**मधुमक्खी (honey bee)**
मधुमक्खीकीट वर्गका प्राणी है। मधुमक्खी सेमधुप्राप्त होता है जो अत्यन्त पौष्टिक भोजन है। यह संघ बनाकर रहती हैं। प्रत्येक संघ में एक रानी, कई सौ नर और शेष श्रमिक होते हैं। मधुमक्खियाँ छत्ते बनाकर रहती हैं। इनका यह घोसला (छत्ता)मोमसे बनता है। इसकेवंशएपिस में 7 जातियां एवं 44 उपजातियां हैं।
*******************संरक्षण स्थिति*********************
****************खतरे से बाहर(IUCN)*****************
वैज्ञानिक वर्गीकरण
जगत(रेगन्म):जंतुसंघ(फाइलम):सन्धिपादवर्ग(क्लास):कीटगण(ऑर्डर):कलापक्षकुल(फैमिली):एपीडीवंश(जीनस):एपिसजाति:*†ऍपिस लिथोहर्मिया*.†ऍपिस नियरेक्टिका*.उपजातिमाइक्रापिस:*.ऍपिस एन्ड्रनिफोर्मिस*.ऍपिस फ़्लॉरिया*.उपजातिमॅगापिस:*.एपिस डोरसॅटा*.उपजातिऍपिस':*.ऍपिस सेराना*.ऍपिस कॉशेव्निकोवी*.ऍपिस मेलिफेरा*.ऍपिस नाइग्रोसिन्क्ट
(कार्ल लीनियस, 1758)
प्रजातियाँजंतु जगत में मधुमक्खी ‘आर्थोपोडा’ संघ का कीट है। विश्व में मधुमक्खी की मुख्य पांच प्रजातियां पाई जाती हैं। जिनमें चार प्रजातियां भारत में पाई जाती हैं। मधुमक्खी की इन प्रजातियों से हमारे यहां के लोग प्राचीन काल से परिचित रहे हैं। इसकी प्रमुख पांच प्रजातियां हैं :|||
भुनगा या डम्भर (Apis melipona)यह आकार में सबसे छोटी और सबसे कम शहद एकत्र करने वाली मधुमक्खी है। शहद के मामले में न सही लेकिन परागण के मामले में इसका योगदान अन्य मधुमक्खियों से कम नहीं है। इसके शहद का स्वाद कुछ खट्टा होता है। आयुर्वेदिक दृष्टिसे इसका शहद सर्वोत्तम होता है क्योंकि यह जड़ी बूटियों के नन्हें फूलों, जहां अन्य मधुमक्खियां नहीं पहुंच पातीहैं, से भी पराग एकत्र कर लेती हैं।भंवर या सारंग (Apis dorsata)इसे देश के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग नाम से जाना जाताहै। उत्तर भारत में ‘भंवर’ या ‘भौंरेह’ कहते हैं। दक्षिण भारत में इसे ‘सारंग’ तथा राजस्थान में ‘मोम माखी’ कहते हैं। ये ऊंचे वृक्षों की डालियों, ऊंचे मकानों, चट्टानों आदि पर विषाल छत्ता बनाती हैं। छत्ता करीब डेढ़ से पौने दो मीटर तक चौड़ा होता है। इसका आकार अन्य भारतीय मधुमक्खियों से बड़ा होता है। अन्य मधुमक्खियों के मुकाबले यह शहद भी अधिक एकत्र करती हैं। एक छत्ते से एक बार में 30 से 50 किलोग्राम तक शहद मिल जाता है। स्वभाव से यह अत्यंत खतरनाक होती हैं। इसे छेड़ देने पर या किसी पक्षी द्वारा इसमें चोट मार देने पर यह दूर-दूर तक दौड़ाकर मनुष्यों या उसके पालतू पषुओं का पीछा करती हैं।अत्यंत आक्रामक होने के कारण ही यह पाली नहीं जा सकती। जंगलों में प्राप्त शहद इसी मधुमक्खी की होती है।पोतिंगा या छोटी मधुमक्खी (Apis florea)यह भी भंवर की तरह ही खुले में केवल एक छत्ता बनाती है। लेकिन इसका छत्ता छोटा होता है और डालियों पर लटकता हुआ देखा जा सकता है। इसका छत्ता अधिक ऊंचाई पर नहीं होता। छत्ता करीब 20 सेंटीमीटर लंबा और करीब इतना ही चौड़ा होता है। इससे एक बार में 250 ग्राम से लेकर 500 ग्राम तक शहद प्राप्त हो सकता है।खैरा या भारतीय मौन (Apis cerana indica)इसे ग्रामीण क्षेत्रों में मधुमक्खी की प्रजातियां ‘सतकोचवा’ मधुमक्खी कहते हैं। क्योंकि ये दीवारों या पेड़ों के खोखलों में एक के बाद एक करीब सात समानांतर छत्ते बनाती हैं। यह अन्य मधुमक्खियों की अपेक्षा कम आक्रामक होती हैं। इससे एक बार में एक-दो किलोग्राम शहद निकल सकता है। यह पेटियों में पाली जा सकती है। साल भर में इससे 10 से 15 किलोग्राम तक शहद प्राप्त हो सकती है।यूरोपियन मधुमक्खी (Apis mellifera)इसका विस्तार संपूर्ण यूरोप, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और अफ्रीका तक है। इसकी अनेक प्रजातियां जिनमें एक प्रजाति इटैलियन मधुमक्खी (Apis mellifera lingustica) है। वर्तमान में अपने देश में इसी इटैलियन मधुमक्खी का पालन हो रहा है। सबसे पहले इसे अपने देश में सन् 1962 में हिमाचल प्रदेश में नगरौटा नामक स्थान पर यूरोप से लाकर पाला गया था। इसके पश्चात 1966-67 में लुधियाना (पंजाब)में इसका पालन शुरू हुआ। यहां से फैलते-फैलते अब यह पूरे देश में पहुंच गई है। इसके पूर्व हमारे देश में भारतीय मौन पाली जाती थी। जिसका पालन अब लगभग समाप्त हो चुका है।कृषि उत्पादन में मधुमक्खियों का महत्त्वपरागणकारी जीवों में मधुमक्खी का विषेष महत्त्व है। इस संबंध में अनेक अध्ययन भी हुए हैं। सी.सी. घोष, जो सन् 1919 में इम्पीरियल कृषि अनुसंधान संस्थान में कार्यरतथे, ने मधुमक्खियों की महत्ता के संबंध में कहा था कि यह एक रुपए कीशहदवमोमदेती है तो दस रुपए की कीमत के बराबरउत्पादन बढ़ा देती है।भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान,नईदिल्लीमें कुछ फसलों पर परागण संबंधी परीक्षण किए गए।सौंफमें देखा गया कि जिन फूलों का मधुमक्खी द्वारा परागीकरण होने दिया गया उनमें 85 प्रतिशत बीज बने। इसके विपरीत जिन फूलों को मधुमक्खी द्वारा परागित करने से रोका गया उनमें मात्र 6.1 प्रतिशत बीज ही बने थे। यानी मधुमक्खी, सौंफ के उत्पादन को करीब 15 गुना बढ़ा देती है।बरसीममें तो बीज उत्पादन की यह बढ़ोत्तरी 112 गुना तथा उनके भार में 179 गुना अधिक देखी गई।सरसोंकी परपरागणी 'पूसा कल्याणी' जाति तो पूर्णतया मधुमक्खी के परागीकरण पर ही निर्भर है। फसल के जिन फूलों में मधुमक्खी ने परागीकृत किया उनके फूलों से औसतन 82 प्रतिशत फली बनी तथा एक फली में औसतन 14 बीज और बीज का औसत भार 3 मिलिग्राम पाया गया। इसके विपरीत जिन फूलों कोमधुमक्खी द्वारा परागण से रोका गया उनमें सिर्फ 5 प्रतिशत फलियां ही बनीं। एक फली में औसत एक बीज बना जिसकाभार एक मिलिग्राम से भी कम पाया गया। इसी तरह तिलहन की स्वपरागणी किस्मों में उत्पादन 25-30 प्रतिशत अधिक पाया गया।लीची,गोभी,इलायची,प्याज,कपासएवं कई फलों पर किए गए प्रयोगों में ऐसे परिणाम पाए गए।मधुमक्खी परिवारएक साथ रहने वाली सभी मधुमक्खियां एक मौनवंश (कॉलोनी) कहलाती हैं। एक मौनवंश में तीन तरह की मधुमक्खियां होती हैं : (1) रानी, (2) नर तथा (3) कमेरी।रानीएक मौनवंश में हजारों मधुमक्खियां होती हैं। इनमें रानी (क्वीन)केवल एकहोती है। यही वास्तव में पूर्ण विकसित मादा होती है। पूरे मौनवंश में अंडे देने का काम अकेली रानी मधुमक्खी ही करती है। यह आकार में अन्य मधुमक्खियोंसे बड़ी और चमकीली होती है जिससे इसे झुंड में आसानी से पहचाना जा सकता है।नर मधुमक्खीमौसम और प्रजनन काल के अनुसार नर मधुमक्खी (ड्रोन) की संख्या घटती-बढ़ती रहती है। प्रजनन काल में एक मौनवंष में ये ढाई-तीन सौ तक हो जाते हैं जबकि विपरीत परिस्थितियों में इनकी संख्या शून्य तक हो जाती है। इनकाकाम केवल रानी मधुमक्खी कागर्भाधानकरना है। गर्भाधान के लिए यद्यपि कई नर प्रयास करते हैं जिनमें एक ही सफल हो पाता है।कमेरी मधुमक्खीकिसी मौनवंश में सबसे महत्त्वपूर्ण मधुमक्खियां कमेरी (वर्कर) ही होती हैं। ये फूलों से रस ले आकरशहदतो बनाती ही हैं साथ-साथ अंडे-बच्चों की देखभाल और छत्ते के निर्माण का कार्य भी करती हैं।
मधुमक्खी पालन
व्यावसायिक स्तर के मधुमक्खीपालन में लगा एक व्यक्ति
मधु,परागकणआदि की प्राप्ति के लियेमधुमक्खियाँपाली जातीं हैं। यह एक क्रिषि आधारित उद्योग है। मधुमक्खियांफूलोंके रस को शहद में बदल देती हैं और उन्हें अपने छत्तों में जमा करती हैं। जंगलों से मधु एकत्र करने की परंपरा लंबे समय से लुप्त हो रही है। बाजार में शहद और इसके उत्पादों की बढ़ती मांग के कारण मधुमक्खी पालन अब एक लाभदायक और आकर्षक उद्यम के रूप में स्थापित हो चला है। मधुमक्खी पालन के उत्पाद के रूप में शहद और मोम आर्थिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं।मधुमक्खी पालन के लाभ*.पुष्परस व पराग का सदुपयोग, आय व स्वरोजगार का सृजन |*.शुद्व मधु, रायल जेली उत्पादन, मोम उत्पादन, पराग, मौनी विष आदि |*.३ बगैर अतिरिक्त खाद, बीज, सिंचाई एवं शस्य प्रबन्ध के मात्र मधुमक्खी के मौन वंश को फसलों के खेतों व मेड़ों पर रखने से कामेरी मधुमक्खी के पर परागण प्रकिया से फसल, सब्जी एवं फलोद्यान में सवा से डेढ़ गुना उपज में बढ़ोत्तरी होती है |*.मधुमक्खी उत्पाद जैसे मधु, रायलजेली व पराग के सेवन से मानव स्वस्थ एवं निरोगित होता है | मधु का नियमित सेवन करने से तपेदिक, अस्थमा, कब्जियत, खूल की कमी, रक्तचाप की बीमारी नहीं होती है | रायल जेली का सेवन करने से ट्यूमर नहीं होता है और स्मरण शक्ति व आयु में वृद्वि होती है | मधु मिश्रित पराग का सेवन करने से प्रास्ट्रेटाइटिस की बीमारी नहीं होती है | मौनी विष से गाठिया, बताश व कैंसर की दवायें बनायी जाती हैं | बी- थिरैपी से असाध्य रोगों का निदान किया जाता है |*.मधुमक्खी पालन में कम समय, कम लागत और कम ढांचागत पूंजी निवेश की जरूरत होती है,*.कम उपजवाले खेत से भी शहद और मधुमक्खी के मोम का उत्पादन किया जा सकता है,*.मधुमक्खियां खेती के किसी अन्य उद्यम से कोई ढांचागतप्रतिस्पर्द्धा नहीं करती हैं,*.मधुमक्खी पालन का पर्यावरण पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। मधुमक्खियां कई फूलवाले पौधों के परागण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। इस तरह वे सूर्यमुखी और विभिन्न फलों की उत्पादन मात्रा बढ़ाने में सहायक होती हैं,*.शहद एक स्वादिष्ट और पोषक खाद्य पदार्थ है। शहद एकत्र करने के पारंपरिक तरीके में मधुमक्खियों के जंगली छत्ते नष्ट कर दिये जाते हैं। इसे मधुमक्खियोंको बक्सों में रख कर और घर में शहद उत्पादन कर रोका जा सकता है,*.मधुमक्खी पालन किसी एक व्यक्ति या समूह द्वारा शुरू किया जा सकता है,*.बाजार में शहद और मोम की भारी मांग है।इतिहासवैज्ञानिक तरीके से विधिवत मधुमक्खी पालन का काम अठारहवीं सदी के अंत में ही शुरू हुआ। इसके पूर्व जंगलों से पारंपरिक ढंग से ही शहद एकत्र किया जाता था। पूरी दुनिया में तरीका लगभग एक जैसा ही था जिसमें धुआं करके, मधुमक्खियां भगा कर लोग मौन छत्तों को उसके स्थान से तोड़ कर फिर उसे निचोड़ कर शहद निकालते थे। जंगलों में हमारे देश में अभी भी ऐसे ही शहद निकाली जाती है।मधुमक्खी पालन का आधुनिक वैज्ञानिक तरीका पष्चिम की देन है। यह निम्न चरणों में विकसित हुआ :*.सन् 1789 मेंस्विटजरलैंडके फ्रांसिस ह्यूबर नामकव्यक्ति ने पहले-पहल लकड़ी की पेटी (मौनगृह) में मधुमक्खी पालने का प्रयास किया। इसके अंदर उसने लकड़ी के फ्रेम बनाए जो किताब के पन्नों की तरह एक-दूसरे से जुड़े थे।*.सन् 1851 में अमेरिका निवासी पादरी लैंगस्ट्राथ नेपता लगाया कि मधुमक्खियां अपने छत्तों के बीच 8 मिलिमीटर की जगह छोड़ती हैं। इसी आधार पर उन्होंने एक दूसरे से मुक्त फ्रेम बनाए जिस पर मधुमक्खियां छत्ते बना सकें।*.सन् 1857 में मेहरिंग ने मोमी छत्ताधार बनाया। यह मधुमक्खी मोम की बनी सीट होती है जिस पर छत्ते की कोठरियों की नाप के उभार बने होते हैं जिस पर मधुमक्खियां छत्ते बनाती हैं।*.सन् 1865 में ऑस्ट्रिया के मेजर डी. हुरस्का ने मधु-निष्कासन यंत्र बनाया। अब इस मशीन में शहद से भरे फ्रेम डाल कर उनकी शहद निकाली जाने लगी। इससे फ्रेम में लगे छत्ते एकदम सुरक्षित रहते हैं जिन्हेंपुनः मौन पेटी में रख दिया जाता है।*.सन् 1882 में कौलिन ने रानी अवरोधक जाली का निर्माणकिया जिससे बगछूट और घरछूट की समस्या का समाधान हो गया। क्योंकि इसके पूर्व मधुमक्खियां, रानी मधुमक्खी सहित भागने में सफल हो जाती थीं। लेकिन अब रानी का भागना संभव नहीं था।
मधुमक्खी के बारे में अनोखी मजेदार रोचक जानकारी और तथ्य।
मधुमक्खी से जुड़े हुए रोचक तथ्य और मजेदार जानकारी जानने के लिए जरूर पढ़े यहलेख। Interesting Information & Facts about Honey bee in Hindi. मधुमक्खी के बारे में जानिए सबकुछ।क्या एक मधुमक्खी दूसरी मधुमक्खी के डंक मार सकती है? इस सवाल का जवाब और मधुमक्खियों के बारे में आइए जानते हैं ढेर सारे facts…मधुमक्खियां एक छुपा हुआ खतरा है जो पता भी नहीं चलता कब हमला कर देती हैं। दुनिया के हर कोने में पाई जाती है। मधुमक्खियां ट्रिलियन की संख्या में दुनिया भर में मौजूद हैं। यह इंसानों की तरह अपने शहर और कॉलोनी बनाती है। यह मनुष्य से भी लाखों साल पहले धरती पर पाई जाती थी। धरती पर सबसे पहले सेल्यूलर टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल मधुमक्खियों ने ही किया था। मधुमक्खियों के बारे में बहुत सारे लोग बचपन में ही जान लेते हैं। कभी बुक्स में कभी पढ़ाई की किताबों में कभी कार्टून फिल्म में हम इन्हें देखते रहते हैं। या फिर फूलों पर मंडराते हुए इन्हें देखते हैं।मधुमक्खियों की एक कॉलोनी में लगभग 60000 मधुमक्खियां एक साथ रहती हैं। जिनमें से कुछ नर्स मधुमक्खियां होती है, जो बच्चों का ख्याल रखती है। कुछ नौकर मधुमक्खियां होती हैं जो रानी मधुमक्खी की सेवा करती हैं। कुछ रक्षक मधुमक्खियां होती है जो सिक्योरिटी का काम करती हैं। इसके अलावा मधुमक्खियों का एक ग्रुप ऐसा भी होता है, जिसका काम मरी हुई मधुमक्खियों को बाहर फेंकना होता है। इनको अंडरटेकर bees कहते हैं।जो शहद हम मजे के साथ खाते हैं, एक मधुमक्खी अपनी पूरी जिंदगी में एक चम्मच शहद का बारहवां हिस्सा ही बना पाती है। जब रानी मधुमक्खी पैदा होती है तो पैदा होने के 20 दिन के अंदर ही उसे नर मधुमक्खी के साथ संबंध बनाने पड़ते हैं। अगर वह 20 दिनके अंदर नर मधुमक्खी के साथ मिलाप ना करे तो वह कभी मां नहीं बन सकती। लेकिन रानी मधुमक्खी एक मिलाप के अंदर ही इतना ज्यादावीर्य अपने अंदर इकट्ठा कर लेती है। की अगले 4 सालों तक लगातार अंडे देने लगती है। एक रानी मधुमक्खी 1 दिन में तकरीबन 1000 अंडे देती रहती हैं। मेल मधुमक्खी जिन्हें Drone bee कहा जाता है, रानी मधुमक्खी के साथ संबंध बनाने के तुरंत बादही वह मर जाते हैं।एक पाउंडशहदजमा करने के लिए मधुमक्खियोंको 2 मिलियन फूलों का चक्कर लगाना पड़ता है। और 2 मिलियन फूलों पर आने जाने के लिए,मधुमक्खियां जितना सफर तय करती है, इतने में दुनिया के 3 चक्कर लगाए जा सकते हैं।आज से कुछ साल पहले Cornell University केएक स्टूडेंट ने मधुमक्खियों के साथ एक्सपेरिमेंट किया था। उसने मधुमक्खियों से अपने शरीर के अलग-अलग हिस्सों पर ढंग मरवाया था। यह जानने के लिए कि शरीर के किसहिस्से पर मधुमक्खियों के द्वारा डंक मारे जाने पर सबसे ज्यादा दर्द होता है। उस स्टूडेंट में यहां तक कि अपने लिंग पर भी डंक मरवाया था। उसका यह कहना था कि, “मैंने सोचा था कि सबसे ज्यादा मधुमक्खी के डंक मारने का दर्द गुप्तांग पर होगा। लेकिन मुझे निराशा हुई की private part में इतना दर्द नहीं हुआ था।” उसने कहा कि सबसे ज्यादा डंक का दर्द नाक के अंदर हुआ था।अब हम अपने सवाल के सबसे करीब आ गए हैं।क्या एक मधुमक्खी दूसरी मधुमक्खी के डंक मार सकती है? इसका जवाब है हां, इसके कई कारण हैं, जैसे कि मनुष्य आपस में युद्ध करते हैं, इसी तरह शहद की मधुमक्खियों में भी आपस में जंग होती है। एक दूसरे के छत्तों पर शहद चुराने के लिए हमला करती हैं। हमला करने वाली मधुमक्खियां जब दूसरे मधुमक्खियों के छत्ते में प्रवेश करने की जब कोशिश करती है, तो पहरेदार मधुमक्खियां उन पर अटैक करती हैं। एक दूसरे को डंक मारती है, लेकिन डंक मारने सेज्यादा वह मुंह से काट कर ही मधुमक्खियों को भगा देती है। मजेदार बात यह है कि हमला करने वाली मधुमक्खियों में से कुछ मधुमक्खियां छत्ते में दाखिल हो जाती हैं और वह मधुमक्खियां भी उसी छत्ते का मेंबर भी बन जाती है।मधुमक्खियों का हमला करने वाली मधुमक्खियों से युद्ध करने का तरीका यह है। की वह उड़कर दुश्मनों के इर्द गिर्द एक दायरा बनाकर तेजी के साथ उड़ती रहती है। और अपने पंख हिलाती रहती है, जिस से चक्कर के अंदर कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ जाती है। जिससे सर्कल के अंदर वाली मधुमक्खियां गर्मी की वजह और ऑक्सीजन की कमी से मर जाती है।शहद की मक्खियां कुछ देशों में 75% से 80 प्रतिशत तक फूलों, सब्जियों और मेवों का परागण करती है। यानी यह कहा जा सकता है कि, अगर पूरी दुनिया से मधुमक्खियां समाप्त हो जाए तो दुनिया खत्म हो जाएगी। दुनिया को चलाने के लिए इतने बड़े प्रयास के बावजूद हम इन्हें सिर्फ शहद की मक्खियों के रूप में ही जानते हैं।मधुमक्खी शहद कैसे बनाती है?एक नॉर्मल और हेल्दी मधुमक्खी का छत्ता 1 साल के अंदर 50 किलो तक शहद बना सकता है। शहद बनाने के लिए मधुमक्खियों को बहुत ही ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है। शहद अमृत यानी फूलों के रस (Nectar) से बनता है। मधुरस को फूलों से निकालना आसान नहीं है, पहले तो यह मधुमक्खियां एक अच्छा सा फूल ढूंढती हैं। जिसके मिलने के बाद वह फूल के अंदर जाती है, फिर वह अपना डंक उसमें डाल देती है। और वह फूलों के रस यानी अमृत को चूस कर अपने पेट में जमा करती है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि मधुमक्खियों केदो पेट होते हैं। एक नॉर्मल पेट और दूसरा शहद जमा करने के लिए पेट। अमृत यानी मधुरस को शहद जमा करने वाले पेट में भरा जाता है, और थोड़ा सा फूलों का रस उनके नॉर्मल पेट में भी जमा होता है अगर उन्हें भूख लगी हो तो।अपने शहद वाला पेट, फूलों के रस (अमृत) से पूरा भरने के लिए एक मधुमक्खी को लगभग 1000 फूलों से जमा करना पड़ता है। शहद वाला पेट इतना भर सकता है जितना कि मधुमक्खी का अपना खुद का वजन होता है। जब मधुमक्खियां वापिस अपने छत्ते की ओर आती है, तो रास्ते में उसके बॉडी के एंजाइम उस फूलों के रस यानी अमृत को मीठे और सुनहरे शहद में बदल देते हैं।शहद के छत्ते पर पहुंचने के बाद मधुमक्खी अपने पेट में जमा हुए शहद को दूसरे मधुमक्खी के मुंह में उल्टी कर देती हैं। और वह मधुमक्खियां दूसरी मधुमक्खियों के मुंह में शहद की उल्टी करती रहती हैं। यह प्रक्रिया चलती रहती है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि मधुमक्खियों द्वारा एक दूसरे के मुंह में उल्टी करने की प्रक्रिया शहद बनाने के लिए सबसे जरूरी है। जिससे फूलों के रस यानी अमृत से बने हुए सुनहरे मीठे शहद में और एंजाइम्स जमा होते चले जाते हैं। जिससे वह ज्यादा से ज्यादा और शुद्ध शहद बनता चला जाता है।केमिकली की बात करें तो इस प्रोसेस के दौरान कच्चा मधुरस, Simple Monosaccharides में परिवर्तित होता है, जैसे की ग्लूकोज़ या फ्रक्टोज। इस दौरान शहद बहुत ज्यादा गीला होता है, जिसको मधुमक्खियां शहद के छत्ते में जमा करने के दौरान अपने पंखों की मदद से शहद में मौजूद पानी को सुखा देती है। जिसे शहद और ज्यादा गाढ़ा होता चला जाता है। इसके बाद मधुमक्खियां शहद को Bee Wax ( मोम) से ढक देती है। जिसके कारण शहद अपनी असली रूप में आ जाता है।शहद में पानी बहुत कम होता है, जिसके कारण शहद बैक्टीरिया और Yeast को नष्ट करता है। इसलिए शहद को एंटीबैक्टीरियल माना जाता है। शहद से बैक्टीरिया और यीस्ट दूर ही रहते हैं। इस दुनिया में पाए जाने वाले कुछ गिने चुने खाद्य पदार्थों में से एक है, जो लंबे समय तक खराब नहीं होता। शहद इजिप्ट (मिस्र) के ताबूतों से भी प्राप्त हुआ। जो कि हजारों सालों से बंद पड़े हुए थे, और उन बंद ताबूतों में पाया गया शहद अच्छी कंडीशन में था।1 किलो शहद बनाने के लिए लगभग 20 हजार मधुमक्खियां तकरीबन दुनिया के 6 चक्कर (150000 miles) लगाने जितना सफर तय करती है। जिसमें वह लगभग 800000 फूलों से मधुरस इकट्ठा करती है।आशा है कि आपको मधुमक्खियों के बारे में यह निबंध या लेख आपको पसंद आया होगा। अपने दोस्तों के साथ भी जरूर शेयर करें धन्यवादplz Like shared my page...
कैसे करें मधुमक्खी पालन , बढ़ाये अपनी फसलकी पैदावार और कमायें दोगुना मुनाफा
शहद इकठ्ठा करने के लिए भारत में मधुमक्खी पालन प्राचीनतम परंपराओंमें से एक रही है। देशी और अंतर्राष्ट्रीय बाजार में शहद की लोकप्रियता और मांगकी वजह से मधुमक्खी पालन तेजी से लोकप्रिय होता जा रहा है। इससे न केवलकिसानों को अच्छी आय होती है बल्कि मधुममक्खी पालन मेंहोने वाली परागण का इस्तेमाल खेतों मेंकरने से कृषि उत्पादन में भी बढ़ोत्तरी होती है।मधुमक्खी पालन से शहद, मोम, रॉयल जैली आदि अतिरिक्त उत्पाद भी प्राप्त होते हैं जो किसानों की अतिरिक्त आमदनी का बेहतर जरिया साबित होते हैं। पारंपरिकफसलों में लगातार हो रहे नुकसान के मद्देनज़र किसानों का आकर्षण मधुमक्खीपालन की ओर लगातार बढ रहा है। तकरीबन अस्सी फ़ीसदी फसलीयपौधे क्रास परागण करते हैं क्योंकि उन्हें अपने ही प्रजाति के पौधों से परागण की जरूरत होती है जो उन्हें बाह्य एजेंट के माध्यम से मिलता है। मधुमक्खी एक महत्वपूर्ण बाह्य एजेंट होता है। ऐसे किसान जो पेशेवर ढंग से मधुमक्खी पालन करना चाहते हैं उन्हें एपीकल्चरर यानि मधुमक्खी पालन का प्रशिक्षण लेने पर विचार करना चाहिए। आमतौर पर मधुमक्खी के छत्ते में एक रानी मक्खी, कई हज़ार श्रमिक मक्खीऔर कुछ काटने वाले मधुमक्खी होते हैं।मधुमक्खियों का समुह श्रम विभाजन और विभिन्न कार्योंके लिए विशेषज्ञों का उत्तम उदाहरण होता है। मधुमक्खी श्रमिक मधुमक्खियोंकी मोम ग्रंथि से निकलने वाले मोम से अपना घोसला बनाते हैं जिन्हें शहद का छत्ता कहा जाता है। मधुमक्खियां अपने कोष्ठक का इस्तेमालअंडे सेने और भोजन इकठ्ठा करने के लिए करती हैं। छत्ते के उपरी भाग का इस्तेमाल वो शहद जमा करने के लिए करती हैं। छत्ते के अंदर परागण इकठ्ठा करने, श्रमिक मधुमक्खी और डंक मारने वाली मधुमक्खियों के अंडे सेने के कोष्ठक बने होने चाहिए। कुछ मधुमक्खियां खुले में अकेले छत्ते बनाती हैं जबकि कुछ अन्य मधुमक्खियां अंधेरी जगहों पर कई छत्ते बनाती हैं। किसान इन मधुमक्खियों का इस्तेमाल परागण के लिए या उनसे अन्य उत्पाद प्राप्त करने के लिए कर सकतेहैं। मधुमक्खी पालनका कौन सा तरीका अपनाया जाए ये इस बात पर निर्भर करता है कि किस तरह की मधुमक्खियां उपलब्धहैं और किसान के पासकिस तरह के कौशल एवंसंसाधन की उपलब्धताहै।रानी मक्खी के प्रकार :आमतौर पर मधुमक्खी के जमावट में एक रानी मक्खी, कुछ सौ हमलावर मधुमक्खी औरकई हज़ार मेहनतकश मधुमक्खी होते हैं।रानी मधुमक्खी जननक्षम और क्रियाशील मादा होती है जबकि श्रमिक मधुमक्खियांबांझ मादा और हमलावर मधुमक्खी नरमधुमक्खी होते हैं।
रानी मधुमक्खी की विभिन्न प्रजातियां:रानी मधुमक्खी मुख्यत: पांच प्रजातियों की होतीहैं जो इस प्रकार हैं –भारतीय मधुमक्खीचट्टानी मधुमक्खीछोटी मधुमक्खीयुरोपीय या इटली की मधुमक्खीडैमर मधुमक्खी या डंक रहित मधुमक्खीमधुमक्खी पालन आरंभकरने से पूर्व जानने योग्य बातें :मधुमक्खी पालन की योजना आरंभ करने से पूर्व पहले कदम के तौर पर आपको उस इलाके में जहां आप इसे शुरू करना चाहते हैं में मनुष्य और मधुमक्खीके बीच के संबंध को करीब से समझने की कोशिश करें। प्रायोगिक तौर पर खुद को इसमें संलग्न करें और मधुमक्खियों के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानने की कोशिश करें।इस बात की सलाह दी जाती है कि अगर आपकोइससे पहले मधुमक्खीपालन का कोई अनुभव नहीं है तो स्थानीय मधुमक्खी पालकों केसाथ काम करें। मधुमक्खी पालन प्रबंधन के बारे में उनके निर्देश को सुनें, समझें और सीखें। मधुमक्खी पालन के दौरान कोई मधुमक्खी आपको काट ले ये बहुत ही सामान्य सी बात है।एक बार मधुमक्खी और इंसान के बीच स्थानीय संबंध से परिचित हो जाने के बाद मधुमक्खी पालन की बेहतर प्रणाली को विकसित करने की कोशिश करें। उसके बाद मधुमक्खी पालन में काम आने वाले उपकरणों के उपयोग और इससे जुड़ी उत्पाद की खरीद को को लेकर एक योजना बनाएं।अगर आप मधुमक्खी पालन शुरू कर रहे हैं तो उस इलाके के सिर्फ एक या दो लोगों के साथ काम करें।मधुमक्खी पालन शुरूकरने के वक्त कम से कम दो छत्तों बनाए जाने की सलाह दी जाती है। इससे दोनों छत्तों के बीच तुलना करने का मौका मिलता है जिससे प्राप्त अनुभव आगे आपके बहुत काम आता है।मधुमक्खी पालन से जुड़ी प्रोजेक्ट शुरू करने के लिए व्यवहारिक लक्ष्य तय करें औरआरंभ में छोटे प्रोजेक्ट से शुरूआत की जाने चाहिए ताकि अनुभव हो औऱ फिर बड़ी योजना को बेहतर तरीके से अमली जामा पहनाया जा सके।प्रोजेक्ट में काम आने वाले उपकरण स्थानीय परिस्थितियों के मुताबिक ही होते हैं। इसलिए काम शुरू करने से पहले स्थानीय जरूरतों केमुताबिक सारी व्यवस्था और तैयारियों को परख लेना चाहिए।मधुमक्खी पालन में सफलता के लिए उपकरणों की बडी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। अपने इलाके में ऐसे व्यक्ति को चिन्हितकरना जो मधुमक्खी पालन से जुड़े उपकरण तैयार करता हो एक बड़ी सफलता मानी जाती है। स्थानीय स्तर पर उपकरण तैयार करवानाऔर उसके एक साथ लानेके लिए बड़ी धैर्य की आवश्यकता होती है।मधुमक्खी पालन से जुड़े उत्पादों के लिए ग्राहक खोजने के लिए पहले से ही स्थापित बाजार या किसी स्थानीय एजेंटका रूख किया जाना चाहिए। मधुमक्खी पालन स्थानीय कृषि विभाग से भी संपर्क कर सकते हैं। आमतौर पर स्थानीय बेकरी वाला या चाकलेट बनाने वाला शहद के लिए स्थानीय ग्राहकहोता है।मधुमक्खी पालन आरंभकरने से पूर्व की आवश्यकताएं इस प्रकार हैं :मधुमक्खी पालन की जानकारी & प्रशिक्षण। मधुमक्खी पालन के प्रशिक्षण के लिए आप स्थानीय कृषि विभाग या कृषि विश्वविद्यालय में संपर्क कर सकते हैं।स्थानीय मधुमक्खियों की जानकारीस्थानीय प्रजाति कीमधुमक्खियों की उपलब्धताप्रवासी मधुमक्खियों की जानकारीमधुमक्खी पालन के लिए जगह की जरूरत:चिन्हित स्थान में नमी न हो , सुखा हो। अत्यधिक आरएच मान मधुमक्खियों के उड़ने और शहद के पकने को प्रभावित करते हैंप्राकृतिक या कृत्रिम रूप से बने साफ पानी के स्त्रोत उपलब्ध कराए जाने चाहिएपेड़ आच्छादित इलाका हो ताकि हवा की निर्वाध उपलब्धता बनी रहेचिन्हित स्थान पर वो पेड़ और पौधे अवश्य हों जो मधुमक्खियों को पराग उपलब्ध कराएंमधुमक्खी पालन के उपकरण :मधुमक्खी पालन के लिए उपयोगी उपकरण इस प्रकार हैं। हालांकि ये जरूरी है कि स्थानीय मधुमक्खी पालकों सेमिल कर स्थानीय जरूरत के मुताबिक इस्तेमाल किए जा रहे उपकरणों का ही प्रयोग किया जाना चाहिए।मोटे & पतले ब्रश, एसएस छुरी, मुड़े औरएल आकार के मधुमक्खी का छत्ता, प्लास्टिक निर्मित भोजन बद्ध रानी मधुमक्खी का छत्ता, रानी मधुमक्खी का गेट, छत्ते का गेट, शहद निष्कर्षक, धुंआदेने वाला, रानी को अलग करने वाला उपकरण, पराग का जाल, प्रोपोलिस स्ट्रीप, रॉयल जैली प्रोडक्शन&एक्सट्राक्शन कीट, मधुमक्खी का डंक निकालने वाला उपकरणआदि आदि।मधुमक्खी पालन में परागण से लाभान्वितहोने वाले फसल :फल एवं मेवे : बादाम,सेब, खुबानी, आडू, स्ट्राबेरी, खट्टे फल, एवं लीचीसब्जियां : पत्ता गोभी, धनिया, खीरा, फूलगोभी, गाजर, नींबू, प्याज, कद्दू,खरबूज, शलजम, एवं हल्दीतिलहन : सुरजमुखी, सरसों, कुसुम, नाइजर,सफेद सरसों, तिल
मधुमक्खी पालन में होने वाले परागण की वजह से फसल उत्पादन में होने वाली वृद्धि :फसल प्रतिशत वृद्धिसरसों 44सुरजमुखी 32 – 45कपास 17 – 20लुसेरने घास 110प्याज 90सेब 45मधुमक्खी पालन में परागण के लिए मधुमक्खियों का प्रबंधन :छत्तों को खेत के बहुत ही पास रखने कीसलाह दी जाती है ताकि मधुमक्खियों की उर्जा बची रहेप्रवासी मधुमक्खियों के छत्ते को खेत के पासउस जगह रखा जाना चाहिए जहां कम से कमदस फीसदी फूल लगे होंप्रति हेक्टेयर पर तीन इटालियन मधुमक्खी और प्रति हेक्टेयर पांच भारतीय प्रजाति के मधुमक्खियों के छत्ते लगाने की सलाह दी जाती हैमधुमक्खियों में होने वाली बीमारी से बचने के लिए स्थानीय कृषि विभागकी सलाह ली जानी चाहिए।मधुमक्खी पालन आरंभकरने के लिए शुरूआती लागत तकरीबन सवा दो लाख रूपए आती हैअगस्त से सितंबर का माह मधुमक्खी पालन शुरू करने के लिए उपयुक्त समय होता हैफूलों के मौसम के बीत जाने के बाद मधुमक्खी से उत्पादनिकालने की प्रक्रिया शुरू करने का सही वक्त होता है।छत्ते से शहद निकालने के लिए उपयुक्त उपकरण की मदद से किया जाना चाहिए।
मधुमक्खी का जहर भी होता है बेहद फायदेमंद!
लखनऊ।सैंकडों बीमारियों में गुणकारी माना जाने वाला शहद ही नहीं मधुमक्खी के डंक का जहर भी स्वास्थ्य के लिए मुफीद है। मधुमक्खी के डंक से निकला जहर गठिया के लिए काफी लाभप्रद है। एक शोध से पता चला है कि मधुमक्खी के डंक के जहर के साथ एक रासायनिक पदार्थ मिलाकर लगाने से गठिया ठीक हो सकताहै। यही नहीं मधुमक्खी के रायल जेली की मदद से एड्स जैसी घातक बीमारियों के साथ ही सेक्सुअल मेडिसिन भीतैयार की जाती है।सेन्ट्रल बी रिर्सच इन्स्टीट्यूट पुणे के सहायक निदेशक आर के सिंह ने कहा कि मधुमक्खी पालन से किसानों के आर्थिक हालात में जहां खासा परिवर्तन होसकता है। सिंह ने बताया कि हाल ही में आयोजित एक सेमिनार से रिजल्ट निकलकर सामने आया कि सभी तरीकों के स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़े डॉक्टर मानते हैं कि मधुमक्खी का शहद ही नहीं इसकी प्रत्येक चीज मानव उपयोग में आ सकती है। उनका कहना था कि सेमिनार में आए विद्वानों ने माना कि रायल जेली एड्स में बेहद गुणकारी है।उन्होंने कहा कि पलाश के फूलों से तैयार शहद उच्च रक्तचाप की औषधि के रूप में रामबाण का काम करता है। उनका कहना था कि उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर और सहारनपुर में संस्थान की शाखाएं हैं। उनको भी उच्चीकृत किए जाने की योजना है।एक सवाल के जवाब में उन्होंने बताया कि देश में करीब85 हजार मीट्रिक टन शहद की खपत है। कोशिश है कि दिनचर्या में शहद के प्रयोग के साथ ही दवाओं में भी इसकी उपयोगिता बढ़ाई जाए। उन्होंने बताया कि जिन छत्तों से शहद निकल जाता है उसका प्रयोग मोम बनाने के साथ ही कई अन्य कार्यो में किया जाता है।सिंह ने बताया कि मधुमक्खी के छत्तों से भी निजात पाया जा सकता है। उनका कहना था कि मधुमक्खी के रहन सहन को समाजवाद से जोड़ा जा सकता है क्योंकि लाखों मधुमक्खियां एक साथ सिर्फ रहती हैं बल्कि स्थान भी एक ही साथ बदलती हैं। उन्होंने कहा कि एक छत्ते से एक वर्ष में सात आठ किलोग्राम शहद दो बार निकाला जा सकता है। शहद का स्वाद मधुमक्खियां जिस फूल से मकरंद लाती हैं उसी के अनुरूप होता है।डॉ सिंह ने बताया कि मकरंद की कमी होने पर मधुमक्खियों को कृत्रिम भोजन से भी शहद बनाने की सुविधा दी जाती है। इसके लिए उन्हें चीनी का घोल दिया जाता है जिसे लेकर वह छत्ते में शहद बनाती हैं हालांकिे इस विधा को प्राकृतिक शहद नहीं कहा जा सकता।उन्होंने बताया कि मधुमक्खी एक उड़ान में डेढ़ से दो किलोमीटर तक जाती है। कुनबे की मुखिया रानी मक्खी एक योजना के तहत शहद चाटने के बाद पूरे परिवारके साथ स्थान छोड़ती है। उनका कहना था कि एक छत्ते में कम से कम साठ हजार मधुमक्खियां होती हैं और गर्मी में प्रतिदिन एक हजार पांच सौ अण्डे देती हैं। साल डेढ साल में इनकी संख्या 15 लाख हो जाती है।सिंह ने माना कि साठ के दशक में स्थापित इस संस्थान में संसाधनों की कमी है। इसके बावजूद किसानों को मधुमक्खी पालन से होने वाले लाभ की जानकारी देने की कोशिश की जा रही है। संस्थान मधुमक्खी से जुड़े कई शोध कर चुका है। इन शोधों से पता चला है कि मधुमक्खी मानव जीवन के लिए बहुत उपयोगी है। शहद के बारे में हर काई जानता है कि यह कितना लाभदायक है लेकिन इसकी अन्य चीजों से मानव जीवन को होने वाला लाभ यदि सभी को पता चले तो बेहतर होगा।उन्होंने बताया कि मधुमक्खी पालन से देश में करीब साठ लाख किसान लाभान्वित हो रहे हैं। इससे होने वाले लाभ के बारे में यदि प्रचार प्रसार किया जाए तोमधुमक्खी पालन का दायरा बढ़ सकता है। मधुमक्खी पालनमें न तो अधिक जमीन की जरूरत है और न ही पैसे की। कम पैसे में अधिक कमाई की जा सकती है। plz Like shared my page... HealthDiscoverysciIndia.blogspot.com
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