Saturday 30 December 2017

दुनिया के 10 सबसे खतरनाक जानवर

दुनिया के 10 सबसे खतरनाक जानवर***



विश्व में कई ऐसे खतरनाक जीव-जंतु हैं, जो पलक झपकते ही अपने जहर से मौत की नींद सुला सकता है, तो कुछ जीवों के कारण पहले बीमारी और उसके बाद मौत से सामना करना पड़ता है। और कुछ तो तुरंत चिर-फाड़ कर खा जाते हैं। लोग सोचते वही खतरनाक जानवर हैं जो जंगल में रहते हैं पर ऐसा नहीं हैं, आइये मैं आपको कुछ ऐसे खतरनाक जीव-जन्तुओ से मिलता हूँ जो दिखने में तो सॉफ्ट है पर हैं बहुत ही घातक..विश्व के 10 सबसे खतरनाक और घातक जानवर – 10 Most Dangerous Animals Of World In Hindi10). हाथी – Elephant

हाथी ज़मीन पर रहने वाला एक विशाल आकार का प्राणी है। यह विश्व के खतरनाक जानवरों में सुमार हैं। हालाँकि हाथी शाकाहारी होते हैं। फिर भी जब ये आक्रामक हो जाए तो तहस-नहस कर देते हैं। विश्व भर में लगभग 10,000 लोग हाथियों से भिड़त के कारण प्रत्येक वर्ष अपनी जान गवां देते हैं।

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दरियाई घोड़े – Hippopotamuses



दरियाई घोड़े शाकाहारी होते हैं. लेकिन इसका कतई यह मतलब नहीं कि वे खतरनाक नहीं होते। वे काफी आक्रामक होते हैं और अपने इलाके में किसी को प्रवेश करता देख उसको मारने सेपीछे नहीं रहते।

*** मगरमच्छ – Crocodile***


मगरमच्छ जितने डरावने दिखते हैं, उससे कहीं ज्यादा खतरनाक भी होते हैं। वे मांसाहारी होते हैं और कभी-कभी तोखुद से बड़े जीवों का भी शिकार करते हैं जैसे कि छोटे दरियाई घोड़े और जंगली भैंस। खारे पानी के मगरमच्छ तो शार्क को भी अपना शिकार बना लेते हैं।


*************शेर – Lion**********


ऐसे तो सभी जानते हैं की शेर जंगल का राजा होता है। और इसका राजा होने का भी एक कारण है की ये बहुत ही घातक होते हैं। शेर की दो प्रजातियां पाई जाती हैं एक एशियाई शेर औरदूसरे अफ्रीकन शेर। अफ्रीकन शेर एशियाई शेरो से अधिक बलवान और लम्बे होते हैं। विश्व भर में प्रत्येक वर्ष 12,000 से 15,000 लोग शेरो का शिकार होते हैं और ये मामला सबसे ज्यादा अफ्रीकन देशो से हैं इसलिए अफ्रीकन शेरो को बहुत ही खतरनाक माना जाता hai

************जेलीफ़िश – Jellyfish**********


 बॉक्स जेलीफ़िश समुद्र की गहराई में पाए जाने वाला एक घातक जीव-जंतु हैं। जेलीफिश नाम का मतलब ये नहीं की यह कोई मछली की प्रजाति हैं। इसका शारीरिक बनावट कुछ बॉक्स तरह होता हैं इसलिए इसे बॉक्स जेलीफिश कहते हैं। इसमें कई प्रजातियां होते हैं। इसका एक डंक इंसान की मृत्यु के लिए काफी हैं। इसकी सबसे बड़ी प्रजाति नोमुरा जेलीफ़िश नावों को भी पलट देता हैं। हालाँकि इसका शिकार सिर्फ समुन्दर में जाने वाले लोग होते हैं।

 ******शार्क – Shark*******


शार्क एक पृष्ठवंशी समुद्री जल में रहने वाला प्राणी है।इसका शरीर बहुत लम्बा होता है जो शल्कों से ढका रहता है। यह एक माँसाहारी प्राणी है। इसे परफेक्ट किलिंग मशीन भी कहते हैं। इसका हमला बहुत तेज होता हैं। इसका मुँह सामने न होकर नीचे की ओर होता है जिसमें तेज दाँत होते हैं। पलक झपकते शिकार को चबा जाते है।



** इनलैंड ताइपन सांप – Inland Taipan Snake**



यह सांप जमीन पर पाये जाने वाले सांपो में सबसे ज़हरीला है। इसकी एक बाईट (one bite) में  100 मिलीग्राम तक ज़हरहोता है जो की बहुत ज्यादा नहीं है पर यह इतना घातक होता है कि 100 इंसानो को मौत कि नींद सुला सकता है। इनका ज़हर रैटल स्नेक (rattle snake) की तुलना में 10 गुना औरकोबरा (cobra snake) की तुलना में 50 गुना ज्यादा घातकहोता है।


******कुत्ता – Dog********



कुत्ता भी एक घातक जानवर हैं हर साल मारे गए लोगों की संख्या: लगभग 25,000. रेबीज एक वायरल संक्रमण है जो कई जानवरों से फैल सकता है. मनुष्यों में यह ज्यादातर कुत्तों के काटने से फैलता है। रेबीज के लक्षण महीनों तक दिखाई नहीं देते लेकिन जब वे दिखाई पड़ते हैं, तो बीमारी लगभग जानलेवा हो चुकी होती है।

 *******मच्छर – Mosquito******


हर साल मारे गए लोगों की संख्या: लगभग 7,25,000. मच्छरों द्वारा फैलने वाला मलेरिया अकेले सलाना छह लाख लोगों की जान लेता है। डेंगू बुखार, येलो फीवर और इंसेफेलाइटिस जैसी खतरनाक बीमारियां भी मच्छरों से फैलती हैं। इसलिए इसे दुनिया के घातक जीवो की सूचि में रखा जाता हैं।

********इंसान – The Human********


इंसान जो की बुराई में जानवर से भी खतरनाक हैं वो भी इस खतरनाक सूची में शामिल हैं। आखिर इंसान एक-दूसरे की जान लेने के कितने ही अविश्वसनीय तरीके ढूंढ लेता है. और दुनिया में कोई ऐसा देश नहीं जहां इंसानो द्वारा इंसान को न मारा जाता हो।

About Bear in Hindi – भालुओं के बारे आप नहीं जानते होंगे यह 23 बात


1.भालू (Bear) झुंड की वजाय अकेला रहना पसंद करते हैं।1.भालुओं (Bears) के सूंघने की शक्ति बहुत तेज़ होती है यह कई किलोमीटर तक अपने शिकार को सूंघ सकते हैं।1.भालू बड़ी आसानी से पेड़ों पर चढ़ सकते हैं इसके इलावा इनकी पानी में तैरने की अच्छी क्षमता होती है।1.भालू ज्यादातर जमीन के बड़े -बड़े गड्डों और गुफाओं में रहना पसंद करते हैं।1.भालू का पसंदीदा भोजन मछली होता है ।1.भालुओं के अगले पैर के पंजे पिछले पंजों से बड़े होते हैं।1.भालू के दांत बहुत नुकीले होते हैं यह आसानी से अपने शिकार को चीर -फाड़ सकते हैं।1.भूरा भालू जो ज्यादातर एशिया मेंपाया जाता है दुनिया का सबसे साधारण भालू है।1.मौजूदा समय में भालुयों की 8 प्रजातियां पायी जाती हैं।1.ध्रुवीय भालू बर्फ़ पर अपने शिकारको 20 मील तक सूंघ सकते हैं।यह भी पढ़ें – बंदरों के बारे में 10 हैरानीजनक बातें1.ध्रुवीय भालू अंटार्कटिका पर नहीं पाए जाते हैं यह सिर्फ़ आर्कटिक पर ही पाए जाते हैं।1.भूरा भालू एक दिन में बीस हज़ार कैलोरीज तक खा जाते हैं।1.भूरा भालू फ़िनलैंड का राष्ट्रीय जानवर है।1.जंगली भालू की उम्र 30 वर्ष तक होती है।1.भालू के दिल की दड़कन की गति 40 प्रति मिनट होती है। परन्तु शीतकालीन अवस्था में सो रहे भालूके दिल की दड़कन की गति 8 प्रति मिनट ही रह जाती है।1.भालू पानी में 60 मील प्रति घंटे की रफ़्तार से तैर सकते हैं।1.ध्रुवीय भालू पानी में 7 फीट तक छलांग लगा सकता है।1.अमेरिका में 98 प्रतिशत भालू ग्रिज़ली भालू अलास्का में रहते हैं।1.ध्रुवीय भालू 100 मील प्रति घंटा की रफ़्तार से पानी में बिनारुके तैर सकते हैं।1.केवल ध्रुवीय भालू ही मांसाहारी होते हैं जबकि बाकी के सभी भालू सर्वाहारी होते हैं मतलब पौधे औरमांस दोनों खाते हैं ।यह भी पढ़ें – जलियांवाला बाग़ कांड (Kand) की 17 ख़ास बातें पढ़ें1.ध्रुवीय भालू भालुयों की प्रजातियों में से सबसे बड़ी प्रजाति है ।1.ध्रुवीय भालू का वजन 450 किलोग्राम तक होता है जबकि मादा भालू का वजन 150 -250 किलोग्राम तक होता है ।1.सूर्य भालू सबसे छोटे भालू होते हैं इन्हें हनी भालू के नाम से भी जाना जाता है । एक औसतन सूर्य भालू का आकार एक बड़े कुत्ते के बराबर होता है ।
भारत के हिमालय में काले और भूरे भालू मिलते हैं। इनमें ब्लैक भालू बिना किसी कारण के लोगों पर हमला करने के लिए जाना जाता है। यह सुबह में लोगों पर सबसे ज्यादा हमला करता है। हालांकि, इसकी वजह से प्रत्येक साल कितनी मौत होती है, इसका आंकड़ा मौजूद नहीं है।


*******चीता******

यह लेख एक पशु के बारे में है। अन्य प्रयोग हेतु,चीता (बहुविकल्पी)देखें।बिल्ली के कुल (विडाल) में आने वालाचीता(एसीनोनिक्स जुबेटस) अपनी अदभुत फूर्ती और रफ्तार के लिए पहचाना जाताहै। यहएसीनोनिक्सप्रजाति के अंतर्गत रहने वाला एकमात्र जीवित सदस्य है, जो कि अपने पंजों की बनावट के रूपांतरण के कारण पहचाने जाते हैं। इसी कारण, यह इकलौता विडाल वंशी है जिसके पंजे बंद नहीं होते हैं और जिसकी वजहसे इसकी पकड़ कमज़ोर रहती है (अतः वृक्षों में नहीं चढ़ सकता है हालांकि अपनी फुर्ती के कारण नीची टहनियों में चला जाता है)। ज़मीन पर रहने वाला ये सबसे तेज़ जानवर है जो एक छोटी सी छलांग में १२० कि॰मी॰ प्रति घंटे[3][4]तक की गति प्राप्त कर लेता है और ४६० मी. तक की दूरी तय कर सकता है और मात्र तीन सेकेंड के अंदर ये अपनी रफ्तार में १०३ कि॰मी॰ प्रति घंटे का इज़ाफ़ा कर लेता है, जो अधिकांशसुपरकारकी रफ्तार से भी तेज़ है।[5]हालिया अध्ययन से येसाबित हो चुका है कि धरती पर रहने वाला चीता सबसे तेज़ जानवर है।[6]
चीता में असामान्य रूप सेआनुवांशिकविभिन्नता कम होती है जिसके कारण वीर्य में बहुत कमशुक्राणुपाये जाते हैं जो कम गतिशील होते हैं क्योंकि आनुवांशिक कमज़ोरी के कारण वह विकृत कशाभिका (पूँछ) से ग्रस्त होते हैं।[8]इस तथ्य को इस तरह समझा जा सकता है कि जब दो असंबद्ध चीतों केबीच त्वचा प्रतिरोपण किया जाता है तो आदाता को प्रदाता की त्वचा की कोई अस्वीकृति नहीं होती है। यह सोचा जाता हैकि इसका कारण यह है कि पिछलेहिम युगके दौरान आनुवांशिक मार्गावरोध के कारणआंतरिक प्रजननलंबी अवधि तक चलता रहा। चीता शायदएशियाप्रवास से पहलेअफ़्रीकामेंमायोसीन(२.६ करोड़-७५ लाख वर्ष पहले) काल में विकसित हुआ है। हाल ही में वॉरेन जॉनसन और स्टीफन औब्रेन की अगुवाई में एक दल ने जीनोमिक डाइवरसिटी की प्रयोगशाला (फ्रेडरिक,मेरीलैंड,संयुक्त राज्य) केनेशनल कैंसर इंस्टिट्यूटमें एक नया अनुसंधान किया है और एशिया में रहने वाले 1.1 करोड़ वर्ष के रूप में सभी मौजूदा प्रजातियों के पिछले आम पूर्वजों को रखा है जो संशोधन और चीता विकास के बारे में मौजूदा विचारों के शोधन के लिए नेतृत्व कर सकते हैं। लुप्त प्रजातियों में अब शामिल हैं:एसिनोनिक्स परडिनेनसिस(प्लियोसिन) काल जो आधुनिक चीता से भी काफी बड़ा होता है औरयूरोप, भारत औरचीनमें पाया जाता है;एसिनोनिक्स इंटरमिडियस,(प्लिस्टोसेनअवधिके मध्य), में एक ही दूरी पर मिला था। विलुप्त जीनसमिरासिनोनिक्सबिलकुल चीता जैसा ही दिखने वाला प्राणी था, लेकिन हाल ही मेंDNAविश्लेषण ने प्रमाणित किया है किमिरासिनोनिक्स इनेक्सपेकटेटस,मिरासिनोनिक्स स्टुडेरीऔरमिरासिनोनिक्स ट्रुमनी, (प्लिस्टोसेन काल के अंत के प्रारंभ) उत्तर अमेरिका में पाए गए थे और जिसे"उत्तर अमेरिकी चीता" कहा जाता था लेकिन वे वास्तविक चीतानहीं थे, बल्कि वे कौगर के निकट जाती के थे।प्रजातियांहालांकि कई स्रोतों ने चीता के छह या उससे अधिक प्रजातियों को सूचीबद्ध किया है, लेकिन अधिकांश प्रजातियों के वर्गीकरण की स्थिति अनसुलझे हैं।एसिनोनिक्स रेक्स-किंग चीता (नीचे देखें)- से अलग की खोजके बाद इसे परित्यक्त कर दिया गया था क्योंकि यह केवल अप्रभावी जीन था। अप्रभावी जीन के कारणएसिनोनिक्स जुबेटस गुटाटुसप्रजाति के ऊनी चीता का भी शायद बदलाव होता रहा है। सबसे अधिक मान्यता प्राप्त कुछ प्रजातियों में शामिल हैं:[9]*.एशियाई चीता(एसिनोनिक्स जुबेटस वेनाटिकस) : एशिया (अफगानिस्तान,भारत,ईरान,इराक,इजरायल,जॉर्डन,ओमान,पाकिस्तान,सऊदी अरब,सीरिया,रूस)*.उत्तर पश्चिमी अफ्रीकी चीता(एसिनोनिक्स जुबेटस हेक) : उत्तर पश्चिमी अफ्रीका (अल्जीरिया,जिबूती,मिस्र,माली,मॉरिटानिया,मोरक्को,नाइजर,ट्यूनीशियाऔरपश्चिमी सहारा) और पश्चिमी अफ्रीका (बेनिन,बुर्किना,फासो,घाना,माली,मॉरिटानिया,नाइजरऔरसेनेगल)*.एसिनोनिक्स जुबेटस राइनेल : पूर्वी अफ्रीका (केन्या,सोमालिया,तंजानियाऔरयुगांडा)*.एसिनोनिक्स जुबेटस जुबेटस : दक्षिणी अफ्रीका (अंगोला,बोत्सवाना,रिपब्लिक ऑफ द कांगो,मोजाम्बिक,मलावी,दक्षिण अफ्रीका,तंजानिया,जाम्बिया,जिम्बाब्वेऔरनामीबिया)*.एसिनोनिक्स जुबेटस सोमेरिंगी : केंद्रीय अफ्रीका (कैमरून,चाड,सेन्ट्रल अफ्रीकी रिपब्लिक,इथोपिया,नाइजीरिया,नाइजरऔरसूडान)*.एसिनोनिक्स जुबेटस वेलोक्सविवरणचीता कावक्षस्थलसुदृढ़ और उसकीकमरपतली होती है। चीता की लघु चर्म पर काले रंग के मोटे-मोटे गोल धब्बे होते हैं जिसका आकार 2 से 3 से॰मी॰ (0.79 से 1.18 इंच) के उसके पूरे शरीर पर होते हैं और शिकार करते समय वह इससे आसानी सेछलावरणकरता है। इसके सफेद तल पर कोई दाग नहीं होते, लेकिन पूंछ में धब्बे होते हैं और पूंछ के अंत में चार से छः काले गोले होते हैं। आम तौर पर इसका पूंछ एक घना सफेद गुच्छा के साथ समाप्त होता है। बड़ी-बड़ी आंखो के साथ चीता का एक छोटा सासिरहोता है। इसके काले रंग के "आँसू चिह्न" इसके आंख के कोने वाले भाग से नाक के नीचे उसके मुंह तक होती है जिससे वह अपने आंख से सूर्य की रौशनी को दूर रखता है और शिकार करने में इससे उसे काफी सहायता मिलती है और साथ ही इसके कारण वह काफी दूर तक देख सकता है।हालांकि यह काफी तेज गति से दौड़ सकता है लेकिन इसका शरीरलंबी दूरी की दौड़ को बर्दाश्त नहीं कर सकता. अर्थात यह एक तेज धावक है।एक वयस्क चीता का नाप 36 से 65 कि॰ग्राम (79 से 143 पौंड) से होता है। इसके पूरे शरीर की लंबाई 115 से 135 से॰मी॰ (45 से 53 इंच) से होता है जबकि पूंछ की लंबाई 84से॰मी॰ (2.76 फीट) से माप सकते हैं। चीता की कंधे तक की ऊंचाई 67 से 94 से॰मी॰ (26 से 37 इंच) होती है। नर चीते मादा चीते से आकार में थोड़े बड़े होते हैं और इनका सिर भी थोड़ा सा बड़ा होता है, लेकिन चीता के आकार में कुछ ज्यादा अंतर नहीं होता और यदि उन्हें अलग-अलग देखा जाए तोदोनों में अंतर करना मुश्किल होगा। समान आकार केतेन्दुएंकी तुलना में आम तौर पर चीता का शरीर छोटा होता है लेकिन इसकी पूंछ लम्बी होती है और चीता उनसे ऊंचाई मेंभी ज्यादा होता है (औसतन 90 से॰मी॰ (3.0 फीट) लंबाई होती है) और इसलिए यह अधिक सुव्यवस्थित लगता है।कुछ चीतों में दुर्लभ चर्म पैटर्नपरिवर्तनहोते हैं: बड़े, धब्बेदार, मिले हुए दाग वाले चीतों को "किंग चीता" के रूप में जाना जाता है। एक बार के लिए तो इसे एक अलग प्रजाति ही मान लिया गया था, लेकिन यह महज अफ्रीकी चीता का एक परिवर्तन है। "किंग चीता" को केवल कुछ ही समय के लिएजंगल में देखा जाता है, लेकिन इसका पालन-पोषण कैद में किया जाता है।एक चीता.चीता के पंजे में अर्ध सिकुड़न योग्यनाखुनहोते हैं[8], (यह प्रवृति केवल तीन अन्य बिल्ली प्रजातियों में ही पाया जाता है:मत्स्य ग्रहण बिल्ली,चिपटे-सिर वाली बिल्लीऔरइरियोमोट बिल्ली) जिससे उसे उच्च गति में अतिरिक्त पकड़ मिलती है। चीता के पंजे काअस्थिबंधसंरचना अन्य बिल्लियों के ही समान होते हैं और केवल त्वचा के आवरण का अभाव होता है और अन्य किस्मों में चर्म रहते हैं और इसलिएडिवक्लॉके अपवाद के साथ पंजे हमेशा दिखाई देते हैं। डिवक्लॉ बहुत छोटे होते हैं और अन्य बिल्लियों की तुलना में सीधे होते हैं।चीता की रचना कुछ इस प्रकार से हुई है कि यह काफी तेज दौड़ने में सक्षम होता है, इसके तेज दौड़ने के कारणों मेंइसका वृहद नासाद्वार है जो ज्यादा से ज्यादा ऑक्सीजन लेने की अनुमति प्रदान करती है और इसमें एक विस्तृत दिल और फेफड़े होते हैं जो ऑक्सीजन को कुशलतापूर्वक परिचालित करने के लिए एक साथ कार्य करते हैं। जब यह शिकारका तेजी के साथ पीछा करता है तो इसका श्वास दर प्रति मिनट 60 से बढ़ कर 150 हो जाता है।[8]अर्द्ध सिकुड़न योग्य नाखुन होने के कारण ज़मीन पर पकड़ के साथ यह दौड़ सकता है,चीता अपनी पूंछ का उपयोग एक दिशा नियंत्रक के रूप में करता है, अर्थात स्टीयरिंग[कृपया उद्धरण जोड़ें]के अर्थ में करता है जो इसे तेजी से मुड़ने की अनुमति देता है और यह शिकार पर पीछे से हमला करने के लिए आवश्यक होता है क्योंकि शिकार अक्सर बचने के लिए वैसे घुमाव का प्रयोग करते हैं।बोत्सवानाके ओकावंगो डेल्टा में सूर्यास्त के समय चीताबड़ी बिल्लीके विपरीत चीताघुरघुराहटके रूप में सांस लेते हैं, परगर्जननहीं कर सकते हैं। इसके विपरीत, केवल सांस लेने के समय के अलावा बड़ी बिल्लियां गर्जन कर सकती हैं लेकिन घुरघुराहट नहीं कर सकती. हालांकि, अभी भी कुछ लोगों द्वारा चीता को बड़ी बिल्लियों की सबसे छोटी प्रजाति के रूप में माना जाता है। और अक्सर गलती से चीता को तेंदुआ मान लिया जाता है जबकि चीता की विशेषताएं उससे भिन्न है, उदाहरण स्वरूप चीता में लम्बी आंसू-चिह्न रेखा होती है जो उसके आंख के कोने वाले हिस्से से उसके मुंह तक लम्बी होती है। चीता का शारीरिक ढांचा भी तेंदुआ से काफी अलग होता है, खासकर इसकी पतली और लंबी पूंछ और तेंदुए के विपरीत इसके धब्बे गुलाब फूल की नक्काशी की तरह व्यवस्थित नहीं होते.चीता एक संवेदनशील प्रजाति है। सभी बड़ी बिल्ली प्रजातियों में यह एक ऐसी प्रजाति है जो नए वातावरण को जल्दी सेस्वीकारनहीं करती है। इसने हमेशा ही साबित किया है कि इसे कैद में रखना मुश्किल है, हालांकि हाल ही में कुछ चिड़ियाघर इसके पालन-पोषण में सफल हुए हैं। इसके खाल के लिए व्यापक रूप से इसका शिकार करने के कारण चीता अब प्राकृतिक वास और शिकार करने दोनों में असक्षम होते जा रहे हैं।पूर्व में बिल्लियों के बीच चीता को विशेष रूप से आदिम माना जाता था और लगभग 18 मिलियन वर्ष पहले ये प्रकट हुए थे। हालांकि नए अनुसंधान से यह पता चलता है कि मौजूदा बिल्ली की 40 प्रजातियों का उदय इतना पुराना नहीं है-लगभग 11 मिलियन साल पहले ये प्रकट हुए थे। वही अनुसंधान इंगित करता है कि आकृति विज्ञान के आधार पर चीता व्युत्पन्न है, जो पांच करोड़ साल पहले के आसपास विशेष रूप से प्राचीन वंश के रहने वाले चीता अपने करीबी रिश्तेदारों से अलग होते हैं(पुमा कोनकोलोर,कौगर,औरपुमा यागुआरोंडी,जेगुएरुंडी[10][11]पुराकालीन दस्तावेजोंमें जब से ये दिखाई देती हैं तब से काफी मात्रा में इन प्रजातियों में परिवर्तन नहीं हुआ है।आकार और भिन्नरूपकिंग चीताअपनी अनूठी कोट पैटर्न दिखाते हुए एक किंग चीता.एक विशिष्ट खाल पद्धति विशेषता के चलते किंग चीता दूसरोंचीतों से बिलकुल अलग और दुर्लभ होते हैं। पहली बार 1926 में जिम्बाब्वे में इसकी खोज की गई थी। 1927 में प्रकृतिवादीरेजिनाल्ड इन्नेस पॉकॉकने इसके एक अलग प्रजाति होने की घोषणा की थी, लेकिन सबूत की कमी के कारण 1939 में इस फैसले को खण्डित कर दिया गया था, लेकिन 1928 में, एकवाल्टर रोथ्सचिल्डद्वारा खरीदी त्वचा मेंउन्होंने किंग चीता और धब्बेदार चीता में अंतर पाया और अबेल चैपमैन ने धब्बेदार चीता के रंग रूप पर विचार किया। 1926 और 1974 के बीच ऐसे ही करीब बाईस खाल पाए गए। 1927 के बाद से जंगल में पांच गुना अधिक किंग चीता के होने को सूचित किया गया था। हालांकि अफ्रीका से अजीब चिह्नित खाल बरामद हुए थे, हालांकि 1974 तक दक्षिण अफ्रीका केक्रूगर नेशनल पार्कमें जिंदा किंग चीता दिखाई नहीं दिए थे।प्रच्छन्न प्राणीविज्ञानीपौल और लेना बोटरिएल ने 1975 में एक अभियान के दौरान एक फोटो लिया था। साथ ही वे कुछ और नमूने प्राप्त करने में भी सफल रहे थे। यह एक धब्बेदार चीता से काफी बड़ा लग रहा था और उसके खाल की बनावट बिलकुल अलग थी। सात वर्षों में पहली बार 1986 में एक और जंगल निरीक्षण किया गया था। 1987 तक अड़तीस नमूने दर्ज किए गए थे जिसमें से कई खाल नमूने थे।ठोस रूप से इस प्रजाति के होने की स्थिति का पता 1981 में चला जब दक्षिण अफ्रीका केडी विल्ड्ट चीता एण्ड वाइल्ड लाइफ सेंटरमें किंग चीता का जन्म हुआ था। मई 1981 में दो धब्बेदार मादा चीतों ने वहां चीते को जन्म दिया है और जिसमें एक किंग चीता था। दोनों मादा चीता को नर चीतों के साथट्रांसवालक्षेत्र के जंगल से पकड़ा गया था (जहां किंग चीतों के होने की संभावना जताई गई थी). इसकेअलावा उसके बाद भी सेंटर पर किंग चीतों का जन्म हुआ था। जिम्बाब्वे, बोत्सवाना और दक्षिण अफ्रीका के ट्रांसवाल प्रांत के उत्तरी भाग में उनके मौजूद होने का ज्ञात किया गया। एकप्रतिसारी जीनका वंशागत जरूर इस पद्धति से दोनों माता-पिता से हुआ होगा जो उनके दुर्लभ होने का एक कारण है।अन्य भिन्न रंगअन्य दुर्लभ रंग के प्रजातियों में चित्ती आकार,मेलेनिनताअवर्णताऔर ग्रे रंगाई के चीते शामिल हैं। ज्यादातर भारतीय चीतों में इसे सूचित किया गया है, विशेष रूप से बंदी बने चीते में यह पाया जाता है जिसे शिकार के लिए रखा जाता है।1608 में भारत केमुगलसम्राटजहांगीरके पास सफेद चीता होने का प्रमाण दर्ज किया गया है।तुज़्के-ए-जहांगीरके वृतांत में, सम्राट का कहना है कि उनके राज्य के तीसरे वर्ष में:राजा बीर सिंह देव एक सफेद चीता मुझे दिखाने के लिए लाएथे।हालांकि प्राणियों के अन्य प्रकारों में पक्षियों और दूसरे जानवरों के सफेद किस्मों के थे।...लेकिन मैंने सफेद चीता कभी नहीं देखा था।इसके धब्बे, जो (आमतौर पर) काले होते हैं, नीले रंग के थे और उसके शरीर के सफेदी रंग पर नीले रंग का छाया था।यह संकेत देता है किचिनचिला उत्परिवर्तनजो बाल शाफ्ट पर रंजक की मात्रा को सीमित करता है। हालांकि धब्बे काले रंग के हो जाते है और कम घने रंजकता एक धुंधले और भूरा प्रभाव देता था। साथ ही आगरा पर जहांगीर के सफेद चीता, गुग्गिसबर्ग के अनुसार प्रारंभिक अवर्णता की रिपोर्ट बिउफोर्ट पश्चिम से आया था।1925 में एच एफ स्टोनहेम ने "नेचर इन इस्ट अफ्रीका" को एक पत्र में केनिया केट्रांस-ज़ोइया जिलेमें मेलेनिनताचीता (भूत चिह्नों के साथ काले रंग की) के होने की बात बताई. वेसे फिजराल्ड़ ने जाम्बिया में धब्बेदार चीतों कीकम्पनी में एक मेलेनिनता चीते को देखा गया था। लाल (एरीथ्रिस्टिक) चीतों में सुनहरे पृष्ठभूमि पर गहरे पीले रंग के धब्बे होते हैं। क्रीम (इसाबेल्लीन) चीतों में पीली पृष्ठभूमि पर लाल पीले धब्बे होते है। कुछ रेगिस्तान क्षेत्र के चीते असामान्य रूप से पीले होते हैं; संभवतः वे आसानी से छूप जाते हैं और इसलिए वे एक बेहतर शिकारी होते हैं और उनमें अधिक नस्ल की संभावना होती है और वे अपने इस पीले रंग को बरकरार रखते हैं। नीले (माल्टीज़ या भूरे) चीतों को विभिन्न सफेद-भूरे-नीले (चिनचिला) धब्बे के साथ सफेद रंग या गहरे भूरे धब्बे के साथ पीले भूरे चीतों (माल्टीज़ उत्परिवर्तन) के रूप में वर्णित किया गया है। 1921 में तंजानिया में (पॉकॉक) में बिलकुल कम धब्बों के साथ एक चीता को पाया गया था, इसके गर्दन और पृष्ठभूमि के कुछ स्थानों में बहुत कम धब्बे थे और ये धब्बे काफी छोटे थे।क्रम विस्तार एवं प्राकृतिक वाससेरेनगेटी नेशनल पार्क, तंजानिया में एक चीता.भौगोलिक द्रष्टि से अफ्रीका और दक्षिण पश्चिम एशिया में चीतों की ऐसी आबादी मौजूद है जो अलग-थलग रहती है। इनकी एक छोटी आबादी (लगभग पचास के आसपास)ईरानकेखुरासान प्रदेशमें भी रहती है, चीतों के संरक्षण का कार्यभार देख रहा समूह इन्हे बचाने के प्रयास में पूरी तत्परता से जुटा हुआ है।[12]सम्भव है कि इनकी कुछ संख्याभारतमें भी मौजूद हो, लेकिन इस बारे में विश्वास के साथ कुछ नहीं कहा जा सकता. अपुष्ट रिपोर्टों के अनुसारपाकिस्तानकेब्लूचिस्तानराज्य में भी कुछएशियाई मूल के चीतेमौजूद हैं, हाल ही में इस क्षेत्र से एक मृत चीता पाया गया था।[13]चीतो की नस्ल उन क्षेत्रों में अधिक पनपती है जहां मैदानी इलाक़ा काफी बड़ा होता है और इसमें शिकार की संख्या भी अधिक होती है। चीता खुलेमैदानोंऔरअर्धमरूभूमि,घास का बड़ा मैदानऔर मोटी झाड़ियों के बीच में रहना ज्यादा पसंद करता है, हालांकि अलग-अलग क्षेत्रों में इनके रहने का स्थान अलग-अलग होता है। मिसाल के तौर पर नामीबिया में येघासभूमि,सवानाके जंगलों,घास के बड़े मैदानोंऔर पहाड़ी भूभाग में रहते हैं।जिस तरह आज छोटे जानवरों के शिकार मेंशिकारी कुत्तोंका उपयोग किया जाता है, उसी तरहअभिजातवर्ग के उस समयहिरणया चिकारा के शिकार में चीते का उपयोग किया करते थे।प्रजनन एवं व्यवहारचीता शावक.मादा चीता बीस से चौबीस महीने के अंदर व्यस्क हो जाती है जबकि नर चीते में एक वर्ष की आयु में ही परिपक्वता आ जाती हैं (हालांकि नर चीता तीन वर्ष की आयु से पहले संभोग नहींकरता) और संभोग पूरा साल भर होता है।सेरेनगटीमें पाए जाने वाले चीतों पर तैयार रिपोर्ट से पता चलता है कि मादाचीता स्वच्छंद प्रवृत्ति की होती हैं, यही वजह है कि उसकेबच्चों के बाप भी अलग-अलग होते हैं।[14]मादा चीतागर्भधारण करने के बाद एक से लेकर नौ बच्चों कोजन्मदे सकती है लेकिन औसतन ये तीन से पांच बच्चों को जन्म देती है। मादा चीता का गर्भकाल 150 से 300 ग्राम (5.3 से 10.6 औंस) दिनों का होता है बिल्ली परिवारों के दूसरे जानवरों के विपरीत चीता जन्म से ही अपने शरीर पर विशिष्ट लक्षण लेकर पैदा होता है। पैदाईश के समय से ही चीते की गर्दन पर रोएंदार और मुलायम बाल होते हैं, पीठ के बीच तक फैले इस मुलायम रोएं कोमेंटलभी कहते हैं। ये मुलायम और रोएंदार बाल इसेअयालहोने का आभास देते हैं, जैसे-जैसे चीते की उम्र बढ़ती है, इसके बाल झड़ने लगते हैं। ऐसा अनुमान किया जाता है कि अयाल (रेटल) के कारण चीते के बच्चेहनी बेजरके सम्भावित आक्रमणकारी के भय से मुक्त हो जाते हैं।[15]चीते का बच्चा अपने जन्म के तेरहवें से लेकर बीसवें महीने के अंदर अपनी मां का साथ छोड़ देता है। एक आज़ाद चीते की आयु बारह जबकि पिंजड़े में कैद चीते की अधिकतम उम्र बीस वर्ष तक हो सकती है।नर चीते की तुलना में मादा चीते अकेले रहती हैं औऱ प्राय एक दूसरे से कतराती हैं, हांलाकि मां और पुत्री के कुछ जोड़े थोड़े समय के लिए एक साथ ज़रुर रहते हैं। चीतों कासामाजिक ढ़ांचाअदभुत और अनोखा होता है। बच्चों की परवरिश करते समय को छोड़ दिया जाए तो मादा चीते अकेले रहती है। चीते के बच्चे के शुरुआती अट्ठारह महीने काफी महत्वपूर्ण होते हैं, इस दौरान बच्चे अपनी मां से जीने काहुनर सीखते हैं, मां उन्हें शिकार करने से लेकर दुश्मनों से बचने का गुर सिखाती है। जन्म के डेढ़ साल बाद मां अपने बच्चों का साथ छोड़ देती है, उसके बाद ये बच्चे अपनभाइयोंका अलग समूह बनाते हैं, ये समूह अगले छह महीनों तक साथ रहता है। दो वर्षों के बाद मादा चीता इस समूह से अलग हो जाती है जबकि नर चीते हमेशा साथ रहते हैं।क्षेत्रनरचीतों में सामुदायिक एवं पारिवारिक भाव प्रचूर मात्रा में होता है, नर चीते आमतौर पर अपने पारिवारिक सदस्यों केसाथ रहते हैं, अगर परिवार में एक ही नर चीता है तो वो दूसरे परिवार के नर चीतों के साथ मिलकर एक समूह बना लेते है, या फिर वो दूसरे समूहों में शामिल हो जाता है। इन समूहों कोसंगठनभी कह सकते हैं। कैरो एवं कोलिंस द्वारा तंज़ानिया के मैदानी इलाकों में पाए जाने वाले चीतों पर किये गए अध्ययन के अनुसार 41 प्रतिशत चीते अकेले रहते हैं, जबकि 40 प्रतिशत जोड़ों और 19 प्रतिशत तिकड़ी के रूप में रहते हैं।[16]संगठित रूप से रहने वाले चीते अपने क्षेत्र को अधिक समय तक अपने नियंत्रण में रखते हैं, दूसरी तरफ़ अकेले रहने वाला चीता अपने क्षेत्रों को परस्पर बदलता रहता है, हांलाकि अध्यन से पता चलता है कि संगठित रूप से रहने वालेऔर अकेले रहने वाले दोनों अपने अधिकार क्षेत्रों पर समानसमय तक नियंत्रण रखते हैं, नियंत्रण की ये अवधि चार से लेकर साढ़े चार साल तक के बीच की होती है।नर चीते एक निश्चिति परीधि में रहना पसन्द करते हैं। जिन स्थानों पर मादा चीते रहते हैं, उनका क्षेत्रफल बड़ा हो सकता है, ये इसी के आसापास अपना क्षेत्र बनाते हैं, लेकिन बड़े क्षेत्रफल सुरक्षा की द्रष्टि से खतरनाक सिद्ध हो सकते हैं। इसलिए नर चीते मादा चीतों के कुछ होम रेंजेस काचयन करते हैं, इन स्थानों की सुरक्षा करना आसान होता है, इसकी वजह से प्रजनन की प्रक्रिया भी चरम पर होती है, यानी इन्हे संतान उत्पत्ति के अधिक अवसर मिलते हैं। समूह का ये प्रयास होता है कि क्षेत्र में नर और मादा चीते आसानी से मिल सके। इन इलाकों का क्षेत्रफल कितना बड़ा हो इसका दारोमदारअफ्रीकाके हिस्सों में मौजूद मूलभूत सुविधाओंपर निर्धारित करता है।37 से 160 कि॰मी2(14 से 62 वर्गमील)नर चीते अपनेइलाके को चिह्नितऔर उसकी सीमा निश्चित करने के लिए किसी विशेष वस्तु पर अपना मुत्र विसर्जित करते हैं, ये पेड़, लकड़ी का लट्ठा या फिरमिट्टी की कोई मुंडेरहो सकती है। इस प्रक्रिया में पूरा समूह सहयोग करता है। अपनी सीमा में प्रवेश करने वाले किसी भी बाहरी जानवरों को चीता सहन नहीं करता, किसी अजनबी के प्रवेश की सूरत में चीता उसकी जान तक ले सकता है।मादागोरंगगोरो संरक्षण क्षेत्र में मादा चीता और शावक.बिल्ली से दिखने वाले दूसरे जानवरों और नर चीते की तुलना में मादा चीता अपने रहने के लिए कोई क्षेत्र निर्धारित नहीं करती. मादा चीता उन स्थानों पर रहने को प्राथमिकता देती हैं, जहां घर जैसा एहसास होता है, इसेहोम रेंजकह सकते हैं। इन स्थानों पर परिवार के दूसरे मादा सदस्यों जैसे उसकी मां, बहनें और पुत्री साथ साथ रहते हैं। मादा चीते हमेशा अकेले शिकार करना पसंद करते हैं, लेकिन शिकार के दौरान वो अपने बच्चों को साथ रखती है, ताकि वो शिकार करने का तरीक़ा सीख सकें, जन्म के लगभग डेढ़ महीने बाद ही मादा चीता अपने बच्चों को शिकार पर ले जना शुरु कर देती है।होम रेंज की सीमा पूर्ण रूप से शिकार करने की उपलब्धता परनिर्भर करता है। दक्षिणी अफ्रीकीवुडलैंडमें चीते की सीमा कम से कम 34 कि॰मी2(370,000,000 वर्ग फुट) जबकिनामीबियाके कुछ भागों में 1,500 कि॰मी2(1.6×1010 वर्ग फुट) तक पहुंच सकते हैं।स्वरोच्चारणचीता शेर की तरह दहाड़ नहीं सकता, लेकिन इसकी गुर्राहट किसी भी तरह शेर से कम भयावह नहीं होती, चीते की आवाज़ को हम निम्न स्वरों से पहचान सकते हैं:*.-चिर्पिंग- चीता अपने साथियों और मादा चीता अपने बच्चों की तलाश के दौरान जोर-जोर से आवाज़ लगाती है जिसे चिर्पिंग कहते हैं। चीते का बच्चा जब आवाज़ निकालता है तो ये चिड़ियों की चहचहाट जैसा स्वर पैदाकरता है, यही कारण है इसेचिर्पिंगकहते हैं।*.चरिंगयास्टटरिंग- यह वोकलिज़ेशन सामाजिक बैठकों के दौरान चीता द्वारा उत्सर्जित होता है।नर और मादा चीते जब मिलते हैं तो उनके स्वर में हकलाहट आ जाती है, ये भाव एक दूसरे के प्रति दिलचस्पी, पसंद और अनिश्चितता का सूचक होते हैं (हालांकि प्रत्येक लिंग विभिन्न कारणों के लिए चर्रस करते हैं).*.गुर्राहट- चीता जब नाराज़ होता है तो ये गुर्राने औरफुफकारने लगता है, इसके नथुनों से थूक भी निकलने लगताहै, ऐसे स्वर चीते की झल्लाहट को दर्शाते हैं, चीता जबखतरे में होता है तब भी इसी तरह के स्वर निकालता है।*.आर्तनाद- खतरे में घिरे चीते को जब बचकर निकलने की सूरत नज़र नहीं आती तो उसकी फुफकार चिल्लाहट में बदलजाती है।*.घुरघुराहट- मादा चीता जब अपने बच्चों के साथ होती है, बिल्ली जैसी आवाज़ निकालती है (ज्यादातर बच्चे और उनकी माताओं के बीच). घुरघुराहट जैसी ये आवाज़ आक्रामकता औरशिथिलतादोनों का आभास कराती है। चीता की घुरघुराहट रॉबर्ट एक्लुंड के इंग्रेसिव स्पीच वेबसाइट[1]या रॉबर्ट एक्लुंड वाइल्डलाइफ पेज[2]पर सुना जा सकता.आहार और शिकारइम्पाला मार के साथ एक चीता.मूलरुप से चीतामांसाहारीहोता है, ये अधिकतकस्तनपायीके अन्तर्गत 40 कि॰ग्राम (1,400 औंस) जानवरों का शिकार करता है, जो अपने बच्चों को दूध पिलाते हैं, इसमेंथॉमसन चिकारे,ग्रांट चिकारे,एक प्रकार का हरिणऔरइम्पलाशामिल हैं। बड़े स्तनधारियों के युवा रूपों जैसेअफ्रीकी हिरणऔरज़ेबराऔर वयस्को का भी शिकार कर लेता जबचीते अपने समूह में होते हैं। चीताखरगोशऔर एक प्रकार कीअफ्रीकी चिड़ियागुनियाफॉलका भी शिकार करता है। आमतौर पर बिल्ली का प्रजातियों वाले जानवर रात को शिकार करते हैं, लेकिन चीतादिनका शिकारी है। चीता या तो सवेरे के समय शिकार करता है, या फिर देर शाम को, ये ऐसा समय होता है जबकि न तो ज्यादा गर्मी होती है और न ही अधिक अंधेरा होता है।चीता अपने शिकार को उसकीगंधसे नहीं बल्कि उसकीछायासे शिकार करता है। चीता पहले अपने शिकार के पीछे चुपके चुपके चलता है 10–30 मी॰ (33–98 फीट) फिर अचानक उसका पीछा करना शुरु कर देता है, ये सारी प्रक्रिया मिनटों के अंदर होती है, अगर चीता अपने शिकार को पहले हमले में नहीं पकड़ पाता तो फिर वो उसे छोड़ देता है। यही कारण है कि चीता के शिकार करने की औसतन सफलता दर लगभग 50% है।[8]उसके 112 और 120 किमी/घंटा (70 और 75 मील/घंटा) के रफ्तार से दौड़ने के कारण चीता के शरीर पर ज्यादा दबाव पड़ता है। जब ये अपनी पूरी रफ्तार से दौड़ता है तो इसकेशरीर का तापमानइतना अधिक होता है कि ये उसके लिए घातक भी साबित हो सकता है। यही कारण है कि शिकार के बाद चीता काफ़ी देर तक आराम करता है। कभी-कभी तो आराम की अविधि आधे घंटे या उससे भी अधिक हो सकती है। चीता अपने शिकार को पीछा करते समय मारता है, फिर उसके बाद शिकार के गले पर प्रहार करता है, ताकि उसका दम घुट जाए, चीता के लिए चार पैरों वाले जानवरों का गला घोंटना आसान नहीं होता। इस दुविधा से पार करने के लिए ही वो इनके गले केश्वासनलीमें पंजो और दांतो से हमला करता है। जिसके चलते शिकार कमज़ोर पड़ता जाता है, इसके बाद चीता परभक्षी द्वारा उसके शिकार को ले जाने से पहले ही जितना जल्दी संभव हो अपने शिकार को निगलने में देर नहीं करता .चीता का भोजन उसके परिवेश पर आधारित होता है। मिसाल के तौर परपूर्वी अफ्रीकाके मैदानी ईलाकों में ये हिरण या चिंकारा का शिकार करना पसंद करता है ये चीता की तुलना मेंछोटा होता है (लगभग 53–67 से॰मी॰ (21–26 इंच) उंचा और 70–107 से॰मी॰ (28–42 इंच) लम्बाई) इसके अलावा इसकी रफ्तार भी चीते से कम होती है (सिर्फ 80 किमी/घंटा (50 मील/घंटा) तक) यही वजह है कि चीता इसे आसानी से शिकार कर लेता है, चीता अपने शिकार के लिए उन जानवरों को चुनता है जो आमतौर पर अपने झुंड से अलग चलते हैं। ये ज़रुरी नहीं है कि चीता अपने शिकार के लिए कमज़ोर और वृद्ध जानवरों कोही निशाना बनाये, आम तौर पर चीता अपने शिकार के लिए उन जानवरों का चुनता है जो अपने झुंड से अलग चलते हैं।थॉमसन के चिंकारे की खोज करता एक चीता. गोरंगोरो ज्वालामुखी, तंजानिया.अंतर्विशिष्ट हिंसक सम्बन्धअपनी गति और शिकार करने की कौशल होने के बावजूद, मोटे तौर पर उसकी सीमा के अधिकांश दूसरे बड़े परभक्षियों द्वारा चीता को छांट दिया जाता हैं। क्योंकि वे कुछ समय के लिए अत्यधिक गति से दौड़ तो सकते हैं लेकिन पेड़ों पर चढ़ नहीं सकते और अफ्रीका के अधिकांश शिकारी प्रजातियों के खिलाफ अपनी रक्षा नहीं कर सकते हैं। आम तौर पर वे लड़ाई से बचने की कोशिश करते हैं और ज़ख्मी होने के खतरे के बजाए वे बहुत जल्दी ही अपने द्वारा शिकार किए गए जानवर कासमर्पण कर देते हैं, यहां तक कि अपने द्वारा तत्काल शिकारकिए गए एक लकड़बग्घे को भी अर्पण कर देते हैं। क्योंकि चीतों को भरोसा होता है कि वे अपनी गति के आधार पर भोजन प्राप्त कर सकते हैं, लेकिन यदि किसी प्रकार से वे चोटिल हो गए तो उनकी गति कम हो जाएगी और अनिवार्य रूप से जीवन काखतरा भी हो सकता है।चीता द्वारा किए गए शिकार का अन्य शिकारियों को सौंप देने की संभावना लगभग 50% होती है।[8]दिन के विभिन्न समयों में चीता शिकार करने का संघर्ष और शिकार करने के बाद तुरंत ही खाने से बचने की कोशिश करता है। उपलब्ध रेंजके रूप में कटौति होने के चलते अफ्रीका में जानवरों की कमी हुई है और यही कारण है कि हाल के वर्षों में चीता को अन्य देशी अफ्रीकी शिकारियों से अधिक दबाव का सामना करनापड़ रहा है।[कृपया उद्धरण जोड़ें]जीवन के शुरुआती सप्ताह के दौरान ही अधिकांश चीतों की मृत्यु हो जाती है; शुरूआती समय के दौरान 90% तक चीता शावकों कोशेर, तेंदुए,लकड़बग्घे,जंगली कुत्तोंयाचीलद्वारा मार दिए जाते हैं। यही कारण है कि चीता शावक अक्सरसुरक्षा के लिए मोटे झाड़ियों में छिप जाते हैं। मादा चीता अपने शावकों की रक्षा करती है और कभी-कभी शिकारियों को अपने शावकों से दूर तक खदेड़ने में सफल भी होती है। कभी-कभी नर चीतों की मदद से भी दूसरे शिकारियों को दूर खदेड़ सकती है लेकिन इसके लिए उसके आपसी मेल और शिकारियों के आकार और संख्या निर्भर करते हैं। एक स्वस्थवयस्क चीता के गति के कारण उसके काफी कम परभक्षी होते हैं।[17]मनुष्यों के साथ संबंधआर्थिक महत्वएक चीता के साथ एक मंगोल योद्धा.चीता के खाल को पहलेप्रतिष्ठा का प्रतीकमाना जाता था। आज चीताइकोपर्यटनके लिए एक बढ़तीआर्थिकप्रतिष्ठा है और वेचिड़ियाघरमें भी पाए जाते हैं। अन्य बिल्ली के प्रजातियों प्रकारों में चीता सबसे कम आक्रामक होता है और उसे शिक्षित भी किया जा सकता है यही कारण है कि चीता शावकों को कभी-कभी अवैध रूप सेपालतूजानवर के रूप में बेचा जाता है।पहले और कभी-कभी आज भी चीतों को मारा जाता है क्योंकि कई किसानों का मानना है कि चीतापशुओंको खा जाते हैं। जब इस प्रजाति के लगभग लुप्त हो जाने के खतरे सामने आए तब किसानों को प्रशिक्षित करने के लिए कई अभियानों को चलायागया था और चीता के संरक्षण के लिए उन्हें प्रोत्साहित करना शुरू किया गया था। हाल ही में प्रामाणित किया गया हैकि चीते पालतू पशुओं का शिकार करके नहीं खाते चूंकि वे जंगली शिकारों को पसंद करते हैं इसलिए चीतों को न मारा जाए. हालांकि अपने क्षेत्र के हिस्से में खेत के शामिल होजाने से भी चीतों को कोई समस्या नहीं होती और वे संघर्ष के लिए तैयार रहते हैं।प्राचीन मिस्रके निवासी अक्सर चीतों को पालतू जानवर के रूप में पालते थे और पालने के साथ-साथ उन्हें शिकार करने के लिए प्रशिक्षित करते थे। चीते के आंखों पर पट्टी बांध कर शिकार के लिए छोटे पहिए वाले गाड़ियों पर या हुडदार घोड़े पर शिकार क्षेत्र में ले जाया जाता था और उन्हें चेन से बांध दिया जाता था जबकि कुत्ते उनके शिकार से उत्तेजित हो जाते थे। जब शिकार काफी निकट होता था तब चीतों के मुंह से पट्टी हटाकर उसे छोड़ दिया जाता था। यह परंपरा प्राचीनफारसियोंतक पहुंचा और फिर वहीं से इसने भारत में प्रवेश किया और बीसवीं शाताब्दी तक भारतीय राजाओं ने इस परम्परा का निर्वाह किया। प्रतिष्ठा और शिष्टता के साथ चीता का जुड़ा रहना जारी रहा, साथ ही साथ पालतू जानवर के रूप में चीतों को पालने के पीछे चीतों के शिकार करने का अद्भूत कौशल था। अन्य राजकुमारों और राजाओं ने चीता को पालतू जानवर के रूप में रखा जिसमेंचंगेज खानऔरचार्लेमग्नेशामिल हैं जो चीतों को अपने महल के मैदान के भीतर खुला रखते थे और उसे अपना शान मानते थे।मुगल साम्राज्यकेमहान राजा अकबर, जिनका शासन 1556से 1605 तक था, उन्होंने करीब 1000 चीतों को रखा था।[8]हाल ही में 1930 के दशक तकइथियोपिया के सम्राटहेली सेलासिएको अक्सर एक चेन में बंधे चीता के आगे चलते हुए फोटो को दिखाया गया है।संरक्षण स्थितिअनुवांशिक कारकों और चीता के बड़े प्रतिद्वंदि जानवरों जैसे शेर औरलकड़बग्घेके कारण चीता शावकों केमृत्यु दरकाफी अधिक होते हैं। हाल ही में आंतरिक प्रजनन के कारणों के चलते चीते काफी मिलती जुलती अनुवांशिक रूपरेखा का सहभागी होते हैं। जिसके चलते इनमें कमजोर शुक्राणु, जन्मदोष, तंग दांत, सिंकुड़े पूंछ और बंकित अंग होते हैं। कुछ जीव विज्ञानी का अब मानना है कि एक प्रजाति के रूप में उनका पनपनासहजहैं।[18]चीताइंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजरवेशन ऑफ नेचर(IUCN) मेंचीता कोअसुरक्षित प्रजातियोंकी सूची में शामिल किया है(अफ्रीकी उप-प्रजातियां संकट में, एशियाई उप-प्रजातियां की स्थिति गंभीर) साथ ही साथ अमेरिका केलुप्तप्राय प्रजाति अधिनियमपर:CITESके परिशिष्ट मेंप्रजातियां के संकटमें होने - के बारे में बताया है (अंतर्राष्ट्रीयव्यापार पर विलुप्तप्राय प्रजाति में समझौता). पच्चीस अफ्रीकी देशों के जंगलों में लगभग 12,400 चीते बचे हुए हैं, लगभग 2,500 चीतों के साथ नामीबिया में सबसे अधिक हैं। गंभीर रूप से संकटग्रस्त करीब पचास से साठ एशियाई चीते ईरान में बचे हुए हैं। दुनिया भर के चिड़ियाघरों मेंइन विट्रो फर्टिलाइजेशनके उपयोग के साथ-साथ प्रजनन कार्यक्रम सम्पन्न कराए जा रहे हैं।1990 में नामीबिया में स्थापितचीता कंजरवेशन फन्डका मिशन चीता और पर्यावरण व्यवस्था पर अनुसंधान और शिक्षा के क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उत्कृष्ट और मान्यता प्राप्त केंद्र बनाना है, इसलिए दुनिया भर के चीतो के संरक्षण और प्रबंधन के लिए हितधारकों के साथ कार्य कर रहे हैं।साथ ही CCF ने दक्षिण अफ्रीका के चारों ओर स्टेशनों की स्थापना की है ताकि संरक्षण के प्रयास जारी रहें.चीता की सुरक्षा के लिए वर्ष 1993 में दक्षिण अफ्रीका पर आधारितचीता संरक्षण फाउंडेशननामक एक संगठन को स्थापित किया गया था।पुनर्जंगलीकरण परियोजनामुख्य लेख :Cheetah Reintroduction in Indiaभारत में कई वर्षों से चीतों के होने का ज्ञात किया गया है। लेकिन शिकार और अन्य प्रयोजनों के कारण बीसवीं सदी के पहले चीता विलुप्त हो गए थे। इसलिएभारत सरकारने एक फिर से चीता के लिए पुनर्जंगलीकरण के लिए योजना बना रही है। गुरुवार, जुलाई 9, 2009 मेंटाइम्स ऑफ़ इंडियाके पृष्ठ संख्या 11 पर एक लेख में स्पष्ट रूप से भारत में चीतों केआयातकी सलाह दी है जहां उनका पालन पोषण अधीनता में किया जाएगा. 1940 के दशक के बाद से भारत में चीते विलुप्त होते गए और इसलिए सरकार इस परियोजना पर योजना बना रही है। चीता केवल जानवर है कि भारत में लुप्त पिछले वर्णितपर्यावरण और वन मंत्रीजयराम रमेशजुलाई 7 कि 2009 मेंराज्य सभामें बताया कि "चीता एकमात्र ऐसा जानवर है जो पिछले 100 वर्षों में भारत में लुप्त होता गया है। हमें उन्हें विदेशों से लाकर इस प्रजाति की जनसंख्या को फिर से बढ़ाना चाहिए." प्रतिक्रिया स्वरूपभारतीय जनता पार्टी(भाजपा) के राजीव प्रताप रूडी से उन्होंने ध्यानाकर्षण सूचना प्राप्त किया। इस योजना का उद्देश्य उन चीतों का वापस लाना है जिसका अंधाधुंधशिकारऔर एक नाजुकप्रजननपद्धति की जटिलता के कारण लुप्त हो रहे हैं और जो बाघ संरक्षण को ट्रस्ट करने वाली समस्याओं को घेरती है। दिव्य भानुसिंह और एम के रणजीत सिंह नामक दोप्रकृतिवादियों नेअफ्रीकासे चीतों के आयात करने का सुझाव दिया। आयात के बाद बंदी के रूप में उनका पालन-पोषण किया जाएगा और समय की एक निश्चित अवधि के बाद उन्हें जंगलों में छोड़ा जाएगा.लोकप्रिय संस्कृति मेंटीटियन द्वारा लिखित बच्चुस और एरिएडने, 1523.फ़र्नांड नोफ्फ द्वारा लिखित द केयरेस, 1887.*.टीटियनकेबच्चुस और एरियाड्ने(1523), में भगवान केरथका वहन चीतों द्वारा किया जाता है (जोइटलीकेपुनर्जागरणमें जानवरों के शिकार के रूप में इस्तेमाल किया गया था). भगवानडियोनिससके साथ चीता अक्सर जुड़े होते थे और इस भगवान को रोमन बच्चुस के नाम से पूजा करते थे।*.जॉर्ज स्टुब्बकेचीता विथ टू इंडियन अटेन्डेंट्स एण्ड ए स्टैग(1764-1765) में चीता को शिकारी जानवर दिखाया गया है और साथ हीमद्रासके ब्रिटिश राज्यपाल,सर जॉर्ज पिजोटद्वाराजॉर्ज IIIको चीता केउपहार को एक स्मृति बनते दिखाया गया है।*.बेल्जियमप्रतीकवादी चित्रकारफ़र्नांड नोफ्फ(1858-1921) द्वाराद केयरेस(1896),ईडिपसऔरस्फिंक्सऔर एक महिला के सिर के साथ प्राणी चित्रण और चीता शरीर (अक्सर एक तेंदुआ के रूप में गलत समझा जाता है) के मिथक का प्रतिनिधित्व करता है।*.आन्ड्रे मेर्सिएरकेअवर फ्रेंड याम्बो(1961) एकफ्रांसीसीदंपती द्वारा अपनाए गए चीता की एक अनोखाजीवनीहै, जोपेरिसमें रहता है। इसेबोर्न फ्री(1960), का फ्रेंच जवाब के रूप में देखा जाता है जिनके लेखकजोय एडम्सनने अपने ही चीता की जीवनी लिखी थी जिसका शीर्षक थाद स्पोटेड स्फिंक्स(1969).*.एनिमेटेड श्रृंखलाथंडरकैट्समें एक मुख्य पात्र है जो एक मानव रूपी चीता था जिसका नाम चीतारा था।*.1986 मेंफ्रिटो-लेने एक मानवरूपी चीता,चेस्टर चीताकी शुरूआत अपनेचीतोसके लिए शुभंकर के रूप में किया।*.हेरोल्ड एण्ड कुमार गो टू व्हाइट केसलके उप-कथानक में एक पलायन चीता है, जो बाद में जोड़ी के साथमारिजुआनाधूम्रपान करता है और उन्हें सवारी करने कीअनुमति देता है।*.2005 की फिल्मड्यूमादक्षिण अफ्रीका के एक युवा कीकहानी है जो कई साहसिक कारनामों के साथ अपने पालतू चीता, ड्यूमा, को जंगल में छोड़ने की कोशिश करता है। यह फिल्म केरोल कौथरा होपक्राफ्ट और जैन होपक्राफ्ट द्वारा अफ्रीका की एक सच्ची कहानी पर आधारित"हाउ इट वाज विथ डुम्सपुस्तक पर आधारित है।*.पैट्रिक ओ'ब्राइनद्वारा लिखित हुसैन, एन एंटर्रटेनमेंट उपन्यास में भारत के ब्रिटिश राज के दौरान भारत|हुसैन, एन एंटर्रटेनमेंट[[उपन्यास में भारत केब्रिटिश राजके दौरानभारतमें स्थापित रॉयल्टी को रखने का प्रयास और चीतों को हिरण के शिकार का प्रशिक्षण को दिखाया गया है।


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