैसे मगर के इलाकों पर कब्ज़ा करने लगे, उनका जीना दुश्वार हो गया। क्योंकि मगरमच्छ छोटे और कमज़ोर पालतू जानवरों को खा जाते थे इसलिए उन्हें खतरा समझकर मार डाला जाता था। इसके अलावा, कइयों की जीभ पर मगर के गोश्त और अंडों का स्वाद चढ़ गया था। मगरमच्छ की कस्तूरी ग्रंथियों का इस्तेमाल इत्र बनाने के लिए किया जाने लगा। उस पर से, बाँध बनाने और पानी के प्रदूषण की वजह से मगरमच्छों की आबादी बहुत घट गयी। लेकिन जिस वजह से मगर के धरती से गायब होने की नौबत आयी, वह थी उसके चमड़े की माँग। मगर के चमड़े से बने जूते, छोटे-बड़े बैग, बेल्ट और दूसरी चीज़ें इतनी सुंदर और टिकाऊ होती हैं कि सभी इन चीज़ों को चाहने लगे। हालाँकि इस वजह से मगरमच्छों को आज भी खतरा है, लेकिनउनकी हिफाज़त के लिए जो कदम उठाए गए उससे बहुत कामयाबी मिली है!—नीचे दिया बक्स देखिए।मुस्कराना मत भूलिए!अब जबकि मगर परिवार के कुछ सदस्यों को आप और करीब से जान गए हैं तो उनके बारे में आपका क्या खयाल है? अगर उनके बारे में पहले आपके खयालात अच्छे नहीं थे तो उम्मीद करते हैं कि अब उनमें आपकी दिलचस्पी जागी होगी। दुनिया-भर में ऐसे बहुत-से लोग हैं, जो जानवरों से प्यार करते हैं और एक ऐसे दिन की आस लगाए हुए हैं जब वे किसी भी जानवर, यहाँ तक कि खारे पानी के बड़े मगर से भी नहीं डरेंगे। रेंगनेवाले जंतुओं का रचयिता, जब इस धरतीको नया रूप देगा

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दुनिया के 10 सबसे खतरनाक जानवर

दुनिया के 10 सबसे खतरनाक जानवर***



विश्व में कई ऐसे खतरनाक जीव-जंतु हैं, जो पलक झपकते ही अपने जहर से मौत की नींद सुला सकता है, तो कुछ जीवों के कारण पहले बीमारी और उसके बाद मौत से सामना करना पड़ता है। और कुछ तो तुरंत चिर-फाड़ कर खा जाते हैं। लोग सोचते वही खतरनाक जानवर हैं जो जंगल में रहते हैं पर ऐसा नहीं हैं, आइये मैं आपको कुछ ऐसे खतरनाक जीव-जन्तुओ से मिलता हूँ जो दिखने में तो सॉफ्ट है पर हैं बहुत ही घातक..विश्व के 10 सबसे खतरनाक और घातक जानवर – 10 Most Dangerous Animals Of World In Hindi10). हाथी – Elephant

हाथी ज़मीन पर रहने वाला एक विशाल आकार का प्राणी है। यह विश्व के खतरनाक जानवरों में सुमार हैं। हालाँकि हाथी शाकाहारी होते हैं। फिर भी जब ये आक्रामक हो जाए तो तहस-नहस कर देते हैं। विश्व भर में लगभग 10,000 लोग हाथियों से भिड़त के कारण प्रत्येक वर्ष अपनी जान गवां देते हैं।

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दरियाई घोड़े – Hippopotamuses



दरियाई घोड़े शाकाहारी होते हैं. लेकिन इसका कतई यह मतलब नहीं कि वे खतरनाक नहीं होते। वे काफी आक्रामक होते हैं और अपने इलाके में किसी को प्रवेश करता देख उसको मारने सेपीछे नहीं रहते।

*** मगरमच्छ – Crocodile***


मगरमच्छ जितने डरावने दिखते हैं, उससे कहीं ज्यादा खतरनाक भी होते हैं। वे मांसाहारी होते हैं और कभी-कभी तोखुद से बड़े जीवों का भी शिकार करते हैं जैसे कि छोटे दरियाई घोड़े और जंगली भैंस। खारे पानी के मगरमच्छ तो शार्क को भी अपना शिकार बना लेते हैं।


*************शेर – Lion**********


ऐसे तो सभी जानते हैं की शेर जंगल का राजा होता है। और इसका राजा होने का भी एक कारण है की ये बहुत ही घातक होते हैं। शेर की दो प्रजातियां पाई जाती हैं एक एशियाई शेर औरदूसरे अफ्रीकन शेर। अफ्रीकन शेर एशियाई शेरो से अधिक बलवान और लम्बे होते हैं। विश्व भर में प्रत्येक वर्ष 12,000 से 15,000 लोग शेरो का शिकार होते हैं और ये मामला सबसे ज्यादा अफ्रीकन देशो से हैं इसलिए अफ्रीकन शेरो को बहुत ही खतरनाक माना जाता hai

************जेलीफ़िश – Jellyfish**********


 बॉक्स जेलीफ़िश समुद्र की गहराई में पाए जाने वाला एक घातक जीव-जंतु हैं। जेलीफिश नाम का मतलब ये नहीं की यह कोई मछली की प्रजाति हैं। इसका शारीरिक बनावट कुछ बॉक्स तरह होता हैं इसलिए इसे बॉक्स जेलीफिश कहते हैं। इसमें कई प्रजातियां होते हैं। इसका एक डंक इंसान की मृत्यु के लिए काफी हैं। इसकी सबसे बड़ी प्रजाति नोमुरा जेलीफ़िश नावों को भी पलट देता हैं। हालाँकि इसका शिकार सिर्फ समुन्दर में जाने वाले लोग होते हैं।

 ******शार्क – Shark*******


शार्क एक पृष्ठवंशी समुद्री जल में रहने वाला प्राणी है।इसका शरीर बहुत लम्बा होता है जो शल्कों से ढका रहता है। यह एक माँसाहारी प्राणी है। इसे परफेक्ट किलिंग मशीन भी कहते हैं। इसका हमला बहुत तेज होता हैं। इसका मुँह सामने न होकर नीचे की ओर होता है जिसमें तेज दाँत होते हैं। पलक झपकते शिकार को चबा जाते है।



** इनलैंड ताइपन सांप – Inland Taipan Snake**



यह सांप जमीन पर पाये जाने वाले सांपो में सबसे ज़हरीला है। इसकी एक बाईट (one bite) में  100 मिलीग्राम तक ज़हरहोता है जो की बहुत ज्यादा नहीं है पर यह इतना घातक होता है कि 100 इंसानो को मौत कि नींद सुला सकता है। इनका ज़हर रैटल स्नेक (rattle snake) की तुलना में 10 गुना औरकोबरा (cobra snake) की तुलना में 50 गुना ज्यादा घातकहोता है।


******कुत्ता – Dog********



कुत्ता भी एक घातक जानवर हैं हर साल मारे गए लोगों की संख्या: लगभग 25,000. रेबीज एक वायरल संक्रमण है जो कई जानवरों से फैल सकता है. मनुष्यों में यह ज्यादातर कुत्तों के काटने से फैलता है। रेबीज के लक्षण महीनों तक दिखाई नहीं देते लेकिन जब वे दिखाई पड़ते हैं, तो बीमारी लगभग जानलेवा हो चुकी होती है।

 *******मच्छर – Mosquito******


हर साल मारे गए लोगों की संख्या: लगभग 7,25,000. मच्छरों द्वारा फैलने वाला मलेरिया अकेले सलाना छह लाख लोगों की जान लेता है। डेंगू बुखार, येलो फीवर और इंसेफेलाइटिस जैसी खतरनाक बीमारियां भी मच्छरों से फैलती हैं। इसलिए इसे दुनिया के घातक जीवो की सूचि में रखा जाता हैं।

********इंसान – The Human********


इंसान जो की बुराई में जानवर से भी खतरनाक हैं वो भी इस खतरनाक सूची में शामिल हैं। आखिर इंसान एक-दूसरे की जान लेने के कितने ही अविश्वसनीय तरीके ढूंढ लेता है. और दुनिया में कोई ऐसा देश नहीं जहां इंसानो द्वारा इंसान को न मारा जाता हो।

About Bear in Hindi – भालुओं के बारे आप नहीं जानते होंगे यह 23 बात


1.भालू (Bear) झुंड की वजाय अकेला रहना पसंद करते हैं।1.भालुओं (Bears) के सूंघने की शक्ति बहुत तेज़ होती है यह कई किलोमीटर तक अपने शिकार को सूंघ सकते हैं।1.भालू बड़ी आसानी से पेड़ों पर चढ़ सकते हैं इसके इलावा इनकी पानी में तैरने की अच्छी क्षमता होती है।1.भालू ज्यादातर जमीन के बड़े -बड़े गड्डों और गुफाओं में रहना पसंद करते हैं।1.भालू का पसंदीदा भोजन मछली होता है ।1.भालुओं के अगले पैर के पंजे पिछले पंजों से बड़े होते हैं।1.भालू के दांत बहुत नुकीले होते हैं यह आसानी से अपने शिकार को चीर -फाड़ सकते हैं।1.भूरा भालू जो ज्यादातर एशिया मेंपाया जाता है दुनिया का सबसे साधारण भालू है।1.मौजूदा समय में भालुयों की 8 प्रजातियां पायी जाती हैं।1.ध्रुवीय भालू बर्फ़ पर अपने शिकारको 20 मील तक सूंघ सकते हैं।यह भी पढ़ें – बंदरों के बारे में 10 हैरानीजनक बातें1.ध्रुवीय भालू अंटार्कटिका पर नहीं पाए जाते हैं यह सिर्फ़ आर्कटिक पर ही पाए जाते हैं।1.भूरा भालू एक दिन में बीस हज़ार कैलोरीज तक खा जाते हैं।1.भूरा भालू फ़िनलैंड का राष्ट्रीय जानवर है।1.जंगली भालू की उम्र 30 वर्ष तक होती है।1.भालू के दिल की दड़कन की गति 40 प्रति मिनट होती है। परन्तु शीतकालीन अवस्था में सो रहे भालूके दिल की दड़कन की गति 8 प्रति मिनट ही रह जाती है।1.भालू पानी में 60 मील प्रति घंटे की रफ़्तार से तैर सकते हैं।1.ध्रुवीय भालू पानी में 7 फीट तक छलांग लगा सकता है।1.अमेरिका में 98 प्रतिशत भालू ग्रिज़ली भालू अलास्का में रहते हैं।1.ध्रुवीय भालू 100 मील प्रति घंटा की रफ़्तार से पानी में बिनारुके तैर सकते हैं।1.केवल ध्रुवीय भालू ही मांसाहारी होते हैं जबकि बाकी के सभी भालू सर्वाहारी होते हैं मतलब पौधे औरमांस दोनों खाते हैं ।यह भी पढ़ें – जलियांवाला बाग़ कांड (Kand) की 17 ख़ास बातें पढ़ें1.ध्रुवीय भालू भालुयों की प्रजातियों में से सबसे बड़ी प्रजाति है ।1.ध्रुवीय भालू का वजन 450 किलोग्राम तक होता है जबकि मादा भालू का वजन 150 -250 किलोग्राम तक होता है ।1.सूर्य भालू सबसे छोटे भालू होते हैं इन्हें हनी भालू के नाम से भी जाना जाता है । एक औसतन सूर्य भालू का आकार एक बड़े कुत्ते के बराबर होता है ।
भारत के हिमालय में काले और भूरे भालू मिलते हैं। इनमें ब्लैक भालू बिना किसी कारण के लोगों पर हमला करने के लिए जाना जाता है। यह सुबह में लोगों पर सबसे ज्यादा हमला करता है। हालांकि, इसकी वजह से प्रत्येक साल कितनी मौत होती है, इसका आंकड़ा मौजूद नहीं है।


*******चीता******

यह लेख एक पशु के बारे में है। अन्य प्रयोग हेतु,चीता (बहुविकल्पी)देखें।बिल्ली के कुल (विडाल) में आने वालाचीता(एसीनोनिक्स जुबेटस) अपनी अदभुत फूर्ती और रफ्तार के लिए पहचाना जाताहै। यहएसीनोनिक्सप्रजाति के अंतर्गत रहने वाला एकमात्र जीवित सदस्य है, जो कि अपने पंजों की बनावट के रूपांतरण के कारण पहचाने जाते हैं। इसी कारण, यह इकलौता विडाल वंशी है जिसके पंजे बंद नहीं होते हैं और जिसकी वजहसे इसकी पकड़ कमज़ोर रहती है (अतः वृक्षों में नहीं चढ़ सकता है हालांकि अपनी फुर्ती के कारण नीची टहनियों में चला जाता है)। ज़मीन पर रहने वाला ये सबसे तेज़ जानवर है जो एक छोटी सी छलांग में १२० कि॰मी॰ प्रति घंटे[3][4]तक की गति प्राप्त कर लेता है और ४६० मी. तक की दूरी तय कर सकता है और मात्र तीन सेकेंड के अंदर ये अपनी रफ्तार में १०३ कि॰मी॰ प्रति घंटे का इज़ाफ़ा कर लेता है, जो अधिकांशसुपरकारकी रफ्तार से भी तेज़ है।[5]हालिया अध्ययन से येसाबित हो चुका है कि धरती पर रहने वाला चीता सबसे तेज़ जानवर है।[6]
चीता में असामान्य रूप सेआनुवांशिकविभिन्नता कम होती है जिसके कारण वीर्य में बहुत कमशुक्राणुपाये जाते हैं जो कम गतिशील होते हैं क्योंकि आनुवांशिक कमज़ोरी के कारण वह विकृत कशाभिका (पूँछ) से ग्रस्त होते हैं।[8]इस तथ्य को इस तरह समझा जा सकता है कि जब दो असंबद्ध चीतों केबीच त्वचा प्रतिरोपण किया जाता है तो आदाता को प्रदाता की त्वचा की कोई अस्वीकृति नहीं होती है। यह सोचा जाता हैकि इसका कारण यह है कि पिछलेहिम युगके दौरान आनुवांशिक मार्गावरोध के कारणआंतरिक प्रजननलंबी अवधि तक चलता रहा। चीता शायदएशियाप्रवास से पहलेअफ़्रीकामेंमायोसीन(२.६ करोड़-७५ लाख वर्ष पहले) काल में विकसित हुआ है। हाल ही में वॉरेन जॉनसन और स्टीफन औब्रेन की अगुवाई में एक दल ने जीनोमिक डाइवरसिटी की प्रयोगशाला (फ्रेडरिक,मेरीलैंड,संयुक्त राज्य) केनेशनल कैंसर इंस्टिट्यूटमें एक नया अनुसंधान किया है और एशिया में रहने वाले 1.1 करोड़ वर्ष के रूप में सभी मौजूदा प्रजातियों के पिछले आम पूर्वजों को रखा है जो संशोधन और चीता विकास के बारे में मौजूदा विचारों के शोधन के लिए नेतृत्व कर सकते हैं। लुप्त प्रजातियों में अब शामिल हैं:एसिनोनिक्स परडिनेनसिस(प्लियोसिन) काल जो आधुनिक चीता से भी काफी बड़ा होता है औरयूरोप, भारत औरचीनमें पाया जाता है;एसिनोनिक्स इंटरमिडियस,(प्लिस्टोसेनअवधिके मध्य), में एक ही दूरी पर मिला था। विलुप्त जीनसमिरासिनोनिक्सबिलकुल चीता जैसा ही दिखने वाला प्राणी था, लेकिन हाल ही मेंDNAविश्लेषण ने प्रमाणित किया है किमिरासिनोनिक्स इनेक्सपेकटेटस,मिरासिनोनिक्स स्टुडेरीऔरमिरासिनोनिक्स ट्रुमनी, (प्लिस्टोसेन काल के अंत के प्रारंभ) उत्तर अमेरिका में पाए गए थे और जिसे"उत्तर अमेरिकी चीता" कहा जाता था लेकिन वे वास्तविक चीतानहीं थे, बल्कि वे कौगर के निकट जाती के थे।प्रजातियांहालांकि कई स्रोतों ने चीता के छह या उससे अधिक प्रजातियों को सूचीबद्ध किया है, लेकिन अधिकांश प्रजातियों के वर्गीकरण की स्थिति अनसुलझे हैं।एसिनोनिक्स रेक्स-किंग चीता (नीचे देखें)- से अलग की खोजके बाद इसे परित्यक्त कर दिया गया था क्योंकि यह केवल अप्रभावी जीन था। अप्रभावी जीन के कारणएसिनोनिक्स जुबेटस गुटाटुसप्रजाति के ऊनी चीता का भी शायद बदलाव होता रहा है। सबसे अधिक मान्यता प्राप्त कुछ प्रजातियों में शामिल हैं:[9]*.एशियाई चीता(एसिनोनिक्स जुबेटस वेनाटिकस) : एशिया (अफगानिस्तान,भारत,ईरान,इराक,इजरायल,जॉर्डन,ओमान,पाकिस्तान,सऊदी अरब,सीरिया,रूस)*.उत्तर पश्चिमी अफ्रीकी चीता(एसिनोनिक्स जुबेटस हेक) : उत्तर पश्चिमी अफ्रीका (अल्जीरिया,जिबूती,मिस्र,माली,मॉरिटानिया,मोरक्को,नाइजर,ट्यूनीशियाऔरपश्चिमी सहारा) और पश्चिमी अफ्रीका (बेनिन,बुर्किना,फासो,घाना,माली,मॉरिटानिया,नाइजरऔरसेनेगल)*.एसिनोनिक्स जुबेटस राइनेल : पूर्वी अफ्रीका (केन्या,सोमालिया,तंजानियाऔरयुगांडा)*.एसिनोनिक्स जुबेटस जुबेटस : दक्षिणी अफ्रीका (अंगोला,बोत्सवाना,रिपब्लिक ऑफ द कांगो,मोजाम्बिक,मलावी,दक्षिण अफ्रीका,तंजानिया,जाम्बिया,जिम्बाब्वेऔरनामीबिया)*.एसिनोनिक्स जुबेटस सोमेरिंगी : केंद्रीय अफ्रीका (कैमरून,चाड,सेन्ट्रल अफ्रीकी रिपब्लिक,इथोपिया,नाइजीरिया,नाइजरऔरसूडान)*.एसिनोनिक्स जुबेटस वेलोक्सविवरणचीता कावक्षस्थलसुदृढ़ और उसकीकमरपतली होती है। चीता की लघु चर्म पर काले रंग के मोटे-मोटे गोल धब्बे होते हैं जिसका आकार 2 से 3 से॰मी॰ (0.79 से 1.18 इंच) के उसके पूरे शरीर पर होते हैं और शिकार करते समय वह इससे आसानी सेछलावरणकरता है। इसके सफेद तल पर कोई दाग नहीं होते, लेकिन पूंछ में धब्बे होते हैं और पूंछ के अंत में चार से छः काले गोले होते हैं। आम तौर पर इसका पूंछ एक घना सफेद गुच्छा के साथ समाप्त होता है। बड़ी-बड़ी आंखो के साथ चीता का एक छोटा सासिरहोता है। इसके काले रंग के "आँसू चिह्न" इसके आंख के कोने वाले भाग से नाक के नीचे उसके मुंह तक होती है जिससे वह अपने आंख से सूर्य की रौशनी को दूर रखता है और शिकार करने में इससे उसे काफी सहायता मिलती है और साथ ही इसके कारण वह काफी दूर तक देख सकता है।हालांकि यह काफी तेज गति से दौड़ सकता है लेकिन इसका शरीरलंबी दूरी की दौड़ को बर्दाश्त नहीं कर सकता. अर्थात यह एक तेज धावक है।एक वयस्क चीता का नाप 36 से 65 कि॰ग्राम (79 से 143 पौंड) से होता है। इसके पूरे शरीर की लंबाई 115 से 135 से॰मी॰ (45 से 53 इंच) से होता है जबकि पूंछ की लंबाई 84से॰मी॰ (2.76 फीट) से माप सकते हैं। चीता की कंधे तक की ऊंचाई 67 से 94 से॰मी॰ (26 से 37 इंच) होती है। नर चीते मादा चीते से आकार में थोड़े बड़े होते हैं और इनका सिर भी थोड़ा सा बड़ा होता है, लेकिन चीता के आकार में कुछ ज्यादा अंतर नहीं होता और यदि उन्हें अलग-अलग देखा जाए तोदोनों में अंतर करना मुश्किल होगा। समान आकार केतेन्दुएंकी तुलना में आम तौर पर चीता का शरीर छोटा होता है लेकिन इसकी पूंछ लम्बी होती है और चीता उनसे ऊंचाई मेंभी ज्यादा होता है (औसतन 90 से॰मी॰ (3.0 फीट) लंबाई होती है) और इसलिए यह अधिक सुव्यवस्थित लगता है।कुछ चीतों में दुर्लभ चर्म पैटर्नपरिवर्तनहोते हैं: बड़े, धब्बेदार, मिले हुए दाग वाले चीतों को "किंग चीता" के रूप में जाना जाता है। एक बार के लिए तो इसे एक अलग प्रजाति ही मान लिया गया था, लेकिन यह महज अफ्रीकी चीता का एक परिवर्तन है। "किंग चीता" को केवल कुछ ही समय के लिएजंगल में देखा जाता है, लेकिन इसका पालन-पोषण कैद में किया जाता है।एक चीता.चीता के पंजे में अर्ध सिकुड़न योग्यनाखुनहोते हैं[8], (यह प्रवृति केवल तीन अन्य बिल्ली प्रजातियों में ही पाया जाता है:मत्स्य ग्रहण बिल्ली,चिपटे-सिर वाली बिल्लीऔरइरियोमोट बिल्ली) जिससे उसे उच्च गति में अतिरिक्त पकड़ मिलती है। चीता के पंजे काअस्थिबंधसंरचना अन्य बिल्लियों के ही समान होते हैं और केवल त्वचा के आवरण का अभाव होता है और अन्य किस्मों में चर्म रहते हैं और इसलिएडिवक्लॉके अपवाद के साथ पंजे हमेशा दिखाई देते हैं। डिवक्लॉ बहुत छोटे होते हैं और अन्य बिल्लियों की तुलना में सीधे होते हैं।चीता की रचना कुछ इस प्रकार से हुई है कि यह काफी तेज दौड़ने में सक्षम होता है, इसके तेज दौड़ने के कारणों मेंइसका वृहद नासाद्वार है जो ज्यादा से ज्यादा ऑक्सीजन लेने की अनुमति प्रदान करती है और इसमें एक विस्तृत दिल और फेफड़े होते हैं जो ऑक्सीजन को कुशलतापूर्वक परिचालित करने के लिए एक साथ कार्य करते हैं। जब यह शिकारका तेजी के साथ पीछा करता है तो इसका श्वास दर प्रति मिनट 60 से बढ़ कर 150 हो जाता है।[8]अर्द्ध सिकुड़न योग्य नाखुन होने के कारण ज़मीन पर पकड़ के साथ यह दौड़ सकता है,चीता अपनी पूंछ का उपयोग एक दिशा नियंत्रक के रूप में करता है, अर्थात स्टीयरिंग[कृपया उद्धरण जोड़ें]के अर्थ में करता है जो इसे तेजी से मुड़ने की अनुमति देता है और यह शिकार पर पीछे से हमला करने के लिए आवश्यक होता है क्योंकि शिकार अक्सर बचने के लिए वैसे घुमाव का प्रयोग करते हैं।बोत्सवानाके ओकावंगो डेल्टा में सूर्यास्त के समय चीताबड़ी बिल्लीके विपरीत चीताघुरघुराहटके रूप में सांस लेते हैं, परगर्जननहीं कर सकते हैं। इसके विपरीत, केवल सांस लेने के समय के अलावा बड़ी बिल्लियां गर्जन कर सकती हैं लेकिन घुरघुराहट नहीं कर सकती. हालांकि, अभी भी कुछ लोगों द्वारा चीता को बड़ी बिल्लियों की सबसे छोटी प्रजाति के रूप में माना जाता है। और अक्सर गलती से चीता को तेंदुआ मान लिया जाता है जबकि चीता की विशेषताएं उससे भिन्न है, उदाहरण स्वरूप चीता में लम्बी आंसू-चिह्न रेखा होती है जो उसके आंख के कोने वाले हिस्से से उसके मुंह तक लम्बी होती है। चीता का शारीरिक ढांचा भी तेंदुआ से काफी अलग होता है, खासकर इसकी पतली और लंबी पूंछ और तेंदुए के विपरीत इसके धब्बे गुलाब फूल की नक्काशी की तरह व्यवस्थित नहीं होते.चीता एक संवेदनशील प्रजाति है। सभी बड़ी बिल्ली प्रजातियों में यह एक ऐसी प्रजाति है जो नए वातावरण को जल्दी सेस्वीकारनहीं करती है। इसने हमेशा ही साबित किया है कि इसे कैद में रखना मुश्किल है, हालांकि हाल ही में कुछ चिड़ियाघर इसके पालन-पोषण में सफल हुए हैं। इसके खाल के लिए व्यापक रूप से इसका शिकार करने के कारण चीता अब प्राकृतिक वास और शिकार करने दोनों में असक्षम होते जा रहे हैं।पूर्व में बिल्लियों के बीच चीता को विशेष रूप से आदिम माना जाता था और लगभग 18 मिलियन वर्ष पहले ये प्रकट हुए थे। हालांकि नए अनुसंधान से यह पता चलता है कि मौजूदा बिल्ली की 40 प्रजातियों का उदय इतना पुराना नहीं है-लगभग 11 मिलियन साल पहले ये प्रकट हुए थे। वही अनुसंधान इंगित करता है कि आकृति विज्ञान के आधार पर चीता व्युत्पन्न है, जो पांच करोड़ साल पहले के आसपास विशेष रूप से प्राचीन वंश के रहने वाले चीता अपने करीबी रिश्तेदारों से अलग होते हैं(पुमा कोनकोलोर,कौगर,औरपुमा यागुआरोंडी,जेगुएरुंडी[10][11]पुराकालीन दस्तावेजोंमें जब से ये दिखाई देती हैं तब से काफी मात्रा में इन प्रजातियों में परिवर्तन नहीं हुआ है।आकार और भिन्नरूपकिंग चीताअपनी अनूठी कोट पैटर्न दिखाते हुए एक किंग चीता.एक विशिष्ट खाल पद्धति विशेषता के चलते किंग चीता दूसरोंचीतों से बिलकुल अलग और दुर्लभ होते हैं। पहली बार 1926 में जिम्बाब्वे में इसकी खोज की गई थी। 1927 में प्रकृतिवादीरेजिनाल्ड इन्नेस पॉकॉकने इसके एक अलग प्रजाति होने की घोषणा की थी, लेकिन सबूत की कमी के कारण 1939 में इस फैसले को खण्डित कर दिया गया था, लेकिन 1928 में, एकवाल्टर रोथ्सचिल्डद्वारा खरीदी त्वचा मेंउन्होंने किंग चीता और धब्बेदार चीता में अंतर पाया और अबेल चैपमैन ने धब्बेदार चीता के रंग रूप पर विचार किया। 1926 और 1974 के बीच ऐसे ही करीब बाईस खाल पाए गए। 1927 के बाद से जंगल में पांच गुना अधिक किंग चीता के होने को सूचित किया गया था। हालांकि अफ्रीका से अजीब चिह्नित खाल बरामद हुए थे, हालांकि 1974 तक दक्षिण अफ्रीका केक्रूगर नेशनल पार्कमें जिंदा किंग चीता दिखाई नहीं दिए थे।प्रच्छन्न प्राणीविज्ञानीपौल और लेना बोटरिएल ने 1975 में एक अभियान के दौरान एक फोटो लिया था। साथ ही वे कुछ और नमूने प्राप्त करने में भी सफल रहे थे। यह एक धब्बेदार चीता से काफी बड़ा लग रहा था और उसके खाल की बनावट बिलकुल अलग थी। सात वर्षों में पहली बार 1986 में एक और जंगल निरीक्षण किया गया था। 1987 तक अड़तीस नमूने दर्ज किए गए थे जिसमें से कई खाल नमूने थे।ठोस रूप से इस प्रजाति के होने की स्थिति का पता 1981 में चला जब दक्षिण अफ्रीका केडी विल्ड्ट चीता एण्ड वाइल्ड लाइफ सेंटरमें किंग चीता का जन्म हुआ था। मई 1981 में दो धब्बेदार मादा चीतों ने वहां चीते को जन्म दिया है और जिसमें एक किंग चीता था। दोनों मादा चीता को नर चीतों के साथट्रांसवालक्षेत्र के जंगल से पकड़ा गया था (जहां किंग चीतों के होने की संभावना जताई गई थी). इसकेअलावा उसके बाद भी सेंटर पर किंग चीतों का जन्म हुआ था। जिम्बाब्वे, बोत्सवाना और दक्षिण अफ्रीका के ट्रांसवाल प्रांत के उत्तरी भाग में उनके मौजूद होने का ज्ञात किया गया। एकप्रतिसारी जीनका वंशागत जरूर इस पद्धति से दोनों माता-पिता से हुआ होगा जो उनके दुर्लभ होने का एक कारण है।अन्य भिन्न रंगअन्य दुर्लभ रंग के प्रजातियों में चित्ती आकार,मेलेनिनताअवर्णताऔर ग्रे रंगाई के चीते शामिल हैं। ज्यादातर भारतीय चीतों में इसे सूचित किया गया है, विशेष रूप से बंदी बने चीते में यह पाया जाता है जिसे शिकार के लिए रखा जाता है।1608 में भारत केमुगलसम्राटजहांगीरके पास सफेद चीता होने का प्रमाण दर्ज किया गया है।तुज़्के-ए-जहांगीरके वृतांत में, सम्राट का कहना है कि उनके राज्य के तीसरे वर्ष में:राजा बीर सिंह देव एक सफेद चीता मुझे दिखाने के लिए लाएथे।हालांकि प्राणियों के अन्य प्रकारों में पक्षियों और दूसरे जानवरों के सफेद किस्मों के थे।...लेकिन मैंने सफेद चीता कभी नहीं देखा था।इसके धब्बे, जो (आमतौर पर) काले होते हैं, नीले रंग के थे और उसके शरीर के सफेदी रंग पर नीले रंग का छाया था।यह संकेत देता है किचिनचिला उत्परिवर्तनजो बाल शाफ्ट पर रंजक की मात्रा को सीमित करता है। हालांकि धब्बे काले रंग के हो जाते है और कम घने रंजकता एक धुंधले और भूरा प्रभाव देता था। साथ ही आगरा पर जहांगीर के सफेद चीता, गुग्गिसबर्ग के अनुसार प्रारंभिक अवर्णता की रिपोर्ट बिउफोर्ट पश्चिम से आया था।1925 में एच एफ स्टोनहेम ने "नेचर इन इस्ट अफ्रीका" को एक पत्र में केनिया केट्रांस-ज़ोइया जिलेमें मेलेनिनताचीता (भूत चिह्नों के साथ काले रंग की) के होने की बात बताई. वेसे फिजराल्ड़ ने जाम्बिया में धब्बेदार चीतों कीकम्पनी में एक मेलेनिनता चीते को देखा गया था। लाल (एरीथ्रिस्टिक) चीतों में सुनहरे पृष्ठभूमि पर गहरे पीले रंग के धब्बे होते हैं। क्रीम (इसाबेल्लीन) चीतों में पीली पृष्ठभूमि पर लाल पीले धब्बे होते है। कुछ रेगिस्तान क्षेत्र के चीते असामान्य रूप से पीले होते हैं; संभवतः वे आसानी से छूप जाते हैं और इसलिए वे एक बेहतर शिकारी होते हैं और उनमें अधिक नस्ल की संभावना होती है और वे अपने इस पीले रंग को बरकरार रखते हैं। नीले (माल्टीज़ या भूरे) चीतों को विभिन्न सफेद-भूरे-नीले (चिनचिला) धब्बे के साथ सफेद रंग या गहरे भूरे धब्बे के साथ पीले भूरे चीतों (माल्टीज़ उत्परिवर्तन) के रूप में वर्णित किया गया है। 1921 में तंजानिया में (पॉकॉक) में बिलकुल कम धब्बों के साथ एक चीता को पाया गया था, इसके गर्दन और पृष्ठभूमि के कुछ स्थानों में बहुत कम धब्बे थे और ये धब्बे काफी छोटे थे।क्रम विस्तार एवं प्राकृतिक वाससेरेनगेटी नेशनल पार्क, तंजानिया में एक चीता.भौगोलिक द्रष्टि से अफ्रीका और दक्षिण पश्चिम एशिया में चीतों की ऐसी आबादी मौजूद है जो अलग-थलग रहती है। इनकी एक छोटी आबादी (लगभग पचास के आसपास)ईरानकेखुरासान प्रदेशमें भी रहती है, चीतों के संरक्षण का कार्यभार देख रहा समूह इन्हे बचाने के प्रयास में पूरी तत्परता से जुटा हुआ है।[12]सम्भव है कि इनकी कुछ संख्याभारतमें भी मौजूद हो, लेकिन इस बारे में विश्वास के साथ कुछ नहीं कहा जा सकता. अपुष्ट रिपोर्टों के अनुसारपाकिस्तानकेब्लूचिस्तानराज्य में भी कुछएशियाई मूल के चीतेमौजूद हैं, हाल ही में इस क्षेत्र से एक मृत चीता पाया गया था।[13]चीतो की नस्ल उन क्षेत्रों में अधिक पनपती है जहां मैदानी इलाक़ा काफी बड़ा होता है और इसमें शिकार की संख्या भी अधिक होती है। चीता खुलेमैदानोंऔरअर्धमरूभूमि,घास का बड़ा मैदानऔर मोटी झाड़ियों के बीच में रहना ज्यादा पसंद करता है, हालांकि अलग-अलग क्षेत्रों में इनके रहने का स्थान अलग-अलग होता है। मिसाल के तौर पर नामीबिया में येघासभूमि,सवानाके जंगलों,घास के बड़े मैदानोंऔर पहाड़ी भूभाग में रहते हैं।जिस तरह आज छोटे जानवरों के शिकार मेंशिकारी कुत्तोंका उपयोग किया जाता है, उसी तरहअभिजातवर्ग के उस समयहिरणया चिकारा के शिकार में चीते का उपयोग किया करते थे।प्रजनन एवं व्यवहारचीता शावक.मादा चीता बीस से चौबीस महीने के अंदर व्यस्क हो जाती है जबकि नर चीते में एक वर्ष की आयु में ही परिपक्वता आ जाती हैं (हालांकि नर चीता तीन वर्ष की आयु से पहले संभोग नहींकरता) और संभोग पूरा साल भर होता है।सेरेनगटीमें पाए जाने वाले चीतों पर तैयार रिपोर्ट से पता चलता है कि मादाचीता स्वच्छंद प्रवृत्ति की होती हैं, यही वजह है कि उसकेबच्चों के बाप भी अलग-अलग होते हैं।[14]मादा चीतागर्भधारण करने के बाद एक से लेकर नौ बच्चों कोजन्मदे सकती है लेकिन औसतन ये तीन से पांच बच्चों को जन्म देती है। मादा चीता का गर्भकाल 150 से 300 ग्राम (5.3 से 10.6 औंस) दिनों का होता है बिल्ली परिवारों के दूसरे जानवरों के विपरीत चीता जन्म से ही अपने शरीर पर विशिष्ट लक्षण लेकर पैदा होता है। पैदाईश के समय से ही चीते की गर्दन पर रोएंदार और मुलायम बाल होते हैं, पीठ के बीच तक फैले इस मुलायम रोएं कोमेंटलभी कहते हैं। ये मुलायम और रोएंदार बाल इसेअयालहोने का आभास देते हैं, जैसे-जैसे चीते की उम्र बढ़ती है, इसके बाल झड़ने लगते हैं। ऐसा अनुमान किया जाता है कि अयाल (रेटल) के कारण चीते के बच्चेहनी बेजरके सम्भावित आक्रमणकारी के भय से मुक्त हो जाते हैं।[15]चीते का बच्चा अपने जन्म के तेरहवें से लेकर बीसवें महीने के अंदर अपनी मां का साथ छोड़ देता है। एक आज़ाद चीते की आयु बारह जबकि पिंजड़े में कैद चीते की अधिकतम उम्र बीस वर्ष तक हो सकती है।नर चीते की तुलना में मादा चीते अकेले रहती हैं औऱ प्राय एक दूसरे से कतराती हैं, हांलाकि मां और पुत्री के कुछ जोड़े थोड़े समय के लिए एक साथ ज़रुर रहते हैं। चीतों कासामाजिक ढ़ांचाअदभुत और अनोखा होता है। बच्चों की परवरिश करते समय को छोड़ दिया जाए तो मादा चीते अकेले रहती है। चीते के बच्चे के शुरुआती अट्ठारह महीने काफी महत्वपूर्ण होते हैं, इस दौरान बच्चे अपनी मां से जीने काहुनर सीखते हैं, मां उन्हें शिकार करने से लेकर दुश्मनों से बचने का गुर सिखाती है। जन्म के डेढ़ साल बाद मां अपने बच्चों का साथ छोड़ देती है, उसके बाद ये बच्चे अपनभाइयोंका अलग समूह बनाते हैं, ये समूह अगले छह महीनों तक साथ रहता है। दो वर्षों के बाद मादा चीता इस समूह से अलग हो जाती है जबकि नर चीते हमेशा साथ रहते हैं।क्षेत्रनरचीतों में सामुदायिक एवं पारिवारिक भाव प्रचूर मात्रा में होता है, नर चीते आमतौर पर अपने पारिवारिक सदस्यों केसाथ रहते हैं, अगर परिवार में एक ही नर चीता है तो वो दूसरे परिवार के नर चीतों के साथ मिलकर एक समूह बना लेते है, या फिर वो दूसरे समूहों में शामिल हो जाता है। इन समूहों कोसंगठनभी कह सकते हैं। कैरो एवं कोलिंस द्वारा तंज़ानिया के मैदानी इलाकों में पाए जाने वाले चीतों पर किये गए अध्ययन के अनुसार 41 प्रतिशत चीते अकेले रहते हैं, जबकि 40 प्रतिशत जोड़ों और 19 प्रतिशत तिकड़ी के रूप में रहते हैं।[16]संगठित रूप से रहने वाले चीते अपने क्षेत्र को अधिक समय तक अपने नियंत्रण में रखते हैं, दूसरी तरफ़ अकेले रहने वाला चीता अपने क्षेत्रों को परस्पर बदलता रहता है, हांलाकि अध्यन से पता चलता है कि संगठित रूप से रहने वालेऔर अकेले रहने वाले दोनों अपने अधिकार क्षेत्रों पर समानसमय तक नियंत्रण रखते हैं, नियंत्रण की ये अवधि चार से लेकर साढ़े चार साल तक के बीच की होती है।नर चीते एक निश्चिति परीधि में रहना पसन्द करते हैं। जिन स्थानों पर मादा चीते रहते हैं, उनका क्षेत्रफल बड़ा हो सकता है, ये इसी के आसापास अपना क्षेत्र बनाते हैं, लेकिन बड़े क्षेत्रफल सुरक्षा की द्रष्टि से खतरनाक सिद्ध हो सकते हैं। इसलिए नर चीते मादा चीतों के कुछ होम रेंजेस काचयन करते हैं, इन स्थानों की सुरक्षा करना आसान होता है, इसकी वजह से प्रजनन की प्रक्रिया भी चरम पर होती है, यानी इन्हे संतान उत्पत्ति के अधिक अवसर मिलते हैं। समूह का ये प्रयास होता है कि क्षेत्र में नर और मादा चीते आसानी से मिल सके। इन इलाकों का क्षेत्रफल कितना बड़ा हो इसका दारोमदारअफ्रीकाके हिस्सों में मौजूद मूलभूत सुविधाओंपर निर्धारित करता है।37 से 160 कि॰मी2(14 से 62 वर्गमील)नर चीते अपनेइलाके को चिह्नितऔर उसकी सीमा निश्चित करने के लिए किसी विशेष वस्तु पर अपना मुत्र विसर्जित करते हैं, ये पेड़, लकड़ी का लट्ठा या फिरमिट्टी की कोई मुंडेरहो सकती है। इस प्रक्रिया में पूरा समूह सहयोग करता है। अपनी सीमा में प्रवेश करने वाले किसी भी बाहरी जानवरों को चीता सहन नहीं करता, किसी अजनबी के प्रवेश की सूरत में चीता उसकी जान तक ले सकता है।मादागोरंगगोरो संरक्षण क्षेत्र में मादा चीता और शावक.बिल्ली से दिखने वाले दूसरे जानवरों और नर चीते की तुलना में मादा चीता अपने रहने के लिए कोई क्षेत्र निर्धारित नहीं करती. मादा चीता उन स्थानों पर रहने को प्राथमिकता देती हैं, जहां घर जैसा एहसास होता है, इसेहोम रेंजकह सकते हैं। इन स्थानों पर परिवार के दूसरे मादा सदस्यों जैसे उसकी मां, बहनें और पुत्री साथ साथ रहते हैं। मादा चीते हमेशा अकेले शिकार करना पसंद करते हैं, लेकिन शिकार के दौरान वो अपने बच्चों को साथ रखती है, ताकि वो शिकार करने का तरीक़ा सीख सकें, जन्म के लगभग डेढ़ महीने बाद ही मादा चीता अपने बच्चों को शिकार पर ले जना शुरु कर देती है।होम रेंज की सीमा पूर्ण रूप से शिकार करने की उपलब्धता परनिर्भर करता है। दक्षिणी अफ्रीकीवुडलैंडमें चीते की सीमा कम से कम 34 कि॰मी2(370,000,000 वर्ग फुट) जबकिनामीबियाके कुछ भागों में 1,500 कि॰मी2(1.6×1010 वर्ग फुट) तक पहुंच सकते हैं।स्वरोच्चारणचीता शेर की तरह दहाड़ नहीं सकता, लेकिन इसकी गुर्राहट किसी भी तरह शेर से कम भयावह नहीं होती, चीते की आवाज़ को हम निम्न स्वरों से पहचान सकते हैं:*.-चिर्पिंग- चीता अपने साथियों और मादा चीता अपने बच्चों की तलाश के दौरान जोर-जोर से आवाज़ लगाती है जिसे चिर्पिंग कहते हैं। चीते का बच्चा जब आवाज़ निकालता है तो ये चिड़ियों की चहचहाट जैसा स्वर पैदाकरता है, यही कारण है इसेचिर्पिंगकहते हैं।*.चरिंगयास्टटरिंग- यह वोकलिज़ेशन सामाजिक बैठकों के दौरान चीता द्वारा उत्सर्जित होता है।नर और मादा चीते जब मिलते हैं तो उनके स्वर में हकलाहट आ जाती है, ये भाव एक दूसरे के प्रति दिलचस्पी, पसंद और अनिश्चितता का सूचक होते हैं (हालांकि प्रत्येक लिंग विभिन्न कारणों के लिए चर्रस करते हैं).*.गुर्राहट- चीता जब नाराज़ होता है तो ये गुर्राने औरफुफकारने लगता है, इसके नथुनों से थूक भी निकलने लगताहै, ऐसे स्वर चीते की झल्लाहट को दर्शाते हैं, चीता जबखतरे में होता है तब भी इसी तरह के स्वर निकालता है।*.आर्तनाद- खतरे में घिरे चीते को जब बचकर निकलने की सूरत नज़र नहीं आती तो उसकी फुफकार चिल्लाहट में बदलजाती है।*.घुरघुराहट- मादा चीता जब अपने बच्चों के साथ होती है, बिल्ली जैसी आवाज़ निकालती है (ज्यादातर बच्चे और उनकी माताओं के बीच). घुरघुराहट जैसी ये आवाज़ आक्रामकता औरशिथिलतादोनों का आभास कराती है। चीता की घुरघुराहट रॉबर्ट एक्लुंड के इंग्रेसिव स्पीच वेबसाइट[1]या रॉबर्ट एक्लुंड वाइल्डलाइफ पेज[2]पर सुना जा सकता.आहार और शिकारइम्पाला मार के साथ एक चीता.मूलरुप से चीतामांसाहारीहोता है, ये अधिकतकस्तनपायीके अन्तर्गत 40 कि॰ग्राम (1,400 औंस) जानवरों का शिकार करता है, जो अपने बच्चों को दूध पिलाते हैं, इसमेंथॉमसन चिकारे,ग्रांट चिकारे,एक प्रकार का हरिणऔरइम्पलाशामिल हैं। बड़े स्तनधारियों के युवा रूपों जैसेअफ्रीकी हिरणऔरज़ेबराऔर वयस्को का भी शिकार कर लेता जबचीते अपने समूह में होते हैं। चीताखरगोशऔर एक प्रकार कीअफ्रीकी चिड़ियागुनियाफॉलका भी शिकार करता है। आमतौर पर बिल्ली का प्रजातियों वाले जानवर रात को शिकार करते हैं, लेकिन चीतादिनका शिकारी है। चीता या तो सवेरे के समय शिकार करता है, या फिर देर शाम को, ये ऐसा समय होता है जबकि न तो ज्यादा गर्मी होती है और न ही अधिक अंधेरा होता है।चीता अपने शिकार को उसकीगंधसे नहीं बल्कि उसकीछायासे शिकार करता है। चीता पहले अपने शिकार के पीछे चुपके चुपके चलता है 10–30 मी॰ (33–98 फीट) फिर अचानक उसका पीछा करना शुरु कर देता है, ये सारी प्रक्रिया मिनटों के अंदर होती है, अगर चीता अपने शिकार को पहले हमले में नहीं पकड़ पाता तो फिर वो उसे छोड़ देता है। यही कारण है कि चीता के शिकार करने की औसतन सफलता दर लगभग 50% है।[8]उसके 112 और 120 किमी/घंटा (70 और 75 मील/घंटा) के रफ्तार से दौड़ने के कारण चीता के शरीर पर ज्यादा दबाव पड़ता है। जब ये अपनी पूरी रफ्तार से दौड़ता है तो इसकेशरीर का तापमानइतना अधिक होता है कि ये उसके लिए घातक भी साबित हो सकता है। यही कारण है कि शिकार के बाद चीता काफ़ी देर तक आराम करता है। कभी-कभी तो आराम की अविधि आधे घंटे या उससे भी अधिक हो सकती है। चीता अपने शिकार को पीछा करते समय मारता है, फिर उसके बाद शिकार के गले पर प्रहार करता है, ताकि उसका दम घुट जाए, चीता के लिए चार पैरों वाले जानवरों का गला घोंटना आसान नहीं होता। इस दुविधा से पार करने के लिए ही वो इनके गले केश्वासनलीमें पंजो और दांतो से हमला करता है। जिसके चलते शिकार कमज़ोर पड़ता जाता है, इसके बाद चीता परभक्षी द्वारा उसके शिकार को ले जाने से पहले ही जितना जल्दी संभव हो अपने शिकार को निगलने में देर नहीं करता .चीता का भोजन उसके परिवेश पर आधारित होता है। मिसाल के तौर परपूर्वी अफ्रीकाके मैदानी ईलाकों में ये हिरण या चिंकारा का शिकार करना पसंद करता है ये चीता की तुलना मेंछोटा होता है (लगभग 53–67 से॰मी॰ (21–26 इंच) उंचा और 70–107 से॰मी॰ (28–42 इंच) लम्बाई) इसके अलावा इसकी रफ्तार भी चीते से कम होती है (सिर्फ 80 किमी/घंटा (50 मील/घंटा) तक) यही वजह है कि चीता इसे आसानी से शिकार कर लेता है, चीता अपने शिकार के लिए उन जानवरों को चुनता है जो आमतौर पर अपने झुंड से अलग चलते हैं। ये ज़रुरी नहीं है कि चीता अपने शिकार के लिए कमज़ोर और वृद्ध जानवरों कोही निशाना बनाये, आम तौर पर चीता अपने शिकार के लिए उन जानवरों का चुनता है जो अपने झुंड से अलग चलते हैं।थॉमसन के चिंकारे की खोज करता एक चीता. गोरंगोरो ज्वालामुखी, तंजानिया.अंतर्विशिष्ट हिंसक सम्बन्धअपनी गति और शिकार करने की कौशल होने के बावजूद, मोटे तौर पर उसकी सीमा के अधिकांश दूसरे बड़े परभक्षियों द्वारा चीता को छांट दिया जाता हैं। क्योंकि वे कुछ समय के लिए अत्यधिक गति से दौड़ तो सकते हैं लेकिन पेड़ों पर चढ़ नहीं सकते और अफ्रीका के अधिकांश शिकारी प्रजातियों के खिलाफ अपनी रक्षा नहीं कर सकते हैं। आम तौर पर वे लड़ाई से बचने की कोशिश करते हैं और ज़ख्मी होने के खतरे के बजाए वे बहुत जल्दी ही अपने द्वारा शिकार किए गए जानवर कासमर्पण कर देते हैं, यहां तक कि अपने द्वारा तत्काल शिकारकिए गए एक लकड़बग्घे को भी अर्पण कर देते हैं। क्योंकि चीतों को भरोसा होता है कि वे अपनी गति के आधार पर भोजन प्राप्त कर सकते हैं, लेकिन यदि किसी प्रकार से वे चोटिल हो गए तो उनकी गति कम हो जाएगी और अनिवार्य रूप से जीवन काखतरा भी हो सकता है।चीता द्वारा किए गए शिकार का अन्य शिकारियों को सौंप देने की संभावना लगभग 50% होती है।[8]दिन के विभिन्न समयों में चीता शिकार करने का संघर्ष और शिकार करने के बाद तुरंत ही खाने से बचने की कोशिश करता है। उपलब्ध रेंजके रूप में कटौति होने के चलते अफ्रीका में जानवरों की कमी हुई है और यही कारण है कि हाल के वर्षों में चीता को अन्य देशी अफ्रीकी शिकारियों से अधिक दबाव का सामना करनापड़ रहा है।[कृपया उद्धरण जोड़ें]जीवन के शुरुआती सप्ताह के दौरान ही अधिकांश चीतों की मृत्यु हो जाती है; शुरूआती समय के दौरान 90% तक चीता शावकों कोशेर, तेंदुए,लकड़बग्घे,जंगली कुत्तोंयाचीलद्वारा मार दिए जाते हैं। यही कारण है कि चीता शावक अक्सरसुरक्षा के लिए मोटे झाड़ियों में छिप जाते हैं। मादा चीता अपने शावकों की रक्षा करती है और कभी-कभी शिकारियों को अपने शावकों से दूर तक खदेड़ने में सफल भी होती है। कभी-कभी नर चीतों की मदद से भी दूसरे शिकारियों को दूर खदेड़ सकती है लेकिन इसके लिए उसके आपसी मेल और शिकारियों के आकार और संख्या निर्भर करते हैं। एक स्वस्थवयस्क चीता के गति के कारण उसके काफी कम परभक्षी होते हैं।[17]मनुष्यों के साथ संबंधआर्थिक महत्वएक चीता के साथ एक मंगोल योद्धा.चीता के खाल को पहलेप्रतिष्ठा का प्रतीकमाना जाता था। आज चीताइकोपर्यटनके लिए एक बढ़तीआर्थिकप्रतिष्ठा है और वेचिड़ियाघरमें भी पाए जाते हैं। अन्य बिल्ली के प्रजातियों प्रकारों में चीता सबसे कम आक्रामक होता है और उसे शिक्षित भी किया जा सकता है यही कारण है कि चीता शावकों को कभी-कभी अवैध रूप सेपालतूजानवर के रूप में बेचा जाता है।पहले और कभी-कभी आज भी चीतों को मारा जाता है क्योंकि कई किसानों का मानना है कि चीतापशुओंको खा जाते हैं। जब इस प्रजाति के लगभग लुप्त हो जाने के खतरे सामने आए तब किसानों को प्रशिक्षित करने के लिए कई अभियानों को चलायागया था और चीता के संरक्षण के लिए उन्हें प्रोत्साहित करना शुरू किया गया था। हाल ही में प्रामाणित किया गया हैकि चीते पालतू पशुओं का शिकार करके नहीं खाते चूंकि वे जंगली शिकारों को पसंद करते हैं इसलिए चीतों को न मारा जाए. हालांकि अपने क्षेत्र के हिस्से में खेत के शामिल होजाने से भी चीतों को कोई समस्या नहीं होती और वे संघर्ष के लिए तैयार रहते हैं।प्राचीन मिस्रके निवासी अक्सर चीतों को पालतू जानवर के रूप में पालते थे और पालने के साथ-साथ उन्हें शिकार करने के लिए प्रशिक्षित करते थे। चीते के आंखों पर पट्टी बांध कर शिकार के लिए छोटे पहिए वाले गाड़ियों पर या हुडदार घोड़े पर शिकार क्षेत्र में ले जाया जाता था और उन्हें चेन से बांध दिया जाता था जबकि कुत्ते उनके शिकार से उत्तेजित हो जाते थे। जब शिकार काफी निकट होता था तब चीतों के मुंह से पट्टी हटाकर उसे छोड़ दिया जाता था। यह परंपरा प्राचीनफारसियोंतक पहुंचा और फिर वहीं से इसने भारत में प्रवेश किया और बीसवीं शाताब्दी तक भारतीय राजाओं ने इस परम्परा का निर्वाह किया। प्रतिष्ठा और शिष्टता के साथ चीता का जुड़ा रहना जारी रहा, साथ ही साथ पालतू जानवर के रूप में चीतों को पालने के पीछे चीतों के शिकार करने का अद्भूत कौशल था। अन्य राजकुमारों और राजाओं ने चीता को पालतू जानवर के रूप में रखा जिसमेंचंगेज खानऔरचार्लेमग्नेशामिल हैं जो चीतों को अपने महल के मैदान के भीतर खुला रखते थे और उसे अपना शान मानते थे।मुगल साम्राज्यकेमहान राजा अकबर, जिनका शासन 1556से 1605 तक था, उन्होंने करीब 1000 चीतों को रखा था।[8]हाल ही में 1930 के दशक तकइथियोपिया के सम्राटहेली सेलासिएको अक्सर एक चेन में बंधे चीता के आगे चलते हुए फोटो को दिखाया गया है।संरक्षण स्थितिअनुवांशिक कारकों और चीता के बड़े प्रतिद्वंदि जानवरों जैसे शेर औरलकड़बग्घेके कारण चीता शावकों केमृत्यु दरकाफी अधिक होते हैं। हाल ही में आंतरिक प्रजनन के कारणों के चलते चीते काफी मिलती जुलती अनुवांशिक रूपरेखा का सहभागी होते हैं। जिसके चलते इनमें कमजोर शुक्राणु, जन्मदोष, तंग दांत, सिंकुड़े पूंछ और बंकित अंग होते हैं। कुछ जीव विज्ञानी का अब मानना है कि एक प्रजाति के रूप में उनका पनपनासहजहैं।[18]चीताइंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजरवेशन ऑफ नेचर(IUCN) मेंचीता कोअसुरक्षित प्रजातियोंकी सूची में शामिल किया है(अफ्रीकी उप-प्रजातियां संकट में, एशियाई उप-प्रजातियां की स्थिति गंभीर) साथ ही साथ अमेरिका केलुप्तप्राय प्रजाति अधिनियमपर:CITESके परिशिष्ट मेंप्रजातियां के संकटमें होने - के बारे में बताया है (अंतर्राष्ट्रीयव्यापार पर विलुप्तप्राय प्रजाति में समझौता). पच्चीस अफ्रीकी देशों के जंगलों में लगभग 12,400 चीते बचे हुए हैं, लगभग 2,500 चीतों के साथ नामीबिया में सबसे अधिक हैं। गंभीर रूप से संकटग्रस्त करीब पचास से साठ एशियाई चीते ईरान में बचे हुए हैं। दुनिया भर के चिड़ियाघरों मेंइन विट्रो फर्टिलाइजेशनके उपयोग के साथ-साथ प्रजनन कार्यक्रम सम्पन्न कराए जा रहे हैं।1990 में नामीबिया में स्थापितचीता कंजरवेशन फन्डका मिशन चीता और पर्यावरण व्यवस्था पर अनुसंधान और शिक्षा के क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उत्कृष्ट और मान्यता प्राप्त केंद्र बनाना है, इसलिए दुनिया भर के चीतो के संरक्षण और प्रबंधन के लिए हितधारकों के साथ कार्य कर रहे हैं।साथ ही CCF ने दक्षिण अफ्रीका के चारों ओर स्टेशनों की स्थापना की है ताकि संरक्षण के प्रयास जारी रहें.चीता की सुरक्षा के लिए वर्ष 1993 में दक्षिण अफ्रीका पर आधारितचीता संरक्षण फाउंडेशननामक एक संगठन को स्थापित किया गया था।पुनर्जंगलीकरण परियोजनामुख्य लेख :Cheetah Reintroduction in Indiaभारत में कई वर्षों से चीतों के होने का ज्ञात किया गया है। लेकिन शिकार और अन्य प्रयोजनों के कारण बीसवीं सदी के पहले चीता विलुप्त हो गए थे। इसलिएभारत सरकारने एक फिर से चीता के लिए पुनर्जंगलीकरण के लिए योजना बना रही है। गुरुवार, जुलाई 9, 2009 मेंटाइम्स ऑफ़ इंडियाके पृष्ठ संख्या 11 पर एक लेख में स्पष्ट रूप से भारत में चीतों केआयातकी सलाह दी है जहां उनका पालन पोषण अधीनता में किया जाएगा. 1940 के दशक के बाद से भारत में चीते विलुप्त होते गए और इसलिए सरकार इस परियोजना पर योजना बना रही है। चीता केवल जानवर है कि भारत में लुप्त पिछले वर्णितपर्यावरण और वन मंत्रीजयराम रमेशजुलाई 7 कि 2009 मेंराज्य सभामें बताया कि "चीता एकमात्र ऐसा जानवर है जो पिछले 100 वर्षों में भारत में लुप्त होता गया है। हमें उन्हें विदेशों से लाकर इस प्रजाति की जनसंख्या को फिर से बढ़ाना चाहिए." प्रतिक्रिया स्वरूपभारतीय जनता पार्टी(भाजपा) के राजीव प्रताप रूडी से उन्होंने ध्यानाकर्षण सूचना प्राप्त किया। इस योजना का उद्देश्य उन चीतों का वापस लाना है जिसका अंधाधुंधशिकारऔर एक नाजुकप्रजननपद्धति की जटिलता के कारण लुप्त हो रहे हैं और जो बाघ संरक्षण को ट्रस्ट करने वाली समस्याओं को घेरती है। दिव्य भानुसिंह और एम के रणजीत सिंह नामक दोप्रकृतिवादियों नेअफ्रीकासे चीतों के आयात करने का सुझाव दिया। आयात के बाद बंदी के रूप में उनका पालन-पोषण किया जाएगा और समय की एक निश्चित अवधि के बाद उन्हें जंगलों में छोड़ा जाएगा.लोकप्रिय संस्कृति मेंटीटियन द्वारा लिखित बच्चुस और एरिएडने, 1523.फ़र्नांड नोफ्फ द्वारा लिखित द केयरेस, 1887.*.टीटियनकेबच्चुस और एरियाड्ने(1523), में भगवान केरथका वहन चीतों द्वारा किया जाता है (जोइटलीकेपुनर्जागरणमें जानवरों के शिकार के रूप में इस्तेमाल किया गया था). भगवानडियोनिससके साथ चीता अक्सर जुड़े होते थे और इस भगवान को रोमन बच्चुस के नाम से पूजा करते थे।*.जॉर्ज स्टुब्बकेचीता विथ टू इंडियन अटेन्डेंट्स एण्ड ए स्टैग(1764-1765) में चीता को शिकारी जानवर दिखाया गया है और साथ हीमद्रासके ब्रिटिश राज्यपाल,सर जॉर्ज पिजोटद्वाराजॉर्ज IIIको चीता केउपहार को एक स्मृति बनते दिखाया गया है।*.बेल्जियमप्रतीकवादी चित्रकारफ़र्नांड नोफ्फ(1858-1921) द्वाराद केयरेस(1896),ईडिपसऔरस्फिंक्सऔर एक महिला के सिर के साथ प्राणी चित्रण और चीता शरीर (अक्सर एक तेंदुआ के रूप में गलत समझा जाता है) के मिथक का प्रतिनिधित्व करता है।*.आन्ड्रे मेर्सिएरकेअवर फ्रेंड याम्बो(1961) एकफ्रांसीसीदंपती द्वारा अपनाए गए चीता की एक अनोखाजीवनीहै, जोपेरिसमें रहता है। इसेबोर्न फ्री(1960), का फ्रेंच जवाब के रूप में देखा जाता है जिनके लेखकजोय एडम्सनने अपने ही चीता की जीवनी लिखी थी जिसका शीर्षक थाद स्पोटेड स्फिंक्स(1969).*.एनिमेटेड श्रृंखलाथंडरकैट्समें एक मुख्य पात्र है जो एक मानव रूपी चीता था जिसका नाम चीतारा था।*.1986 मेंफ्रिटो-लेने एक मानवरूपी चीता,चेस्टर चीताकी शुरूआत अपनेचीतोसके लिए शुभंकर के रूप में किया।*.हेरोल्ड एण्ड कुमार गो टू व्हाइट केसलके उप-कथानक में एक पलायन चीता है, जो बाद में जोड़ी के साथमारिजुआनाधूम्रपान करता है और उन्हें सवारी करने कीअनुमति देता है।*.2005 की फिल्मड्यूमादक्षिण अफ्रीका के एक युवा कीकहानी है जो कई साहसिक कारनामों के साथ अपने पालतू चीता, ड्यूमा, को जंगल में छोड़ने की कोशिश करता है। यह फिल्म केरोल कौथरा होपक्राफ्ट और जैन होपक्राफ्ट द्वारा अफ्रीका की एक सच्ची कहानी पर आधारित"हाउ इट वाज विथ डुम्सपुस्तक पर आधारित है।*.पैट्रिक ओ'ब्राइनद्वारा लिखित हुसैन, एन एंटर्रटेनमेंट उपन्यास में भारत के ब्रिटिश राज के दौरान भारत|हुसैन, एन एंटर्रटेनमेंट[[उपन्यास में भारत केब्रिटिश राजके दौरानभारतमें स्थापित रॉयल्टी को रखने का प्रयास और चीतों को हिरण के शिकार का प्रशिक्षण को दिखाया गया है।


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The  domestic cat [1] [5]  ( Felis silvestris catus  or  Felis catus ) is a small, typically  furry ,  carnivorous   mammal . They are o...