14वीं शताब्दी में यूरोप से प्लेग फैला और देखते देखते ढाई करोड़ लोगों की जान चली गई. प्लेग के लिए चूहों को जिम्मेदार माना गया. लेकिन यह बड़ी चूक थी. असल में प्लेग इंसान के साथ रहने वाले पिस्सुओं और जुओं से फैला...
नॉर्वे की ओस्लो यूनिवर्सिटी और इटली की फेरारा यूनिवर्सिटी की रिसर्च का दावा है कि प्लेग इंसान और उसके शरीर में रहने वाले परजीवियों की वजह से फैला. अब तक प्लेग के लिए चूहों को जिम्मेदार ठहराया जाता रहा है. नेशनल एकेडमी ऑफ साइंस में छपे लेख में कैथेरिन आर डीन ने कहा, "इस महामारी के प्रसार को लेकर कई तरह के सवाल हैं और यह भी कि आखिर ये इतनी तेजी से कैसे फैला." कैथेरिन आर डीन इस रिसर्च की प्रमुख हैं.
डीन और उनके साथियों ने 1348 से 1813 तक सामने आए प्लेग के नौ बड़े मामलों का अध्ययन किया. इस दौरान प्लेग की सबसे ज्यादा मार स्पेन के बार्सिलोना, इटली के फ्लोरेंस, यूके के लंदन, स्वीडन के स्टॉकहोम, रूस के मॉस्को और पोलैंड के ग्दांस्क शहर पर पड़ी. प्लेग ने करोड़ों लोगों की जान ली. हालत यह हो गई कि शव की अंतिम यात्रा तक के लिए लोग नहीं बचे. सारी मौतों के पीछे एक ही बैक्टीरिया जिम्मेदार था, येरसिनिया पेस्टिस. इसे प्लेग या ब्लैक डेथ भी कहा जाता है.
(प्लेग के रोगियों को भी अलग थलग कर दिया जाता था)
सबसे खतरनाक वायरस
इबोला वायरस भयंकर हो सकता है, लेकिन वह दुनिया का सबसे खतरनाक वायरस नहीं है. ना ही एचआईवी वायरस. पेश है दुनिया के 10 सबसे खतरनाक वायरसों की सूची...
1. सबसे खतरनाक वायरस मारबुर्ग वायरस है. इस वायरस का नाम लान नदी पर बसे छोटे और शांत शहर पर है. लेकिन इसका बीमारी से कुछ लेना देना नहीं है. मारबुर्ग रक्तस्रावी बुखार का वायरस है. इबोला की तरह इस वायरस के कारण मांसपेशियों के दर्द की शिकायत रहती है. श्लेष्मा झिल्ली, त्वचा और अंगों से रक्तस्राव होने लगता है. 90 फीसदी मामलों में मारबुर्ग के शिकार मरीजों की मौत हो जाती है.
2. इबोला वायरस की पांच नस्लें हैं. हर एक का नाम अफ्रीका के देशों और क्षेत्रों पर रखा गया है. जायरे, सुडान, ताई जंगल, बुंदीबुग्यो और रेस्तोन. जायरे इबोला वायरस जानलेवा है, इसके शिकार 90 फीसदी मरीजों की मौत हो जाती है. इस नस्ल का वायरस फिलहाल गिनी, सियरा लियोन और लाइबिरिया में फैला हुआ है. वैज्ञानिकों का कहना है कि शायद फ्लाइंग फॉक्स ने इसे शहरों में लाया होगा.
3. तीसरे नंबर पर हंटा वायरस है. हंटा वायरस के कई प्रकार का वर्णन है. इस वायरस का नाम उस नदी पर रखा गया है जहां माना जाता है कि सबसे पहले अमेरिकी सैनिक इसकी चपेट में आए थे. 1950 के कोरियाई युद्ध के दौरान वे इसकी चपेट में आए थे. इस वायरस के लक्षणों में फेफड़ों के रोग, बुखार और गुर्दा खराब होना शामिल हैं.
4. बर्ड फ्लू की विभिन्न नस्लें आतंक का कारण होती हैं. जो शायद जायज है क्योंकि इसमें मृत्यु दर 70 फीसदी है. लेकिन वास्तव में H5N1 नस्ल के वायरस के चपेट में आने का जोखिम बेहद कम होता है. आप सिर्फ तभी इस वायरस के चपेट में आते हैं जब आपका संपर्क सीधे पोल्ट्री से होता है. यही वजह है कि ऐसा कहा जाता है कि एशिया में ज्यादातर मामले क्यों सामने आते हैं. वहां अक्सर लोग मुर्गियों के करीब रहते हैं.
5. लस्सा वायरस से संक्रमित होने वाली पहली शख्स नाइजीरिया में एक नर्स थी. यह वायरस चूहों और गिलहरियों से फैलता है. यह वायरस एक विशिष्ट क्षेत्र में होता है, जैसे पश्चिमी अफ्रीका. इसकी कभी भी पुनरावृत्ति हो सकती है. वैज्ञानिकों का मानना है कि पश्चिम अफ्रीका में 15 फीसदी कतरने वाले जानवर इस वायरस को ढोते हैं.
मारबुर्ग वायरस
6. जुनिन वायरस अर्जेंटाइन रक्तस्रावी बुखार से जुड़ा है. वायरस से संक्रमित लोग ऊतक में सूजन, सेप्सिस और त्वचा से खून आने का शिकार होते हैं. समस्या ये है कि इसके लक्षण इतने आम हैं कि बीमारी के बारे में पहली बार में कम ही पता लग पाता है.
7. क्रीमियन कांगो बुखार वायरस खटमल जैसे जीवों से फैलता है. यह वायरस इबोला और मारबुर्ग जैसे वायरस की ही तरह विकास करता है. संक्रमण के पहले कुछ दिनों में मरीज के चेहरे, मुंह और ग्रसनी से रक्तस्राव होता है.
8. मचुपो वायरस बोलिवियन हीमोरेजिक फीवर से संबंधित है. इसे ब्लैक टाइफस के नाम से भी जाना जाता है. संक्रमण के कारण तेज बुखार और भारी रक्तस्राव होता है. यह जुनिन वायरस की तरह विकास करता है. यह वायरस इंसानों से इंसानों में फैलता है.
9. वैज्ञानिकों ने 1955 में भारत के पश्चिमी तट में स्यास्नूर फॉरेस्ट वायरस (केएफडी) वायरस की खोज की थी. यह वायरस भी जीवों से फैलता है. लेकिन वैज्ञानिकों का कहना है कि यह निर्धारित कर पाना मुश्किल है कि यह किस खास जीव से फैलता है. इस वायरस के शिकार मरीजों में तेज बुखार, सिरदर्द और मांसपेशियों में दर्द होता है. इससे रक्तस्राव भी होता है.
10. डेंगू बुखार का खतरा लगातार बरकार रहता है. डेंगू बुखार मच्छरों से फैलता है. इस बुखार से हर साल 5 करोड़ से लेकर 10 करोड़ लोग बीमार पड़ते हैं. भारत और थाइलैंड जैसे देशों में डेंगू का खतरा काफी बड़ा है.
भारत की सात खतरनाक जानलेवा बीमारियां
कई घातक बीमारियों को अब दवा और चिकित्सा उपचार की मदद से जड़ से दूर किया जा सकता है। लेकिन अभी भी कुछ घातक बीमारियों का सामना हम कर रहे हैं, इन पर ध्यान देने की जरूरत है।
जानलेवा बीमारियां
चिकित्सा क्षेत्र में प्रगति के साथ-साथ, भारत में स्वास्थ्य की स्थिति में भी बदलाव आया है। कई घातक बीमारियों को दवा और चिकित्सा उपचार की मदद से जड़ से दूर किया गया है। लेकिन अभी भी कुछ घातक बीमारियों का सामना हम कर रहे हैं, इन पर ध्यान देने की जरूरत है। और भारतीय स्वास्थ्य प्रणालियों को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय लक्ष्यों तक पहुंचने के लिए मजबूत बनाने की कोशिश की जानी चाहिए। ऐसी ही कुछ जानलेवा बीमारियों की जानकारी यहां दी गई है।
हृदय रोग
भारत देश में लगभग 24.8 प्रतिशत मौते हृदय रोग के कारण होती है। हालांकि यह परिहार्य है लेकिन दिल की बीमारी से मरने वाली की संख्या में हर साल इजाफा जारी है। जोखिम कारकों और सावधानियों की सही जानकारी के अभाव ने बीमारी और लोगों के बीच मौत की संभावना को बढ़ा दिया है। स्वास्थ्य मंत्रालय ने 2015 तक भारत में लगभग 60 लाख से अधिक लोगों में हृदय रोग होने की आंशका का अनुमान लगाया है। हृदय रोग के प्रमुख कारणों में तम्बाकू धूम्रपान, मोटापा, अस्वास्थ्यकर आहार, शारीरिक निष्क्रियता, उच्च कोलेस्ट्रॉल, हाई ब्लड प्रेशर और आनुवंशिकता शामिल हैं। दिल की बीमारी को स्वस्थ आहार, स्वस्थ वजन और गलत आदतों को छोड़कर रोका जा सकता है।
सांस की बीमारियां
सांस की बीमारियों के चलते भारत में हर साल लगभग 10.2 प्रतिशत लोग मौत के शिकार होते हैं। सांस की बीमारियों के मुख्य कारणों में वायु प्रदूषण, धूम्रपान, एस्बेस्टॉसिस, आदि शमिल है। व्यावसायिक खतरों से परहेज, स्वस्थ आहार अपनाना, शुद्ध हवा में सांस लेना और धूम्रपान छोड़ना, सांस की बीमारियों को रोकने के सबसे प्रभावी तरीके हैं।
क्षय रोग (टीबी)
तपेदिक, क्षयरोग या टीबी एक आम और कई मामलों में घातक संक्रामक बीमारी है जो माइक्रो बैक्टीरिया, आमतौर पर माइको बैक्टीरियम टीबी के विभिन्न प्रकारों के कारण होती है। टीबी आम तौर पर फेफड़ों पर हमला करता है, लेकिन यह शरीर के अन्य भागों को भी प्रभावित कर सकता हैं। यह हवा के माध्यम से तब फैलता है, जब वे लोग जो सक्रिय टीबी संक्रमण से ग्रसित हैं, खांसी, छींक, या किसी अन्य प्रकार से हवा के माध्यम से अपना लार संचारित कर देते हैं। हर साल भारत में लगभग 10.1 प्रतिशत लोग इस जानलेवा बीमारी का शिकार बनते हैं। क्षय रोग को टीकाकरण, स्वस्थ आहार और जीवन शैली और नियमित रूप से निवारक परीक्षण से रोका जा सकता है।
पाचन विकार और डायरिया
घंटों एक ही जगह बैठ कर काम करना, जल्दी-जल्दी खाने के चक्कर में फास्ट फूड या जंक फूड खा लेना, बिगड़ी हुई दिनचर्या, कम शारीरिक श्रम करना, काम का तनाव और पूरी नींद नहीं लेना आज के लोगों की आदतों में शुमार हो गया है। इनकी वजह से अधिकांश लोगों का पाचन तंत्र ठीक से काम करना बंद कर देता है। इसके साथ ही डायरिया के प्रमुख कारणों में अस्वास्थ्यकर खाद्य पदार्थ, जीवाणु संक्रमण, दवा, स्टेरॉयड और सल्फा दवाओं का उपयोग शामिल है। डायरिया में उल्टियां और लूज मोशन होने से शरीर का पानी और नमक निकल जाते हैं। भारत में लगभग 5.1 प्रतिशत लोग हर साल पाचन विकार और लगभग 5.0 प्रतिशत लोग डायरिया का शिकार बनते हैं। स्वस्थ आहार और जीवनशैली के विकल्पों को बनाये रखकर इन समस्याओं को रोका जा सकता है।
कैंसर
कैंसर एक ऐसी जानलेवा बीमारी, जिसकी चपेट में आकर हर साल हजारों लोग मौत की दहलीज पर खड़े होते हैं। भारत में लगभग 9.4 प्रतिशत लोग इस घातक ट्यूमर की चपेट में आते हैं। कैंसर ट्यूमर के विकास के कारणों में केमिकल और विषाक्त पदार्थों के संपर्क में आना और रोगजनक, जीन और विकिरण शामिल हैं। कैंसर को खतरे को कम करने के लिए तंबाकू के सेवन से बचना, स्वस्थ वजन और जीवन शैली को बनाए रखना, नियमित मेडिकल चेकअप और एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर स्वस्थ आहार खाना बहुत महत्वपूर्ण होता है।
आत्म नुकसान/डिप्रेशन
आत्महत्या 15-29 आयु वर्ग के भारतीयों में मौत का दूसरा सबसे आम कारण है। भारत में कुल मौतों में से लगभग 3.0 प्रतिशत मौतों को कारण आत्महत्या है। आत्महत्या अक्सर निराशा के चलते की जाती है, जिसके लिए अवसाद, द्विध्रुवीय विकार, शराब की लत या मादक दवाओं का सेवन जैसे मानसिक विकारों को जिम्मेदार ठहराया जाता है। तनाव के कारकों में वित्तीय कठिनाइयां या पारस्परिक संबंधों में परेशानियों जैसी समस्याओं की भी भूमिका होती है। रोकथाम के तरीकों में तनाव राहत उपचार, पुनर्वास और परामर्श शामिल हैं।
मलेरिया
मलेरिया एक वाहक-जनित संक्रामक रोग है जो प्रोटोजोआ परजीवी द्वारा फैलता है। मलेरिया के परजीवी का वाहक मादा एनोफिलेज मच्छर है। इसके काटने पर मलेरिया के परजीवी लाल रक्त कोशिकाओं में प्रवेश कर बहुगुणित होते हैं जिससे एनीमिया के लक्षण जैसे चक्कर आना, सांस फूलना, हृदय की धड़कन में असामान्य तेजी इत्यादि उभरने लगते हैं। इसके अलावा बुखार, सर्दी, उबकाई और जुकाम जैसी लक्षण भी देखने को मिलते हैं। गंभीर मामलों में मरीज मूर्च्छा में जा सकता है और मृत्यु भी हो सकती है। भारत में हर साल रोगों से होने वाली मौतों में लगभग 2.8 प्रतिशत लोग मलेरिया के शिकार बनते हैं। शोधों के अनुसार, देश की आबादी का लगभग 95 प्रतिशत लोग मलेरिया स्थानिक क्षेत्रों में रहते है। मलेरिया से बचाव के लिए अस्वास्थ्यकर स्थानों में रहते समय सावधानियां लेनी चाहिए और मच्छर को काटने से रोकने के लिए मच्छर भगाने वाले उपकरणों को उपयोग करना चाहिए।
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